भारतीय सिनेमा में एक से बढ़कर दिग्गज आए जिन्होंने दुनियाभर में नाम कमाया. उनकी फिल्मों के चर्चे ना सिर्फ भारत में हुए बल्कि विदेशों में भी खूब पसंद किए गए. ऐसा ही एक शख्स भारतीय सिनेमा में आया था जिन्हें मरणोपरांत भारत रत्न भी मिला. उनका नाम सत्यजीत रे है जिनकी आज 103वीं बर्थ एनिवर्सरी है. सत्यजीत रे अलग तरह की फिल्में बनाने के लिए पहचाने जाते थे और उनका नाम भारतीय सिनेमा के बेहतरीन निर्देशकों में से एक थे.


सत्यजीत रे को उनके करियर में 36 नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स मिले. वो एक ऐसी शख्सियत थे जिन्हें पुरस्कार देने के लिए फ्रांस के राष्ट्रपति भारत आए थे. उनका जन्म कब हुआ, उन्होंने कौन-कौन सी फिल्में बनाईं, उनकी क्या-क्या उपलब्धियां रहीं और उनका निधन कब हुआ? 


सत्यजीत रे का फैमिली बैकग्राउंड


2 मई 1921 को सत्यजीत रे का जन्म कोलकाता में हुआ था. इनके पिता सुकुमार रे एक लेखक थे जिन्होंने कई बंगाली फिल्में लिखीं. सत्यजीत रे एक कमर्शियल आर्टिस्ट थे लेकिन स्वतंत्र फिल्मों की तरफ उनका झुकाव हमेशा रहा है. सत्यजीत रे ने जब फ्रेंच फिल्ममेकर जीन रेनॉयर से मुलाकात की तो फिल्मों की तरफ उनका रुझान बढ़ा.




सत्यजीत रे का 40 साल का फिल्मी करियर था जिसमें उन्होंने 36 फिल्मों का निर्देशन किया जिसमें फीचर्स फिल्में, डॉक्यूमेंट्री और शॉर्ट फिल्में शामिल हैं. उन्होंने अपनी कला के लिए दुनियाभर के लगभग सभी बड़े सम्मान जीते.


सत्यजीत रे के करियर की शुरुआत


साल 1955 में सत्यजीत रे की पहली फिल्म पाथेर पांचाली रिलीज हुई थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उस फिल्म ने 11 इंटरनेशनल अवॉर्ड्स जीते थे. उस फिल्म को कान फिल्म फेस्टिवल में भी सम्मान मिला था और ब्रिटिश मैगजीन 'साइट एंड साउंड' में सर्वश्रेष्ठ 100 फिल्मों में शामिल किया.


बताया जाता है कि सत्यजीत रे ने अपनी पहली फिल्म काफी मुश्किलों में बनाई थी. सत्यजीत ने फिल्म की कहानी तो लिख ली लेकिन कोई पैसा लगाने को तैयार न हुआ. दो साल तक सत्यजीत रे प्रोड्यूसर ढूंढते रहे और फिर खुद पैसा लगाने की सोची. रिपोर्ट्स के मुताबिक, सत्यजीत रे ने अपनी पहली फिल्म पाथेर पांचाली में कुछ पैसे दोस्तों से उधार लेकर लगाए तो कुछ पैसा अपनी बीमा पॉलिसी से निकलवाया था.


सत्यजीत रे की फिल्में


फिल्म जैसे-तैसे शुरू हुई और अंतिम दिनों में पैसे खत्म हुए तो उन्हें अपनी पत्नी के गहने गिरवी रखने पड़े थे. फिल्म बनी और रिलीज हुई. तकलीफों में जो फिल्म बनाई गई थी वो इतनी कामयाबी हासिल की कि हर जगह उसके चर्चे हुए. इसके बाद सत्यजीत रे ने 'जलसागर', 'महासागर', 'अपराजितो', 'पारस पत्थर', 'अपुर संसार', 'चारूलता' जैसी कई बंगाली और हिंदी फिल्में बनाईं.


सत्यजीत रे के अवॉर्ड्स


रिपोर्ट्स के मुताबिक, सत्यजीत रे भारतीय सिनेमा के इकलौते ऐसे फिल्ममेकर थे जिन्हें इतने अवॉर्ड्स मिले थे. उन्होंने अपने करियर में 36 नेशनल अवॉर्ड्स जीते थे जो उन्हें 'उतरन', 'आगंतुक', 'गणशत्रु', 'घरे बायरे', 'शतरंज के खिलाड़ी', 'जय बाबा फेलूनाथ', 'हीरक राजर देशे', 'सदगति', 'रबींद्रनाथ टैगोर', 'तीन कन्या', 'देवी', 'जलसागर', 'पाथेर पांचाली' जैसी फिल्मों के लिए दिए गए थे. इनमें से 6 बेस्ट डायरेक्टर के अवॉर्ड्स थे तो 30 नेशनल अवॉर्ड्स बेस्ट फीचर फिल्म के लिए मिले.




साल 1988 में फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांसिस मिटरेंड ने सत्यजीत रे को फ्रांस के सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'लीजन ऑफ ऑनर' से सम्मानित करने का फैसला लिया.  हैरानी की बात ये है कि उस दौरान सत्यजीत रे कुछ बीमार थे तो वो खुद कोलकाता आकर उन्हें ये सम्मान दिए. सत्यजीत रे को 'दादासाहेब फाल्के पुरस्कार' भी मिला. भारत सरकार ने साल 1992 में सत्यजीत रे को मरणोपरांत 'भारत रत्न' से नवाजा था.


सत्यजीत रे का निधन


साल 1949 में सत्यजीत रे ने बिजोया रे के साथ शादी की थी जिनसे उन्हें एक बेटा संदीप रे है और वो फिल्म डायरेक्टर हैं. 23 अप्रैल 1992 को सत्यजीत रे का निधन हो गया था. बताया जाता है कि जब उनकी अंतिम यात्रा चल रही थी तब दुनियाभर से लोग पहुंचे थे और कोलकाता की गर्मी में कई किलोमीटर तक हजारों लोग सड़कों पर चले थे.


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