उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अब पांचवे फेज की ओर बढ़ रहा है. चौथे चरण के लिए 23 फरवरी को वोट डाले जाएंगे. नतीजों का ऐलान 10 मार्च को होगा. लेकिन उससे पहले हम उत्तर प्रदेश के उस चुनाव के बारे में आपको बताएंगे, जिसमें तीन दिन तक गिनती चलती रही. ड्यूटी में लगे कर्मचारियों को बुखार तक आ गया और 90 प्रतिशत उम्मीदवार जमानत तक नहीं बचा सके. ये रिकॉर्ड आज भी कायम है. हम बात कर रहे हैं 1993 के विधानसभा चुनाव की. 


1993 का चुनाव कुछ अलग था. तब उत्तर प्रदेश में 422 सीटें हुआ करती थीं. आज के मुकाबले 19 ज्यादा. बीजेपी ने सभी 422 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. जबकि कांग्रेस ने 421 पर. बसपा और सपा ने साथ में चुनाव लड़ने का फैसला किया था. बसपा ने 164 और सपा ने 256 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे. 


यानी कांग्रेस-बसपा-बीजेपी और सपा के उम्मीदवारों को मिला दें को 1263 प्रत्याशी तो इन चार पार्टियों के थे. लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी 4 कदम आगे निकले. इतने निर्दलीयों ने पर्चे भरे कि संख्या 9716 पहुंच गई. अगर औसत निकाला जाए तो हर सीट पर 23 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे. 


77 प्रत्याशी सिर्फ आगरा कैंट से उतरे थे


आगरा कैंट की सीट पर 77 प्रत्याशियों ने पर्चा भरा था. वोटिंग पूरी होने के बाद चुनावी ड्यूटी में लगे कर्मचारियों की हालत खराब हो गई. काउंटिंग तीन दिन तक चलती रही. बताया जाता है कि कर्मचारियों को बुखार तक आ गया था. 


8645 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी


जब नतीजे सामने आए तो बीजेपी को 177, बसपा को 67, सपा को 109 और कांग्रेस को 28 सीटों पर जीत मिली. 381 सीटें तो इन चार पार्टियों ने ही जीत लीं. 41 सीट छोटी पार्टियों और निर्दलीयों के खाते में चली गईं. लेकिन कमाल की बात है कि 8645 उम्मीदवारों की जमानत ही जब्त हो गई. इसके बाद कभी इतने प्रत्याशी चुनाव में नहीं उतरे. 


बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन सरकार नहीं बना पाई


बीजेपी को इस चुनाव में 177 सीट मिलीं. लेकिन उसे छोटी पार्टियों का साथ नहीं मिला. बहुमत का आंकड़ा 212 था. सपा-बसपा ने छोटे दलों को साथ लेकर सरकार बना ली. मुलायम सिंह 1 साल 81 दिन और मायावती 137 दिन मुख्यमंत्री रहीं. 


मुलायम सिंह तीन सीट पर चुनाव लड़े


1993 के इलेक्शन में मुलायम सिंह यादव जसवंतनगर, निधौनीकलां और शिकोहाबाद तीनों सीट से मैदान में थे. वह तीनों सीटों पर जीत गए. उनके अलावा हरियाणा के चौधरी देवीलाल सिंह और आंध्र प्रदेश के एनटी रामाराव भी अपने यहां तीन सीटों पर चुनाव लड़े थे. एनटी तो तीनों सीटों पर जीत गए लेकिन देवीलाल तीनों पर हार गए थे. 1996 में नियमों में परिवर्तन हुआ और तय हुआ कि कोई भी शख्स दो सीटों से ज्यादा पर चुनाव नहीं लड़ सकता. 


1993 के बाद कब कितने उम्मीदवार मैदान में उतरे


1993 में सपा-बसपा की सरकार तो बन गई लेकिन 1995 में वह गिर गई. 1996 में दोबारा चुनाव हुए लेकिन 1993 जितने प्रत्याशी नहीं उतरे. 1996 में 4,429 उम्मीदवार मैदान में थे. 2002 में ये संख्या 5,533, 2007 में 6,086 और 2012 में 6,839 रही. 2017 में 4,853 प्रत्याशी चुनावी रण में थे तो 2022 के चुनाव में 6000 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं.


मणिपुर विधानसभा चुनाव 2022: राजनीति में पिछड़ रहीं मणिपुर की महिलाएं, 265 प्रत्याशियों में केवल 17 महिलाओं को मिला टिकट


Explainer: रूस की तरफ से यूक्रेन के दो प्रांतों को अलग देश का दर्जा देने का आखिर क्या है मतलब