Pakistan Calamitous Flood Crisis: पाकिस्तान (Pakistan) इस वक्त प्राकृतिक से अधिक इंसान की जबरन बुलाई आपदा (Man-Made Disaster) के बीच झूल रहा है. इस देश के विकास के लिए बनाए दोषपूर्ण विकास मॉडल ने शहरी और ग्रामीण दोनों जगहों में जिंदगी को खतरे में डाल दिया है. विकास के इस पैटर्न से मानसून (Monsoons) बुरी तरह प्रभावित हुआ. यही वजह रही कि हमेशा से ही बारिश की बूंदें, बारिश में घूमना और गीत गाने जैसे रूमानी अहसास जगाने वाला मानसूनी मौसम यहां खौफ का दूसरा नाम बन गया.


पाकिस्तान में मानसून हमेशा से लोककथाओं और कविताओं का अहम हिस्सा रहा है. एक तरह से यहां मानसून को देश की संस्कृति, विरासत और इतिहास की आत्मा कहा जाए तो गलत नहीं होगा. इससे बढ़कर ये यहां के जीवन, जीवन शैली और आजीविका से भी जुड़ा हुआ है. ऐतिहासिक तौर पर देखा जाए तो पाकिस्तान में मानसून से लोग खौफ नहीं खाते थे, लेकिन इस बार मानसून जो भयावह और दिल दहलाने वाले मंजर लेकर आया है, उससे अब पाकिस्तान के लोगों के जेहन में हमेशा ये खौफ बनकर रहेगा. 


टूट गया इंसान से प्रकृति का रिश्ता


मेहरगढ़ (Mehrgarh) में शुरुआती कृषि बस्तियों से लेकर सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilisation) और मुगल काल (Mughal Period) के सदियों बाद तक ये देश मौसमी बाढ़ और लंबे वक्त तक सूखे के साथ सह-अस्तित्व में रहा है, लेकिन जब से देश ने विकास के रास्ते पर दौड़ने की राह पकड़ी तब से प्राकृतिक पर्यावरण के संग सहअस्तिव नहीं बल्कि प्रतिस्पर्धा होने लगी और एक तरह से उससे रिश्ता ही खत्म हो गया. नतीजन प्राकृतिक पर्यावरण जैसे जंगल, जलमार्गों, जलस्रोतों और पारिस्थितिक तंत्रों (Ecosystems) के साथ इंसानी रिश्ता टूटता गया.


गुरुत्वाकर्षण (Gravity) पानी के बहाव को प्रेरित करता है, लेकिन पाक का विकास मॉडल (Development Model) गुरुत्वाकर्षण को धता बताने पर जोर दे रहा है. यहां पानी के प्रवाह में बाधा डालने का नतीजा ये हुआ कि बस्तियां, बुनियादी ढांचा, अर्थव्यवस्था, आजीविका और मवेशी सभी बेकार में ही असुरक्षित और आसानी से खत्म होने के कगार पर पहुंच गए हैं. बाइबिल में बताई गई विनाशकारी बारिश (Biblical Rains) और घातक बाढ़ का यह मौसम इस देश को इसके विकास मॉडल पर दोबारा से विचार करने और इसे सुधारने का एक मौका देता है.


साल 2022 की बाढ़ का पैमाना, दायरा और फैलाव 2010 की सुपर फ्लड (Super Floods) को पार कर गया है.मानसून की बारिश ने गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) और खैबर पख्तूनख्वा (Khyber Pakhtunkhwa) से लेकर सिंध, दक्षिणी पंजाब और बलूचिस्तान (Balochistan) तक फैले देश के सभी इलाकों में अभूतपूर्व की तबाही मचाई है. इसमें कोई शक नहीं कि कई इलाकों में पहले ऐसे कभी भी इतनी भारी  बारिश नहीं हुई थी. इस वजह से मानसून का पानी बेहद उग्र रूप में भारत के इस पड़ोसी देश में तूफान मचा रहा है.


इसकी एक बहुत बड़ी वजह है कि यहां मानसून के पानी की राह में बाधाएं खड़ी कर दी गई हैं. नदी के किनारों पर अतिक्रमण है तो ऊंचे इलाकों,पहाड़ियों या पहाड़ों के बीच बह रही धाराओं के बीच अवरोध पैदा कर दिया गया है. पाकिस्तान में बाढ़ से अभी जो मौजूदा हालात हैं वो खुद उसके पैदा किए गए हैं. बाढ़ का पानी तो केवल अपने रास्ते पर दोबारा से अपना अधिकार जता रहा है. बुनियादी ढांचा और सामुदायिक संपत्तियां बर्बाद हो रही हैं. इसमें साल 2010 के सुपर फ्लड के बाद बनाई गई संपत्तियां भी शामिल हैं. उदाहरण के लिए बलूचिस्तान (Balochistan) के बांधों को ही लिया जाए तो यहां 11 छोटे बांध बह रहे हैं क्षतिग्रस्त या नष्ट हो रहे हैं.


