Amitabh Bachchan in Politics: इन दिनों फिल्मी सितारों का पॉलिटिक्स में जाना खूब देखने को मिल रहा है. कंगना रनौत, अरुण गोविल और अब शेखर सुमन.....इन सभी ने बीजेपी जॉइन किया है. कंगना और अरुण गोविल चुनाव भी लड़ रहे हैं. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब कोई फिल्मी सितारा पॉलिटिक्स में गया हो. अगर साल 1984 के लोकसभा चुनावों की बात करें तो अमिताभ बच्चन ने ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. उनकी जीत से एक बड़ा नेता राजनीति छोड़ने पर मजबूर हो गया था.


बात उस दौर की है जब अमिताभ बच्चन और राजीव गांधी की दोस्ती के किस्से मशहूर थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमिताभ बच्चन की मां तेजी बच्चन और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी समाज सुधारक संस्थाओं से जुड़ी थीं. साथ ही वो अच्छी दोस्त थीं तो इस वजह उनके बच्चे अमिताभ और राजीव गांधी भी दोस्त बने. दोस्ती में अमिताभ पॉलिटिक्स में आए लेकिन उनके आने के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा ने राजनीति छोड़ दी थी.


जब अमिताभ बच्चन पॉलिटिक्स में हुए थे शामिल


1984 के आस-पास अमिताभ बच्चन की कुछ फ्लॉप फिल्में आईं और उन्होंने फिल्मों से ब्रेक लिया. उनके मित्र दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समर्थन में पॉलिटिक्स में आ गए. राजनीति में आने के बाद उन्हें इलाहाबाद लोकसभा सीट से टिकट दे दी गई. अमिताभ बच्चन के सामने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा खड़े हुए जिन्हें हार का सामना करना पड़ा था.






अमिताभ बच्चन ने बहुगुणा को 68.2 प्रतिशत यानी करीब 1 लाख वोट्स से हरा दिया था. हालांकि, अमिताभ बच्चन लंबे समय तक राजनीति का हिस्सा नहीं रहे. बोफोर्स घोटाले विवाद के कारण 1987 में उन्होंने एक सांसद और राजनेता के पद से इस्तीफा दिया. इसके बाद अमिताभ बच्चन फिल्मों में वापस आए और राजनीति की तरफ पलटकर नहीं देखा.


हेमवती नंदन बहुगुणा ने क्यों छोड़ी थी राजनीति?


25 अप्रैल 1919 को उत्तराखंड के पौड़ी जिले में हेमवती नंदन बहुगुणा का जन्म हुआ. पहाड़ों से उनका बहुत लगाव रहा है और नेचर से भी वो बहुत प्यार करते थे. इनकी शुरुआती पढ़ाई तो पौड़ी से ही हुए लेकिन कॉलेज की पढ़ाई इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से की. इसके बाद यूपी से ही वो राजनीति में आ गए. इन्होंने उस दौर में स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया था.


1980 में बहुगुणा ने राजनीति में वापसी की और कांग्रेस में शामिल हुए इसी दौरान उन्हें गढ़वाल से जीत मिली लेकिन कैबिनेट में जगह ना मिलने पर वो नाराज थे. यही कारण था कि 6 महीने के अंदर उन्होंने लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. 1982 में इसी सीट से उपचुनाव हुए जिसमें उनहोंने जीत हासिल की लेकिन इस बार वो दूसरी पार्टी से थे.


1984 में हुए लोकसभा चुनाव में इसी सीट से राजीव गांधी ने अमिताभ बच्चन को उनके सामने खड़ा किया था और बहुगुणा की हार हुई थी. इसके बाद ही बहुगुणा ने राजनीति से संन्यास लेने का फैसला लिया. बताया जाता है कि आखिरी दिनों वो अपने घर लौट गए और नेचर के साथ समय बिताने लगे. 17 मार्च 1989 को बहुगुणा का निधन हो गया था.


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