Chhalaang Review: जीत अक्सर उनकी होती है, जो छलांग लगा कर अपनी कमियों को लांघना जानते हैं. जो जीत जाने तक हार को टालते रहते हैं. यह खुद को पहचानने और जुनून से आगे बढ़ने की छलांग है. निर्देशक हंसल मेहता की इस फिल्म में एक सरल मैसेज है, जो अपनी आत्मा की आवाज से कनेक्ट होने को प्रेरित करता है. हालांकि फिल्म में तेजी या चमक नहीं है लेकिन राजकुमार राव ने अपनी परफॉरमेंस से इसे संभाला है. इसके बावजूद हंसल-राजकुमार की जोड़ी वाली फिल्मों (शाहिद, सिटी लाइट्स, अलीगढ़, ओमेर्टा) जैसी धार इस कंटेंट में नजर नहीं आती. बॉलीवुड इन दिनों उत्तर भारत के छोटे शहरों में जो मध्यमवर्गीय-प्रेरक कहानियां तलाश रहा है, यह फिल्म हरियाणा की पृष्ठभूमि में उसी की नई कड़ी है.


सर छोटूराम स्कूल में पीटी के टीचर महेंदर उर्फ मोंटू (राजकुमार राव) ने यहीं पढ़ाई की और वकील पिता (सतीश कौशिक) के एक फोन कॉल पर प्रिंसिपल ऊषा (ईला अरुण) ने उन्हें नौकरी पर रख लिया था. हालांकि मोंटू को बतौर टीचर खेल में बच्चों के करियर से कोई खास लगाव नहीं है.


पारंपरिक मनुवादी संस्कृति के आधुनिक हमलावर संस्करण से मोंटू का यहां कोई कनेक्ट नहीं है और वह भगवा भी किसी तरह धारण नहीं करता परंतु वेलेंटाइन डे के विरोध में मैदान में उतर कर प्रेमी जोड़ों को अपमानित करता है. उसे नहीं पता कि प्यार क्या है. लेकिन स्कूल में नई कंप्यूटर टीजर नीलम (नुसरत भरूचा) के आने के बाद वह उसे इंप्रेस करने की जुगत भिड़ाने लगता है.


बात बनने वाली होती है कि बाजी उलझ जाती है. स्कूल में नए और ट्रेंड पीटी टीचर इंदर मोहन सिंह (जीशान अली) की एंट्री होती है. वह यूनिवर्सिटी में नीलम का सीनियर था. क्या सिंह सर अब नीलम मैडम और बच्चों पर मोंटी से अधिक इंप्रेशन जमा पाएंगे. यह हुआ तो मोंटू का क्या होगा, जो मानता है कि उसकी गली में आने के बाद शेर भी कुत्ता बन जाता है.


‘छलांग’ खेल-कूद और फिजिकल फिटनेस के बहाने कई बातें करती है. वह कहती है कि खेलोगे कूदोगे होगे खराब वाला फार्मूला बासी पड़ चुका है. हरियाणा के खिलाड़ियों ने बीते कुछ साल में देश-दुनिया में अपनी धाक जमाई है. लेकिन अब भी समस्या है कि लोग सचिन तेंदुलकर, विराट कोहली, सानिया नेहवाल, विश्वनाथन आनंद से लेकर गावस्कर और कपिल देव तक अपने घर में पलते-बढ़ते देखना चाहते हैं लेकिन उनके मां-बाप बनकर सोचना नहीं चाहते.


मोंटू कहता है कि बच्चों से पहले उनके मां-बाप को बदलना पड़ेगा. हंसल मेहता ने हल्की-फुल्की कॉमेडी के अंदाज में कहानी कही है. उन्होंने स्कूल के बैकड्रॉप में किशोरावस्था के प्रेम की गुंजाइश इस कहानी में बनाई जरूर लेकिन उन्होंने विस्तार नहीं दिया. इक्का-दुक्का सीन में इसे तेजी से समेट दिया. फिल्म धीमी शुरुआत के बाद फास्ट ट्रेक पर आती है लेकिन उसका घेरा बड़ा नहीं है.


अमेजन प्राइम वीडियो पर आज रिलीज हुई इस फिल्म के किरदारों में भी हंसल ने कोई प्रयोग नहीं किया. पीटी टीचर के रूप में मोंटी और सिंह विपरीत छोरों पर खड़े हैं और इनके बीच में झूलती है नीलम. मोंटी और नीलम के माता-पिता भी यहां हैं. स्कूल में कभी मोंटी के टीचर रहे शुक्ला जी (सौरभ शुक्ला) का किरदार यहां रोचक है. सीमित किरदारों के साथ मेहता ने सुरक्षित दायरे में फिल्म का ग्राफ गढ़ा है. दायरा सीमित होने से ग्राफ ऊंचे नहीं चढ़ पाता.


मोंटी और सिंह सर के बीच बच्चों के बहाने खेल के मैदान में (बास्केटबॉल, रिले रेस और कबड्डी) प्रतिद्वंद्विता से फिल्म में एक समय के बाद कसावट खत्म हो जाती है. यह स्क्रिप्ट की कमजोरी है. यहां से आप जान जाते हैं कि खेल के नतीजे कैसे-क्या आएंगे. नीलम मैडम किसके पक्ष में वोट देंगी. अतः एक समय बाद छलांग रोमांच खो देती है.


कहानी में हंसल ने रोमांस को अधिक नहीं उभारा. रोमांस के नाम पर हीरो और उसके करीबियों के साथ हीरोइन के शराब पीने के सीन जरूर नए हैं. जीशान अली, सौरभ शुक्ला और सतीश कौशिक ने अपनी भूमिकाएं सहज और रोमांचक ढंग से निभाई हैं.


‘छलांग’ की कहानी में दीवाली की रंगीन रोशनियों वाली लपक-झपक नहीं है. न ही इसमें ग्लैमर या तड़क भड़क है. अंत में आने वाला हनी सिंह का गाना टाइम स्पेयर नी करादां... आकर्षक और देखने-सुनने में अच्छा है. नॉन ग्लैमरस लुक में नुसरत अच्छी लगी हैं और उन्होंने राजकुमार राव के साथ कंधे से कंधा मिलाने की पूरी कोशिश की है. जबकि राजकुमार हमेशा की तरह अपने किरदार में मंजे हुए नजर आए हैं. इतना जरूर है कि पिछले मौकों की तरह उन्हें हंसल मेहता की तरफ से कड़क किरदार नहीं मिला.