नहीं लिया सबक 2010 के सुपर फ्लड से


साफ तौर पर कहा जाए तो साल 2010 के सुपर फ्लड के बाद भी बुनियादी ढांचे के विकास के लिए पाकिस्तान ने कोई सबक नहीं लिया या लागू ही नहीं किया. आपदा से बचने का कोई खास (Disaster-Proof) प्लान नहीं बनाया गया. गांवों नजदीकी इलाकों, छोटे शहरों और बड़े शहरों में बारिश के पानी, बाढ़ के पानी के लिए कोई चैनल यानी कोई अलग रास्ता नहीं बनाया गया. इससे सीवरेज लाइन्स पर असर पड़ा और पीने का पानी दूषित हो गया. बिजली के खंभे उखड़ गए हैं और उन्हें बाढ़ से बचाने की कोई योजना नहीं है. यहां सड़कें और रेलवे ट्रैक अक्सर बगैर पुलिया के होते हैं. ये पानी के बहाव में बाधा डालते रहते हैं. उस पर यहां जमीन का इस्तेमाल मनमर्जी से होता रहता है. इसका नतीजा शहरी इलाकों में बढ़ोतरी के साथ बड़ी हाउससिंग सोसाइटी और गांववालों की अनियोजित बस्तियों के तौर पर सामने आता है. जमीन पर इस तरह का अनचाहा निर्माण भी अक्सर सालाना आने वाली बाढ़ के चक्र (Flood Cycles) को प्रभावित करता है.


इन सबसे ऊपर, देश विकास के चार खतरनाक कामों हुए.  जिन्हें अगर पाप कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. पहला ऊपर से नीचे तक विकास के लिए जो योजना बनाई गई, उनमें संसाधनों का बंटवारा सही से नहीं किया गया. दूसरा विकास योजनाओं की असमानता रही जो अक्सर बेतरतीब ढंग से चुनी गई हैं.  तीसरा बुनियादी ढांचे के विकास के लिए पुराने और खराब मानक को अपनाया गया. यह मान लिया गया कि ये बढ़ती जरूरतों को संभाल लेगा, उसका सामना कर लेगा. चौथे नंबर पर सांख्यिकी विकास मॉडल (Statist Development Model) है. इसका मतलब इस तरह की राजनीतिक प्रणाली से है जो सामाजिक और आर्थिक मामलों पर केवल खुद का मजबूत नियंत्रण रखती हो. इस तरह के मॉडल में स्थानीय शासन संस्थानों या मुसीबतों को संभालने के राष्ट्रीय मानकों (National Resilience Standards) को केवल विकल्पों की तरह देखा जाता है. 


यहां मौसम का बदलाव ही नहीं बाढ़ का अकेला दोषी


जलवायु जनित बाढ़ मुख्य रूप से दो अहम वजहों से आती है. ये मानसून के पैटर्न में भी बदलाव लाती हैं. पहली अहम वजह गर्म हवा है जो अधिक बारिश का कारण है. जैसे-जैसे वैश्विक हवा का तापमान बढ़ता है, बादल अधिक जल वाष्प ले सकते हैं. इसका नतीजा बेहद अधिक पानी बरसना या मूसलाधार बारिश हो सकती है. विज्ञान के इस बुनियादी ज्ञान से कई जलवायु मॉडल अनुमान लगाते हैं कि दक्षिण एशियाई मानसून (South Asian Monsoons) में  लगातार भारी और बेमौसम बारिश होना तय है. दूसरी अहम वजह है समुद्र के जल में बढ़ोतरी होना. समुद्र में जल बढ़ने से तटीय इलाकों में आने वाली बाढ़ में भी इजाफा होता है. समुद्र में तापमान का बेहद बढ़ा स्तर  बादलों का तापमान भी बहुत अधिक बढ़ा देता है और इसका नतीजा होता है कि बादल जमीन के बहुत बड़े हिस्सों पर बरसते हैं.


यही वजह है कि बलूचिस्तान (Balochistan) में बार-बार आने वाली बाढ़ के लिए अक्सर बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) से पैदा होने वाले पारंपरिक पूर्वी मानसून की जगह इन पश्चिमी मौसम के प्रभावों (Westerly Weather Influences) को जवाबदेह ठहराया जाता है. ऐसा लगता है कि मौसम चक्र में आए इस बदलाव ने बलूचिस्तान के आम तौर पर गैर मानसूनी इलाकों में बाढ़ की उग्रता और इसके बार-बार  (Frequency) आने को बढ़ाया है.जलवायु परिवर्तन (Climate change) पाकिस्तान में बाढ़ को बढ़ावा दे रहा है. बाढ़ वास्तव में इस देश के लिए सबसे खराब तरह की जलवायु प्रेरित आपदा के तौर पर उभरी है, शायद इसे सबसे घातक कहें तो यह गलत नहीं होगा. यह प्राकृतिक तौर पर आने वाली बाढ़ को अधिक विनाशकारी बना रहा है. इसके साथ भारी बाढ़ के बार-बार आने को भी बढ़ावा मिल रहा है.


