नई दिल्ली: ऑनलाइन वीडियो स्ट्रीमिंग के दौर में फिल्मों के कंटेंट के साथ एक्सपेरिमेंट की आज़ादी बढ़ी है, जिसका ताज़ा उदाहरण नेटफ्लिक्स पर 1 जनवरी को रिलीज़ हुई हॉरर फिल्म 'घोस्ट स्टोरीज़' है. इस फिल्म को भारत के चार नामचीन निर्देशकों ज़ोया अख्तर, अनुराग कश्यप, दिबाकर बैनर्जी और करण जौहर ने डायरेक्ट किया है. चार निर्देशक और चार कहानियां. सभी कहानियां एक दूसरे से बिल्कुल जुदा. बस एक डोर जो सभी को जोड़ रही है वो है डर, लेकिन इन चारों कहानियों में ये डोर आपको मिलेगी नहीं. कोशिश करेंगे शायद तब भी नहीं.


घोस्ट स्टोरीज़ से पहले ज़ोया अख्तर, अनुराग कश्यप, दिबाकर बैनर्जी और करण जौहर फिल्म 'बॉम्बे टॉकीज़' और नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई 'लस्ट स्टोरीज़' को साथ में निर्देशित कर चुके हैं. अब एक बार फिर चारों ने साथ में काम किया है. फिल्में नॉर्मल मसाला हॉरर फिल्मों से हटकर हैं. यही वजह है कि शायद निर्देशकों ने डराने से ज्यादा क्राफ्ट पर काम किया है. करण जौहर की कड़ी को छोड़ बाकी तीनों में काफी नयापन है. इन्हें हॉरर जॉनरा में न रखकर साइकोलॉजिकल थ्रिलर जॉनरा में रखें तो ज्यादा सटीक होगा. फिल्मों का स्कीनप्ले कमज़ोर है, जिस वजह से डर का मौहाल नहीं बन पाया है. हालांकि डराने का या फिर समाज की सच्चाई दिखाने के इस अंदाज़-ए-बयां की तारीफ ज़रूर होनी चाहिए.



फिल्म जॉनरा: हॉरर ड्रामा

कलाकार: जाह्नवी कपूर, विजय वर्मा, सुरेखा सिकरी, शोभिता धुलिपाला, सुकांत गोयल, मृणाल ठाकुर, अविनाश तिवारी

निर्देशक: जोया अख्तर, अनुराग कश्यप, दिबाकर बैनर्जी, करण जौहर

रेटिंग: 2.5 स्टार


पहली कड़ी- जोया अख्तर
फिल्म की पहली कहानी सामान्य है, जिसे समझने के लिए ज्यादा दिमाग लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. जान्हवी कपूर के किरदार का नाम समीरा है जो कि नर्स है और जिसके आगे पीछे कोई नहीं है. समीरा, गुड्डू (विजय वर्मा) के साथ रिश्ते में हैं. गुड्डू पहले से शादीशुदा है, लेकिन समीरा की ज़िंदगी बनाने का वादा करता है और प्यार का भी दम भरता है. ये कश्मकश समीरा की ज़िंदगी में है, जिससे वो दो-चार हो रही है. समीरा नर्स है, इसलिए वो किसी और नर्स की जगह पर एक बूढ़ी महिला (सुरेखा सीकरी) की देखभाल के लिए उनके घर पहुंचती हैं. सुरेखा सीकरी हाफ पैरालाइज़्ड हैं. उनका बेटा बाहर रहता है. नर्स ही उनकी देखभाल करती है. जान्हवी के घर पहुंचने के बाद शुरू होता है डर का सफर, क्योंकि बूढ़ी महिला अजीबो-गरीब बातें करती हैं. वो दरवाजे की घंटी बजने से पहले ही बता देती है कि कोई दरवाज़े पर है.


