Uttar Pradesh Assembly Election 2022: यूपी की सियासी सरगर्मी को एक कद्दावर नेता ने इन दिनों और बढ़ा दिया है. यूपी की राजनीति में बड़ा नाम स्वामी प्रसाद मौर्य अब समाजवादी हो गए हैं. कभी बसपाई कहे जाने वाले मौर्य ने पिछले चुनावों में बीजेपी का दामन थामा था अब वो बीजेपी को टाटा, बाय-बाय बोलकर अखिलेश की साइकिल पर सवार हो गए हैं.  स्वामी प्रसाद मौर्य का करीब चार दशक का लंबा राजनीतिक करियर है और वो यूपी की राजनीति में धमक रखने वाले राजनेता माने जाते हैं.


बसपा के कद्दावर नेता रह चुके स्वामी प्रसाद मौर्य का जनाधार अच्छा खासा है. ऐसे में बीजेपी को अलविदा कहकर इस विधानसभा चुनाव में धमाका करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य को जान लेना बेहद जरूरी है. साथ ही ये भी बेहद अहम है कि कहीं अखिलेश ने इस बड़े नेता को सपाई बनाकर अपना फायदा किया है या स्वामी प्रसाद मौर्य एक नई और बड़ी पारी की प्लानिंग में है.


समझने की कोशिश करें तो 1954 में प्रतापगढ़ में जन्मे स्वामी प्रसाद मौर्य लॉ ग्रेजुएट हैं, इसके साथ ही उन्होंने एमए भी किया है. साल 1980 से यूपी की राजनीति में वो एक्टिव रहे हैं. हालांकि शुरुआती सालों में उन्हें विधानसभा चुनावों में उतरने का मौका नहीं मिला. साल 1996 उनके लिए स्वर्णिम साल रहा और उनकी बसपा में एंट्री हुई. 2 जनवरी 1996 को बसपा की सदस्यता लेने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य बसपाई हो गए. ये वो साल था जिसके बाद यूपी की राजनीति में इस नेता ने अपने आपको साबित किया.




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यहां से पहली बार लड़ा चुनाव


1996 में बीएसपी के टिकट पर उन्होंने रायबरेली की डलमऊ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और विधानसभा का चुनाव जीते. उनका करियर कुछ यूं रहा कि वो 4 बार कैबिनेट मंत्री बने. तीन बार वो यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी बने. साल 2009 में पडरौना से उपचुनाव में केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह की मां को हराने के बाद उनकी गिनती मायावती के करीबी नेताओं में होने लगी. साल 2008 में स्वामी प्रसाद मौर्य को बसपा ने प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दे दी. साल 2012 में हार के बाद उनसे मायावती ने जिम्मेदारी वापस ले ली.


बसपा से यूं कर बैठे बगावत


साल 2016 में स्वामी प्रसाद मौर्य बहुजन समाज पार्टी से बगावत कर बैठे. उन्होंने पैसे लेकर टिकट बांटने का आरोप लगाया. आरोप बड़ा था और मायावती को खुद स्वामी प्रसाद मौर्य के आरोपों का जवाब देने के लिए सामने आना पड़ा. बसपा से विदाई के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपनी पार्टी बनाई, लेकिन बड़ा ख्वाब लेकर वो बीजेपी के साथ हो लिए. साल 2017 में विधानसभा चुनाव में जीत दर्जकर स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंत्रीपद हासिल किया.



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कैबिनेट मंत्री बने स्वामी


जीत के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य को कैबिनेट मंत्री बनाया गया और श्रम मंत्री की जिम्मेदारी दी गई. पिछले विधानसभा चुनाव में कमल के रथ पर सवार होने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य अब अखिलेश के साथ हो लिए हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य अंबेडकरवादी राजनीति करने वाले माने जाते हैं. ऐसे में यूपी के सियासी समर में वो सपा के कितने काम के साबित होंगे ये आने वाला वक्त ही तय करेगा.


हमारे इस्तीफे से हराम हुई नींद


स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य बदायूं सीट से बीजेपी से सांसद हैं. संघमित्रा मौर्य ने खुद मुलायम सिंह के भतीजे धर्मेंद्र यादव को इस सीट से चुनाव में हराया था. स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा का दामन थामते ही बीजेपी पर बड़ा हमला बोला है. उन्होंने कहा कि ऐसी सुनामी आएगी की बीजेपी के परखच्चे उड़ जाएंगे. स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि जिनको हमारी बात सुनने का समय नहीं मिलता था हमारे इस्तीफे से उनकी नींद हराम हो गई है.




गोरखपुर से लाकर सीएम बना दिया


उन्होंने कहा कि बीजेपी के लोग आरोप लगा रहे हैं कि 5 साल क्यों नहीं गए. साथ ही बेटे के लिए पार्टी छोड़ने का आरोप लगा रहे हैं. उन्होंने कहा कि पिछड़ों, दलितों और शोषितों की वजह से ये केशव मौर्य और स्वामी प्रसाद का नाम उछालकर सत्ता में आये. तब कहा गया कि सीएम या तो केशव होंगे या स्वामी प्रसाद, लेकिन पिछड़ों की आंखों में धूल झोंककर गोरखपुर से लेकर एक सीएम बना दिया. 80 और 20 का नारा दे रहे हैं, लेकिन अब लड़ाई 15 और 85 की होगी. 85 तो हमारा है, 15 में बंटवारा होगा. अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य को सदस्यता दिलाते हुए कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था कि वह जहां भी जाते हैं, सरकार बनती है. इस बार भी वह अपने साथ भारी संख्या में नेताओं को लेकर आए हैं.