Bihar Nitish Kumar Politics: नीतीश कुमार आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री (Bihar CM) बने हैं, ये भारत में नया रिकॉर्ड है. देश में इतनी बार एक भी नेता ने कभी भी मुख्यमंत्री पद की शपथ नहीं ली. इस बार मुख्यमंत्री बनने के लिए नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने बीजेपी से नाता तोड़कर लालू यादव (Lalu Yadav) की पार्टी आरजेडी (RJD) से नाता जोड़ा है. दिल तोड़ने और दल जोड़ने की नीतीश कुमार की अदा पुरानी है. पिछले करीब 22 साल से नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं. इस दौरान अधिकतर वो बीजेपी के साथ रहे, लेकिन फिर आजेडी का भी साथ लिया.


बिहार में सत्ता के जोड़तोड़ की बात करें तो नीतीश कुमार का पिछले 22 साल में कम से कम चार बार बीजेपी के लिए दिल बदला है. साल 2000 में पहली बार मार्च के महीने में नीतीश NDA के समर्थन से बिहार के मुख्यमंत्री बने, लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाए और महज 7 दिन बाद ही इस्तीफा देना पड़ा.


1985 में शुरुआत, 2000 में पहली बार CM


नीतीश कुमार बिहार के बख्तियारपुर में पैदा हुए, तारीख थी 1 मार्च 1957. साल 1972 में नीतीश इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हुए. कुछ समय उन्होंने राज्य बिजली विभाग में नौकरी भी की, लेकिन राजनीति का मोह उन्हें ज्यादा दिन नौकरी में बांधे नहीं रख सका. लोहिया आंदोलन से नीतीश छात्र जीवन से ही जुड़े थे. आगे चलकर उन्होंने इसी आंदोलन की थाती संभाली. 1985 में नीतीश जनता दल के टिकट पर पहली बार हरनौत से विधायक बने.


लालू से दोस्ती और बगावत की कहानी


लालू यादव और नीतीश कुमार छात्र जीवन से ही एक दूसरे को जानते थे. दोनों ही छात्र राजनीति में थे. दोनों ही लोहिया आंदोलन से जुड़े थे. जब चुनावी सफर में दोनों साथ आए तो शुरुआत में नीतीश कुमार लालू यादव के बेहद करीब थे. जब साल 1990 में लालू यादव बिहार के पहली बार मुख्यमंत्री बने तो उसमें नीतीश की रणनीति की भी अहम भूमिका थी, लेकिन चार साल बाद ही नीतीश और लालू के रास्ते जुदा हो गए. नीतीश ने बगावत कर दी, कारण था जनता दल पर वर्चस्व का. लालू को छोड़कर नीतीश ने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई.


1996 में मिला बगावत का इनाम


1994 में नीतीश ने लालू का साथ छोड़ा, लेकिन तब तक वो बिहार के बड़े नेताओं में शुमार हो गए थे, लिहाजा कई इलाकों में जनसमर्थन उनके पास था. 1996 में पहली बार नीतीश और बीजेपी साथ आए. तब अटल बिहार वाजपेयी की 13 दिन की सरकार बनी थी. नीतीश इस सरकार में कैबिनट मंत्री बने. हालांकि सरकार 13 दिन बाद ही गिर गई, लेकिन नीतीश और बीजेपी के बीच नजदीकियां बिहार को लेकर बढ़ने लगी थीं.


2000 से बिहार में नीतीश राज, CM की हैट्रिक


2000 दशक की शुरुआत में बिहार से नीतीश मजबूत होते गए और लालू यादव कमजोर. साल 2000 में ही पहली बार मार्च के महीने में नीतीश NDA के समर्थन से बिहार के मुख्यमंत्री बने, लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाए और महज 7 दिन बाद ही इस्तीफा देना पड़ा. 2000 में बिहार में NDA ने 151 और RJD-कांग्रेस गठबंधन ने 159 सीटें जीती थीं. बहुमत के लिए 163 सीटें चाहिए थीं, जिसमें दोनों ही गठबंधन फेल रहे. तब बिहार विधानसभा में 324 सीटें हुआ करती थीं, वो संयुक्त बिहार था. इसके बाद 2000 के नवंबर में बिहार से अलग होकर झारखंड अलग राज्य बना, उसके बाद से बिहार विधानसभा की सीटें घटकर 243 हो गईं.


JDU कैसे बना?


