One Nation One Election and Law Commission's: वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर बनी कमिटी अभी स्टडी करने में लगी है. यह व्यवस्था कब लागू होगी इसे लेकर अभी कुछ भी साफ नहीं है. पर इस बीच एक बड़ी खबर सामने आ रही है. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, लॉ कमीशन के सूत्रों ने बताया है कि 2024 में एक साथ चुनाव नहीं होंगे. लॉ पैनल का मानना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की व्यवस्था लागू करना संभव नहीं होगा.


हालांकि, आयोग कार्यकाल को बढ़ाकर या घटाकर सभी विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने के फॉर्मूले पर काम कर रहा है ताकि 2029 से सभी राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनावों के साथ कराए जा सकें. इस बात की पुष्टि पीटीआई ने भी सूत्रों के हवाले से मिली सूचना के आधार पर अपनी एक रिपोर्ट में की है.


लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने पर चल रहा काम 


एक साथ चुनाव पर विधि आयोग की रिपोर्ट 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रकाशित होने की उम्मीद है. विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी ने बुधवार को इंडिया टुडे को बताया, “रिपोर्ट में अभी कुछ समय लगेगा क्योंकि एक साथ चुनाव कराने को लेकर अब भी कुछ काम चल रहा है.” वहं, सूत्रों का कहना है कि रिपोर्ट देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन का सुझाव देगी. इसके अलावा यह विशेष रूप से लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों पर ध्यान केंद्रित करेगा.


2024 लोकसभा चुनाव से पहले प्रकाशित होगी विधि आयोग की रिपोर्ट 


दिसंबर 2022 में 22वें विधि आयोग ने देश में एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव पर राष्ट्रीय राजनीतिक दलों, भारत के चुनाव आयोग, नौकरशाहों, शिक्षाविदों और विशेषज्ञों सहित हितधारकों की राय जानने के लिए छह प्रश्नों का एक सेट तैयार किया था. आयोग की रिपोर्ट 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रकाशित होने की उम्मीद है और केंद्रीय कानून मंत्रालय को सौंपी जाएगी.


'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की विधि आयोग ने भी की है सिफारिश


2018 में 21वें विधि आयोग ने केंद्रीय कानून मंत्रालय को अपनी मसौदा रिपोर्ट सौंपी, जहां उसने कहा कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने से सार्वजनिक धन की बचत होगी, प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर बोझ कम होगा और सरकारी नीतियों का बेहतर कार्यान्वयन सुनिश्चित होगा. आयोग ने आगे कहा कि संविधान के मौजूदा ढांचे के तहत एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं है. इसने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रासंगिक प्रावधानों में संशोधन करने की भी सिफारिश की गई, ताकि एक कैलेंडर में पड़ने वाले सभी उपचुनाव एक साथ आयोजित किए जा सकें.


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