अभिनय, निर्देशन और हॉरर
इस कड़ी को देखते वक्त आपको कुछ एक जगह थोड़ा सा डर लगेगा. संगीत अच्छा है और ज़ोया का निर्देशन भी. जान्हवी कपूर 'धड़क' से काफी आगे बढ़ती नज़र आएंगी. उनकी संवाद अदायगी में उनके अभिनय की परिपक्वता का एहसास होगा. सुरेखा सीकरी की जितनी तारीफ कर दें, कम ही होगा. वो इस कड़ी की जान हैं. उनके एक्सप्रेशन से आपको बीच बीच में एहसास होता रहेगा कि ये हॉरर फिल्म ही है. लेकिन आखिर में फिर वही बात कि जिस दमदार डरावनी फिल्म का वादा निर्देशकों की ओर से किया गया था, वो वादा पूरा नहीं हुआ है.



दूसरी कड़ी- अनुराग कश्यप
इसकी कहानी शोभिता धुलिपाला यानी नेहा के इर्द गिर्द घूमती है. नेहा की बहन का 5-6 साल का एक बेटा है. इस बच्चे की मां गुज़र चुकी हैं और पिता दिन भर दफ्तर में रहते हैं इसलिए स्कूल से आने के बाद उसकी देखभाल उसकी मासी यानी नेहा करती है. नेहा प्रेगनेंट है, लेकिन बच्चे को डर है कि उसकी मासी को बच्चा होगा, तो वो उसे कम प्यार करने लगेगी. फिर यहां से नाकाम डर का सिलसिला शुरू होता है. बच्चा कागज़ पर प्रेगनेंट मासी की तस्वीर बनाता है और फिर उसके पेट के हिस्से को गुस्से में पेंसिल से घसने लगता है. बच्चा इधर कागज़ पर बनी तस्वीर पर गुस्सा निकालता है और उधर उसकी मासी के पेट में दर्द होता है. इसके अलावा नेहा का भी अपना एक पास्ट है, जिससे वो खौफज़दा रहती है. उसका पास्ट उस पर इस कदर हावी हो जाता है कि वो खुद को पक्षी ही समझ बैठती है और उसी की तरह करने भी लगती है.


अभिनय, निर्देशन और हॉरर
इस दौरान अनुराग कश्यप ने जिस तरह से इसे फिल्माया है वो हर किसी को शायद पसंद न आए. निर्देशन में डराने से ज्यादा डार्कनेस, घिनौनापन और हद से पार जाने पर ध्यान दिया गया है. अनुराग कश्यप का निर्देशन स्टाइल इसमें भी झलकता है. पहली बार देखने पर कहानी का सही सही पता लगना थोड़ा मुश्किल है. क्या हकीकत है और क्या नहीं ये पता नहीं चल पाता. इस कड़ी की शुरुआत वहां से होती है, जहां फिल्म को जाना है. फिल्म में कहा कम गया है और संकेत ज्यादा हैं. सीन दिखाकर हालात को समझाने की कोशिश की गई है.


शोभिता धुलिपाला ने अच्छी एक्टिंग की है. या यूं कहें कि चारों कड़ियों में उनका अभिनय सबसे दमदार है. वो मांसी भी बन जाती हैं और कुछ ही देर में एक पक्षी के तौर पर भी हरकत करने लगती हैं. फिल्म का संगीत हर सीन में जमता है. हालांकि इसे देखकर आपको डर नहीं लगेगा, बल्कि किसी थ्रिलर फिल्म का एहसास होगा.



तीसरी कड़ी- दिबाकर बैनर्जी
ज़ोंबीज़ की कई फिल्में देखी होंगी आपने. इस कड़ी में कुछ उसी तरह की कहानी है. एक शख्स (सुकांत गोयल) है, जो काम की वजह से बिसघरा आता है, उसे बीडीओ से मिलना है. जैसे तैसे पैदल चलकर जब गांव पहुंचता है तो पता चलता है कि बिसघरा यानी छोटे गांव के लोगों को सौघरा यानी बड़े गांव वाले खाने लगे थे. फिर छोटे गांव वाले भी एक दूसरे को खाने लगे. इस तरह पूरा गांव खत्म हो चुका है. बचे हैं सिर्फ दो बच्चे एक लड़की और एक लड़का. लड़की सौघरा की है और लड़का बिसघरा का.