दरअसल साल 1996 में लालू यादव और शरद यादव में मनमुटाव हुआ, जिसके बाद लालू ने अपनी अलग पार्टी आरजेडी बना ली थी. बिहार में बदलते समीकरण को देखते हुए नीतीश ने साल 2003 में शरद यादव की जनता दल का विलय कर लिया और जनता दल यूनाइटेड यानी जेडीयू अस्तित्व में आई. पार्टी के मुखिया नीतीश कुमार बने.


2005 और 2010 में नीतीश का कमाल


बिहार में साल 2005 में हुए विधानसभा चुनावों में नीतीश, बीजेपी गठबंधन ने पूर्ण बहुमत हासिल किया. नवंबर में नीतीश दूसरी बार सीएम बने और 5 साल सरकार चलाई. साल 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर नीतीश-बीजेपी गठबंधन को बहुमत मिला, नीतीश ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.


2013 में आई संबंधों में खटास


तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री बनकर नीतीश कुमार एक समय प्रधानमंत्री पद के भी दावेदार माने जाने लगे. इसी दौरान साल 2013 में करीब 17 साल बाद जेडीयू-बीजेपी गठबंधन टूटा. बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को 2014 लोकसभा चुनावों के लिए NDA की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया. नीतीश ने उस समय बीजेपी से अलग होने के लिए कम्युनलिज्म यानी सांप्रदायिकता का हवाला दिया था.


2014 में लालू-नीतीश में दोस्ती


बीजेपी से अलगाव के बाद नीतीश ने बिहार में लालू यादव से हाथ मिलाया. तब नीतीश-लालू और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बना, लेकिन साल 2014 आते आते गठबंधन में खटास दिखने लगी. नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया. जीतन राम मांझी 6 महीने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बन गए. बिहार में 2015 में विधानसभा चुनाव होने थे. चुनाव से ऐन पहले नीतीश ने मांझी को हटाकर चौथी बार सीएम पद की शपथ ली. चुनावों में महागठबंधन को 178 सीटें मिलीं. नीतीश 2015 में पांचवीं बार बिहार के सीएम बने. लालू के छोटे बेटे तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने.


2017 में लालू को छोड़ा, बीजेपी को गले लगाया


महागठबंधन दो साल से भी कम समय में टूट गया. नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर महागठबंधन से किनारा कर लिया. डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का नाम IRCTC घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग में सामने आया था. नीतीश ने इसी को मौका बनाकर लालू को दूर छिटक दिया. फिर जेडीयू और बीजेपी करीब आए और 24 घंटे के अंदर ही बीजेपी के समर्थन से नीतीश फिर से मुख्यमंत्री बन गए.


2020 में फिर बीजेपी-नीतीश में खटास


2020 विधानसभा चुनावों से पहले जेडीयू और बीजेपी एक दूसरे पर निशाना लगाने लगे. खबरें थीं कि बीजेपी राज्य में किसी और को मुख्यमंत्री का चेहरा बना सकती है, हालांकि बाद में बीजेपी ने नीतीश को ही सीएम प्रत्याशी घोषित किया. जेडीयू और बीजेपी दोनों बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़े. अब तक बीजेपी बिहार में छोटे भाई की भूमिका में थी, लेकिन अब वो बराबरी पर आ गई. दोनों के बीच संबंधों में दरार आने लगी थी. 


चिराग से हुआ जेडीयू को नुकसान!


चिराग पासवान ने आग में घी का काम किया. चिराग ने एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया. इससे बीजेपी को बड़ा फायदा हुआ और नीतीश का बड़ा घाटा. चिराग में जेडीयू प्रत्याशियों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे, नतीजा जेडीयू की सीटें घटकर 43 रन गईं जबकि बीजेपी की सीटें 21 से बढ़कर 74 हो गईं. हालांकि सरकार तब भी जेडीयू-बीजेपी की ही बनी और नीतीश कुमार सातवीं बार सीएम बने.


इस बार फाइनल पड़ी दरार?


हालांकि राजनीति में कुछ भी फाइनल नहीं होता. हो सकता है कल को नीतीश कुमार (Nitish Kumar) फिर लालू यादव की पार्टी आरजेडी (RJD)  का साथ छोड़कर बीजेपी (BJP) से दोस्ती कर लें, लेकिन इस बार अलगाव का जो कारण बताया गया है वो बेहद गंभीर है. जेडीयू ने बीजेपी पर महाराष्ट्र की तर्ज पर तोड़ने का आरोप लगाया है. नीतीश आठवीं बार मुख्यमंत्री (Bihar CM) तो बन गए हैं, लेकिन उनके दिल और उनकी राजनीति दोनों का पता नहीं है कि कब बदल जाएं?


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