हाल ही में पूर्वी जर्मनी (Germany) में एल्बे (Elbe) और अन्य नदियों में आई बाढ़ के बाद हुए अध्ययनों में अनुमान लगाया कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन (Global Climate Change) की वजह से बाढ़ के 9 गुना अधिक बढ़ने की संभावना है. बाढ़ को समझना जटिल है, लेकिन अगर ये कहा जाए कि ये केवल मौसम के मिजाज में बदलाव की वजह से बाढ़ आती है तो ऐसा नहीं है. इसकी वजहें बुनियादी ढांचे (Infrastructure) की जगह, उसका डिजाइन और उसमे इस्तेमाल की गई सामग्री की गुणवत्ता पर भी निर्भर करता है. किसी भी आपदा के आने पर अगर उसे झेलने के लिए तैयार किया गया सिस्टम (Resilience Levels) कमजोर होगा तो किसी भी तरह की आपदाएं चाहे वह मानव निर्मित हो या प्राकृतिक भयंकर नुकसान करेंगी. पाकिस्तान का यही सिस्टम कमजोर है. इसके साथ ही एक बात और है कि बाढ़ से बर्बाद हुए बुनियादी ढांचे, घरों, सड़कों, बांधों, तटबंधों, बिजली लाइनों और पुलों को दोबारा बनाना बेहद महंगा है.


पाक सरकार अपनी नाकामयाबी से कर रही किनारा


पाकिस्तान के साथ मसला ये है कि यहां की संघीय और प्रांतीय सरकारें इस प्रलयंकारी बाढ़ को सार्वजनिक क्षेत्र की विकास योजना की एक बड़ी विफलता के तौर पर  स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. ये सरकारें तुरंत इस आपदा के लिए जलवायु परिवर्तन को जवाबदेह ठहराने में देर नहीं लगाती है. जबकि यहां बाढ़ के आने और उससे हुए भारी नुकसान के लिए इमारतों के खराब डिजाइन, निर्माण के लिए दिए गए दिशा-निर्देश, निर्माण सामग्री के मानकों का दोयम दर्जे का होना और बेशक बगैर प्लान के बसी इंसानी बस्तियों का भी अहम रोल है. 


पाकिस्तान यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि उसका विकास मॉडल कारगर नहीं है. विकास का ये मॉडल न तो आपदा के लिए मुफीद है और न ही जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से स्मार्ट है.  बाढ़ से हुए नुकसान के लिए यहां के नीति निर्माता, सार्वजनिक नीति विश्लेषक और यहां तक की पाकिस्तानी मीडिया भी भ्रामक और भाग्यवादी मिथकों का हवाला दे रहे हैं.  वो मान के बैठे हैं कि जैसे ये तो होना ही था. जैसे कि प्राकृतिक आपदा से निपटने की कमजोरियों को कम करने के लिए कोई कदम उठाया ही नहीं जा सकता है. 


जान-माल, पशुधन, घरों और खड़ी फसलों के नुकसान के लिए पाक की संघीय और प्रांतीय सरकारों की प्रतिक्रिया त्वरित और उम्मीद के मुताबिक थीं. आनन-फानन में आपदा-प्रबंधनअधिकारियों के जरिए आपातकालीन आपूर्ति को बढ़ा दिया गया. उसके बाद बेनज़ीर आय सहायता कार्यक्रम (Benazir Income Support Programme) के जरिए बाढ़ पीड़ितों को नकद अनुदान दिया गया, लेकिन न तो आर्थिक नुकसान का आकलन करने की जरूरत समझी गई और न ही जलवायु के मुताबिक पुनर्निर्माण (Climate-Resilient Reconstruction) पर आने वाली लागत पर ध्यान दिया गया.


गौरतलब है कि 2005 के भूकंप के बाद दोबारा से देश बेहतर बनाने की पाकिस्तान की पिछली कोशिशें कामयाब नहीं हुई हैं. इस तरह से देखा जाए तो किस मुंह से पाकिस्तान के राष्ट्रीय और प्रांतीय नीति निर्धारक ये कह सकते हैं कि हम बाढ़ से हुए नुकसान से निपटने की बेहतर कोशिशें कर रहे हैं. हम जलवायु से आई इस आपदा से निपटने की बेहतर तैयारी कर रहे हैं.


जैसा कि वास्तुकार आरिफ हसन (Arif Hasan) ने हाल ही में कहा था "यहां फिर से बाढ़ आ जाएगी." बाढ़ का बार-बार आना पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहे इस देश के लिए बेहद महंगा साबित होगा.केवल बाढ़ पीड़ितों को नकद अनुदान देकर काम नहीं चलने वाला है. इसके साथ ही इस तरह की आपदाओं के जोखिम से बचने और जान-माल के बीमा के लिए पांच अहम क्षेत्रों पर ध्यान देना जरूरी है. इन क्षेत्रों में रोजी-रोटी के लिए कमाने वाले लोग, पशु धन, खड़ी फसलें, छोटे और मझोले उद्यम शामिल हैं. 


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