अभिनय, निर्देशन और हॉरर
इस कड़ी में भी आपको डर नहीं लगेगा. कुछ खतरनाक आवाज़ों और बच्चों द्वारा गांव की कहानी बताते वक्त उत्सुकता ज़रूर बढ़ेगी, लेकिन भूत नहीं होंगे. कहानी में सीधे सीधे तौर पर कुछ नहीं कहा गया है, बल्कि अंत तक इशारों में बताया गया है कि कैसे बड़े गांव के लोग छोटे गांव के लोगों पर हावी हुए हैं. क्लाइमैक्स में आपको समझ में आएगा कि कहानी क्या कहना चाहती है. छोटे गांव का प्रिसिपल भी बड़े गांव में आ चुका है. छोटा गांव जला दिया गया है. प्रतीकों के ज़रिए जो कहानी आगे बढ़ी थी, अंत में वो सीधे सीधे तौर पर आपसे संवाद कर सब कुछ साफ कर देगी. अंत में गुलशन दैवयाह का कुछ सेकेंड का सीन सारी कहानी खुद बयां कर देगा.


दिबाकर बनर्जी ने ज़ोंबीज़ की कहानी के बहाने बड़ी बात कहने की कोशिश की है. हालांकि अंत में ये नहीं पता चल पाता कि सुकांत के साथ जो हुआ वो ख्वाब था या वो उसे जीकर आया था. अभिनय के लिहाज़ से दोनों बच्चों ने दिल जीत लिया है. सुकांत को भी कम नहीं आंका जा सकता. फिल्म में खटकती बस इतनी सी बात है कि डर कहां हैं. ये कैसी घोस्ट स्टोरी है?



चौथी कड़ी- करण जौहर
चौथी और आखिरी कड़ी करण जौहर की है. पहली तीनों फिल्मों में डार्कनेस है, रफ्तार धीमी है और सबकुछ ठहरा ठहरा सा लगता है. लेकिन करण जौहर के निर्देशन वाली इस कड़ी में चकाचौंध है. बड़ा महलनुमा घर है. अंग्रेज़ी और गाली गलौच है. फिल्म का मेन कैरेक्टर इरा (मृणाल ठाकुर) है. वो अरेंज मैरिज कर रही है ध्रूव (अविनाश तिवारी) से. लेकिन इसमें हॉरर का तड़का ये है कि ध्रुव और उसका परिवार जो कुछ भी करता है नैनी से पूछ कर करता है, जोकि 20 साल पहले ही मर चुकी हैं. शादी की पहली ही रात में इरा, ध्रुव को देखती है कि वो नैनी से बात कर रहा है, लेकिन नैनी उसे कहीं नज़र नहीं आती. इस बीच वो अपने पति को समझाने की कोशिश करती है कि नैनी मर चुकी हैं. वो काफी कोशिश करती है कि ध्रुव नैनी से बात करना बंद करे और उन्हें भूल जाए, लेकिन ऐसा होने की बजाय वो खुद नैनी के जाल में फंस जाती हैं.


अभिनय, निर्देशन और हॉरर
इस कड़ी में करण जौहर ने डराने की कोशिश की है, लेकिन पूरी तरह कामयाब नहीं हो सके हैं. आपने ऐसा कई फिल्मों में देखा होगा कि फिल्म की हिरोइन किसी आवाज़ के पीछे अंधेरी रात में घर में इधर उधर घूम रही है, लेकिन उसे दिखाई कुछ नही दे रहा. इसमें भी ऐसा ही कुछ है. करण डर तो कायम नहीं कर पाए, लेकिन गाली गलौच और ग्लैमर का तड़का ज़रूर लगा दिया है. पहली तीन फिल्मों में ये चीजें देखने को नहीं मिली थीं, सो करण ने पूरी कर दी. मृणाल ठाकुर ने अच्छा अभिनय किया है. इनोसेंट सी लड़की का किरदार उन्होंने बखूबी निभाया है. उनके पति बने अविनाश का अभिनय कमज़ोर है. कई जगह जहां पर दर्शकों को उनके अभिनय से डर महसूस होना चाहिए था, वहां वैसा महसूस नहीं हो पाया है. हालांकि नैनी से बात करने वाले सीन काफी मज़ेदार ज़रूर लगते हैं.