Election Commission of India Power: पिछले दिनों केंद्र की मोदी सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (सेवा की नियुक्ति शर्तें और कार्यकाल) बिल राज्यसभा में पेश किया. इसे लेकर विपक्ष ने काफी हंगामा किया. विपक्षी दल लगातार इसका विरोध कर रहे हैं. विपक्ष के नेताओं का कहना है कि सरकार चुनाव आयोग को अपने हाथों की कठपुतली बनाना चाहती है. ऐसा पहली बार नहीं है कि सरकार इस तरह चुनाव आयोग के अधिकार को कम करने की कोशिश कर रही है. पहले भी इस तरह के कुछ बदलाव हुए हैं.
बता दें कि भारतीय निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1950 को की गई थी. शुरुआत में चुनाव आयोग में सिर्फ एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त होते थे, लेकिन मौजूदा समय में चुनाव आयोग में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्त होते हैं.
ये हैं कुछ बड़े बदलावसमय के साथ-साथ चुनाव आयोग को लेकर कई बदलाव किए गए. कभी आयोग को पावर दी गई, तो कभी आयोग की शक्ति कम करने की कोशिश की गई. आइए आपको बताते हैं चुनाव आयोग में अब तक क्या-क्या बड़े बदलाव हो चुके हैं.
दो अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति चुनाव आयोग में सबसे बड़ा और पहला बदलाव 16 अक्टूबर 1989 को किया गया. तब पहली बार दो अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति की गई थी. हालांकि, पहली बार नियुक्त किए गए दो अतिरिक्त आयुक्तों का कार्यकाल 1 जनवरी 1990 तक ही चला. इसके बाद 1 अक्टूबर 1993 को दो अतिरिक्त निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की गई थी. तब से आयोग की बहु-सदस्यीय अवधारणा ही चली आ रही है. इसके तहत आयोग का निर्णय बहुमत के आधार पर किया जाता है.
बराबर का दर्जासाल 1991 के मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त (सेवा की शर्तें) कानून में अध्यादेश के जरिए संशोधन किया गया. इसके तहत मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त को बराबर का दर्जा दिया गया और रिटायरमेंट की उम्र 65 साल तय की गई.
सैलरी और सर्विस कंडीशंस में बदलाव10 अगस्त, 2023 को पेश किए गए CEC बिल में सर्च कमेटी के संदर्भ में एक संशोधन किया गया. साथ ही, मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की सैलरी और सर्विस कंडीशंस में भी संशोधन किया गया.
प्रॉक्सी के जरिए मतदान का अधिकार22 मार्च 2003 को संसद में निर्वाचन कानून (संशोधन) अधिनियम, 2003 को लागू किया गया था और यह 22 सितंबर 2003 से प्रभावी हुआ था. अधिनियम और नियमों में संशोधनों के बाद सशस्त्र बलों के सेवा मतदाताओं और उन बलों के सदस्यों को प्रॉक्सी के जरिए मतदान का अधिकार दिया गया था, जिन पर सेना अधिनियम के प्रावधान लागू होते हैं. ये सेवा मतदाता, जो प्रॉक्सी के माध्यम से मत देने का विकल्प अपनाते हैं, उन्हें एक निर्धारित फॉर्मेट में एक प्रॉक्सी की नियुक्ति करनी होती है.
बदलाव की तैयारी में मोदी सरकारअभी तक का सबसे बड़ा बदलाव केंद्र की मोदी सरकार लाने की तैयारी में है, जिससे चुनाव आयोग की शक्ति सीमित होने की बात कही जा रही है. दरअसल, मोदी सरकार राज्यसभा में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़ा बिल राज्यसभा में इसी महीने पेश कर चुकी है. इस बिल को लेकर विवाद भी है.
दरअसल, इस विधेयक के मुताबिक अब मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी करेगी. इस कमेटी में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री भी सदस्य होंगे. नए विधेयक में CJI को शामिल नहीं किया गया है.
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