नई दिल्ली: ‘पद्मावत’ सभी राज्यों में रिलीज़ होगी. फ़िल्म की रिलीज़ रोकने के 4 राज्यों के नोटिफिकेशन पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. कोर्ट ने बाकी राज्यों से भी कहा है कि वो इस तरह का आदेश जारी न करें.


गुजरात, एमपी, राजस्थान और हरियाणा ने अपने यहां फिल्म की रिलीज़ रोकने के आदेश जारी किए थे. इसके खिलाफ फिल्म के निर्माताओं ने सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दी थी. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा, “पहली नज़र में ये मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक का है.”


कोर्ट ने कहा "जब केंद्रीय फिल्म सर्टिफिकेशन बोर्ड ने फिल्म को अनुमति दी है तो राज्य रोक नहीं लगा सकते. इसके लिए कानून-व्यवस्था की दलील देना गलत है. व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार का काम है. वो फिल्म के प्रदर्शन से जुड़े लोगों को सुरक्षा दे."


कोर्ट ने फिल्म निर्माताओं की तरफ से पेश वरिष्ठ वकीलों हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी की दलीलों को स्वीकार किया. दोनों ने बताया कि इससे पहले 2011 में प्रकाश झा की फिल्म 'आरक्षण' की रिलीज़ यूपी में रोकने के सरकारी आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया था. अगर किसी को CBFC के सर्टिफिकेट से दिक्कत हो तो वो ट्रिब्यूनल में अपील कर सकता है. राज्यों को रिलीज रोकने का अधिकार नहीं है.


2 राज्यों के लिए पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से बार बार आग्रह किया कि वो मामले की सुनवाई टाल दे. मेहता ने कहा, "निर्माता कह रहे हैं कि फिल्म 25 जनवरी को रिलीज होनी है. 1-2 दिन सुनवाई टालने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. CBFC का काम फिल्म को सर्टिफिकेट देना है. उसे किसी राज्य की विशेष स्थितियों का पता नहीं होता. कोर्ट कम से कम हमें अपनी बात रखने का मौका तो दे."


लेकिन कोर्ट ने सुनवाई टालने की मांग ठुकरा दी. सुनवाई की अगली तारीख 26 मार्च तय की गई है. साफ है कि अब ‘पद्मावत’ के रिलीज़ होने में कोई अड़चन नहीं है.



लाइन से भटकी बहस, कोर्ट ने रोका


हरीश साल्वे ने कोर्ट को बताया कि CBFC ने फिल्म का नाम बदलने के साथ ही जो बदलाव बताए उनका पालन किया गया है. फिल्म से पहले लंबा डिस्क्लेमर भी चलाया जाएगा कि फिल्म इतिहास पर आधारित नहीं है.


इसके बाद अचानक हरीश साल्वे ने कहा कि इतिहास से तोड़-मरोड़ भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत आता है. एक दिन मैं इस पर भी विस्तार से जिरह करूंगा.


इस दलील का तुषार मेहता ने ज़ोरदार विरोध किया. उन्होंने कहा, "भारत जैसे देश में ऐसी बात को स्वीकार नहीं किया जा सकता. अगर किसी फिल्म में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को शराब पीते हुए दिखाया जाए तो इसे कोई बर्दाश्त नहीं करेगा."


बात को लीक से हटते देख कर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने दखलंदाज़ी की. उन्होंने कहा, "प्राचीन साहित्य में कई ऐसी किताबें हैं, जिनका आज कोई अनुवाद नहीं करना चाहेगा. सरल भाषा में उन्हें पढ़ना विवादों को जन्म देगा. आप लोग इस चर्चा को रहने दें. चीफ जस्टिस के दखल के बाद वकीलों ने ‘पद्मावत’ की रिलीज़ पर दलीलें दोबारा शुरू कर दीं.



फिल्म धोबी घाट का भी ज़िक्र


चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने वकीलों से पूछा कि क्या आपको फिल्म धोबी घाट पर दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के बारे में जानकारी है. दरअसल, 2010 में हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस रहते दीपक मिश्रा ने ही ये आदेश दिया था.


वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने अपने सहयोगियों की मदद से इंटरनेट पर हाई कोर्ट का आदेश ढूंढा और बताया, “फिल्म के नाम में धोबी शब्द के इस्तेमाल पर याचिकाकर्ता ने एतराज़ जताया था. लेकिन हाई कोर्ट ने याचिका ठुकरा दी.


रोहतगी ने आगे बताया कि हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर ऐसी याचिका दाखिल करने के लिए जुर्माना भी लगाया था. इस पर कोर्ट में मौजूद सभी लोग हंस पड़े. खुद जस्टिस दीपक मिश्रा भी इस बात पर हंसते नज़र आए.


यहां देखें फिल्म का ट्रेलर...