Sandeep Aur Pinky Faraar Review: पहले यही जान लें कि यहां संदीप लड़का नहीं है और पिंकी लड़की नहीं है. जब नाम में कनफ्यूजन हो तो फिल्म कैसे सीधी-सरल होगी. वैसे यह अच्छा हुआ कि निर्देशक दिबाकर बनर्जी की तीन-चार साल पहले बनी यह फिल्म अटकी रहने के बाद अब रिलीज हो रही है. घोटालेबाज बैंक और बैंकर आम आदमी को कैसे लूट रहे हैं, यह बीते दो-एक बरस में खूब सामने आया है. ऐसे में यह फिल्म आज की लगती है. मगर समस्या यह है कि थ्रिलर की तरह शुरू होने वाली फिल्म धीरे-धीरे शिथिल पड़ जाती है और इंटरवल आते-आते इसमें कहने को कुछ खास नहीं रह जाता.


खोसला का घोसला (2006), ओए लकी लकी ओए (2008) तथा लव सेक्स और धोखा (2010) तक दिबाकर मिडिल क्लास के छोटे-छोटे सपनों और नन्ही-नन्हीं इच्छाओं की कहानियां दिखाते रहे. उन्हें सफलता मिली. मगर फिर उन्होंने पाला बदला. बड़े निर्माताओं, बड़े घरों और बड़े सपनों की कहानियां बुननी शुरू की तो गाड़ी पटरी से उतर गई. नतीजा आया शंघाई (2012) और डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी (2015). लस्ट स्टोरीज (2018) और घोस्ट स्टोरीज (2020) जैसी एंथोलॉजी फिल्मों में भी उनकी कहानियां प्रभावहीन थीं. अब दिबाकर कारपोरेट-बैंकिंग और देसी किरदारों का मिक्स संदीप और पिंकी फरार के रूप में लाए हैं.



छोटे-बड़े शहर और समाज के ऊंचे-नीचे तबके की इस कॉकटेल में एक तरफ मर्दवादी माहौल, हरियाणा-दिल्ली के जाटों की कड़क बोली और कठोर पुलिसवाले हैं तो दूसरी तरफ कारपोरेट दुनिया में अपनी महत्वाकांक्षा से सेंध लगाने और बॉस-बॉयफ्रेंड से धोखा खाने वाली नायिका सैंडी उर्फ संदीप कौर (परिणीति चोपड़ा) है. गणित और बैंकिंग में गोल्ड मैडलिस्ट संदीप बॉस के साथ मिलकर प्राइवेट परिवर्तन बैंक की लोगों को लूटने वाली फ्रॉड स्कीमों में शामिल होती है.



फ्रॉड में फंसने और प्रेग्नेंट होने के बाद वह दुनिया को सचाई बताने की धमकी देती है. नतीजा यह कि बैंकर बॉस भ्रष्ट पुलिसवाले त्यागी (जयदीप अहलावत) को उसकी सुपारी दे देता है. त्यागी साल भर से सस्पेंड चल रहे अपने जूनियर पिंकी उर्फ सतिंदर दहिया (अर्जुन कपूर) को संदीप का अपहरण करके ठिकाने लगाने का काम सौंपता है. पिंकी को कुछ शक होता है और वह निशानदेही के तौर पर दूसरी कार का नंबर त्यागी को बता देता है. त्यागी के पुलिसवाले एक नाके पर उस कार के सवारों को गोलियों से भून देते हैं और पिंकी जान जाता है कि त्यागी उसे भी संदीप के साथ ठिकाने लगाना चाहता है. यहां से संदीप और पिंकी फरार होते हैं. आगे-आगे दोनों और पीछे-पीछे पुलिस. गुरुग्राम में शुरु हुई कहानी पिथौरागढ़ पहुंच जाती है. भारत-नेपाल बॉर्डर के पास.


इसके बाद कहानी में अटकलें झूलती हैं कि त्यागी-पिंकी में समझौता होगा या संदीप को ठिकाने लगा कर पिंकी नौकरी वापस पा लेगा. इस बीच पिंकी संदीप की मदद करता भी दिखता है. साथ ही बुजुर्ग दंपति के रूप में रघुवीर यादव और नीना गुप्ता कहानी में आते हैं और तनाव थोड़ा कम होता है. परंतु थ्रिल खत्म हो जाता है. संदीप और पिंकी को बुजुर्ग दंपती के घर में शरण मिलती है और कहानी बिखरने लगती है.



संदीप चाहती है कि पिंकी उसे बॉर्डर पार करा के नेपाल पहुंचा दे तो वह उसे दस लाख रुपये देगी. परंतु समस्या यह कि उसके सारे कार्ड ब्लॉक हो चुके हैं. ये दोनों किरदार समाज के ऊंचे और नीचे तबके से हैं और यहां इनकी बातचीत, तनाव और संवेदनाओं के बीच कुछ दृश्य हमारे समय की सचाई को सामने लाते हैं. मगर फिल्म को मजबूत बनाने के लिए इतना काफी नहीं. इन दृश्यों में दोनों किरदारों की तमाम परतें खुलती हैं और परिणीति अपनी पिछली फिल्मों के मुकाबले सधी नजर आती हैं. जबकि अर्जुन कपूर कोशिशों के बावजूद बॉलीवुड हीरो की इमेज से बाहर नहीं निकलते. अर्जुन-परिणीति की जोड़ी इशकजादे (2012) और नमस्ते इंग्लैंड (2018) के बाद फिर सामने है, लेकिन प्रभाव नहीं छोड़ती. पिछले साल वेबसीरीज पाताल लोक में शानदार भूमिका निभाने वाले जयदीप अहलावत यहां ठीकठाक हैं. रघुवीर यादव और नीना गुप्ता फिल्म को बीच में सहारा देते हैं. चर्चित वेबसीरीज पंचायत में भी यह जोड़ी बीते बरस दिखी थी. फिल्म का क्लाइमेक्स निराश करता है.



दिबाकर ने फिल्म को रीयल के नजदीक रखने की कोशिश की है. कहानी में वह बैंक फ्रॉड, उससे आम जनों को होने वाली मुश्किलों, समाज के ऊंचे-नीचे तबके के बीच की खाई से लेकर थ्रिलर, कॉमेडी और सलमान खान के एक फैन की शादी-नाच-गाना तक डालते हैं. मगर संतुलन कायम नहीं रख पाते. नतीजा यह कि संभावना के साथ शुरू होने वाली फिल्म बीच रास्ते में ढलान की तरफ बढ़ जाती है. पिथौरागढ़ के लोकेशन खूबसूरत हैं और सिनेमैटोग्राफर अनिल मेहता ने इन्हें शिद्दत से कैमरे में कैद किया है. गुंजायश होने के बावजूद फिल्म में संगीत को सही ढंग से नहीं सजाया गया. बतौर निर्देशक दिबाकर कहानी को साध नहीं पाते.


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