स्टार कास्ट: कंगना रनौत, सोहम शाह, हितेन कुमार, ईशा तिवारी, मनु नारायण, अनीषा जोशी
डायरेक्टर: हंसल मेहता
रेटिंग: *** (तीन स्टार)


बॉलीवुड का ये ऐसा हसीन दौर चल है जब पर्दे पर महिलाओं की जिंदगी के अलग-अलग पहलू को उतारने की कोशिश की जा रही है. 'क्वीन', 'पार्च्ड', 'पिंक' और 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' जैसी फिल्में जब आईं तो खूब बहस भी हुई. 2014 में जब कंगना रनौत की फिल्म 'क्वीन' आई थी तो एक लड़की का अकेले हनीमून पर जाना दर्शकों को अटपटा लगा था लेकिन कहानी इतनी दिलचस्प थी उसे खूब पसंद किया गया. अब कंगना की आज रिलीज हुई फिल्म 'सिमरन' इन सभी फिल्मों को एक अलग लेवल पर ले गई है.



ये फिल्म बहुत ही साधारण है और उसकी कहानी भी...लेकिन फिल्म की लीड कैरेक्टर को जिस तरीके से दिखाया गया है वो बॉलीवुड इंडस्ट्री को अपनी बोल्डनेस के अगले पड़ाव पर ले जाता है. ये फिल्म गुजराती प्रफुल्ल पटेल के बारे में है जो बिंदास है. उसके कैरेक्टर को बॉलीवुड की आम हीरोईनो जैसे नहीं परोसा गया है. उसके किरदार को पर्दे पर उतारने में ये सोचकर कंजूसी भी नहीं की गई है कि दर्शक उसे कहीं खारिज तो नहीं कर देंगे. हमारे समाज में जिसे 'आइडियल' हीरो या हीरोइन कहते हैं उस इमेज से यहां किरदार को बाहर निकाल दिया गया है. इस फिल्म की हीरोइन तलाकशुदा है, जुआ खेलती है, शराब पीती है, चोरी करती है और बिना प्रोटेक्शन सेक्स नहीं करती है. वो जैसी है, खुद से प्यार करती है.


कहानी


अमेरिका में रहने वाली 30 साल की तलाकशुदा प्रफुल्ल पटेल (कंगना रनौत) अपने पैरेंट्स के साथ रहती है औऱ होटल में काम करती है. वो अपना घर खरीदना चाहती है ताकि वो अकेले रह सके और दोस्तों के साथ जब चाहे समय बिता सके.



लेकिन इसी बीच उसे जुआ खेलने की लत लग जाती है और वो सारा पैसा हार जाती है. इसके बाद उधार लेकर करीब 50 हज़ार डॉलर भी हार जाती है. जब उसे पैसे लौटाने होते हैं तो वो बैंक लूटने लगती है. लेकिन एक दिन चोरी के पैसे भी चोरी हो जाते हैं. इसके बाद कंगना क्या उधार के पैसे चुका  पाती हैं? क्या पुलिस उन्हें पकड़ पाती है? ये सब जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी. साथ ही फिल्म देखने पर ही आपको पता चलेगा कि इसका नाम 'सिमरन' क्यों है?


कमिया


ये कहानी फिल्मी नहीं है, बल्कि वास्तविक कहानी से प्रेरित है. फिल्म में बैंक लूटने को जितनी आसानी से दिखाया गया है वो हजम नहीं होता और बहुत ही मजाकिया लगता है. इसे नज़र अंदाज इसलिए भी नहीं किया जा सकता क्योंकि ये फिल्म का एक अहम हिस्सा है. इससे पहले 'शाहिद' (2012), 'सिटीलाइट्स' (2014), 'अलीगढ़' (2015) जैसी फिल्मों में बारीकी से हर फ्रेम पर काम करने वाले डायरेक्टर हंसल मेहता का ध्यान इस पर क्यों नहीं गया ये समझ से परे है.


एक्टिंग


हंसल मेहता जैसा डायरेक्टर हो और बेहतरीन अदाकाराओं में शुमार की जाने वाली कंगना रनौत हों...तो फैंस को हमेशा ही कुछ अलग देखने की उम्मीद रहती है. ये फिल्म काफी हद तक उम्मीदों पर खरी भी उतरती है. फिल्म की कहानी में कई जगह खामियां होने के बावजूद भी कंगना रनौत की शानदार एक्टिंग की बदौलत ये फिल्म देखने लायक है.



साथ ही कंगना ने ये भी साबित कर दिया है कि वो अपने दम पर फिल्में चला  सकती हैं.


फिल्म में बाकी कलाकारों के पास भी उभरने का काफी मौका था लेकिन कंगना के सामने कोई टिक नहीं पाया है. सोहम शाह को फिल्म में काफी जगह मिली है लेकिन बावजूद इसके वो कोई छाप नहीं छोड़ पाए हैं.


क्यों देखें


इससे पहले 'क्वीन' जैसी फिल्म करके कंगना ने अपना बेंचमार्क सेट कर लिया है. उससे बाकी किसी भी फिल्म की तुलना नहीं की जानी चाहिए. क्योंकि 'क्वीन' जैसी फिल्में बार-बार नहीं बनतीं. अगर आप कंगना रनौत के फैन हैं तो 'सिमरन' देखेंगे ही, लेकिन अगर नहीं हैं तो भी इसे फैमिली के साथ देख सकते हैं. वजह ये है कि इसे देखकर ये समझ में आएगा कि अगर फिल्म की कहानी साधारण हो तो भी उसे एक्टिंग की बदौलत देखने लायक बनाया जा सकता है. फिल्म कहीं-कहीं स्लो है लेकिन फिर भी बोर नहीं करती.




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