Lok Sabha Election 2024: कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने रविवार (31 मार्च) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों के जरिए लोकसभा चुनावों में फिक्सिंग करने का आरोप लगाया. कांग्रेस सांसद के बयान पर कई पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों (CEC) ने प्रतिक्रिया दी है. पूर्व चुनाव आयुक्तों का कहना है कि विपक्षी दलों और उनके नेताओं के खिलाफ आयकर विभाग (IT) और प्रवर्तन निदेशालय ( ED) की कार्रवाईंयां चुनाव के दौरान सभी दलों को समान अवसर मिलने से रोकती हैं.


नाम न छापने की शर्त पर चुनाव आयोग (EC) के दो पूर्व प्रमुखों ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि इस तरह की कार्रवाइयों को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों में हस्तक्षेप के रूप में देखा जा सकता है. साथ ही चुनाव आयोग को कम से कम एजेंसियों से मिलकर यह पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए उन पर अभी यह एक्शन क्यों हो रहा है और क्या यह नोटिस चुनाव के बाद नहीं दिए जा सकते.


'समान अवसर होते हैं प्रभावित'
पूर्व सीईसी एसवाई कुरैशी ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, "मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि चुनाव आयोग इसे रोक सकता है. इससे सभी दलों के समान अवसर प्रभावित होते हैं. चुनाव आयोग ने हमेशा इस सिद्धांत का पालन किया कि चुनाव के दौरान एजेंसियां कोई भी एक्शन लेने से पहले इंतजार करें. सवाल यह है कि क्या इसे टालने से कोई नुकसान होगा. अगर नहीं तो इस कार्रवाई को तीन महीने बाद भी किया जा सकता है.

'सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स से पूछी जाए वजह'
एक अन्य पूर्व सीईसी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि आयोग में हमारे समय के दौरान ऐसी स्थितियां कभी उत्पन्न नहीं हुईं, इसलिए एक मिसाल देना मुश्किल है. हालांकि, आदर्श आचार संहिता का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि चुनाव में भाग लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर मिलें. अगर चुनाव प्रचार के दौरान टैक्स एजेंसियां प्रमुख विपक्षी दल को नोटिस जारी करती रहती हैं या उनके खाते फ्रीज कर देती हैं तो आयोग को सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स (CBDT) से इसका कारण पूछना चाहिए. साथ ही यह भी पूछना चाहिए कि आखिर मामले में इंतजार क्यों नहीं किया जा सकता.


'मूक नहीं रह सकता इलेक्शन कमीशन'
एक अन्य पूर्व सीईसी ने भी अपना नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि यह एक पेचीदा मामला है और मुझे लगता है कि चुनाव आयोग के लिए इससे निपटना मुश्किल होगा, लेकिन तथ्य यह है कि जब किसी राजनीतिक दल की धन तक पहुंच बंद हो जाती है तो आप कैसे उम्मीद करते हैं कि वह चुनाव लड़ेगा? क्या इससे समान अवसर पर प्रभाव नहीं पड़ता? इस मैच में एक अंपायर के रूप में आयोग पूरी तरह से मूक नहीं रह सकता. उसे केंद्रीय एजेंसियों के साथ परामर्श करके अहम भूमिका निभानी होगी ताकि उन्हें विपक्षी दलों के छापे और खातों को फ्रीज करने जैसी कार्रवाइयों को स्थगित करने के लिए राजी किया जा सके.


'इंतजार करने के लिए कह सकता है आयोग'
इस संबंध में पूर्व सीईसी ओपी रावत ने कहा कि चुनाव आयोग केवल तभी हस्तक्षेप कर सकता है जब उसके पास इस बात के लिए पर्याप्त आधार हो कि एजेंसी कुछ गलत कर रही हैं, लेकिन एजेंसियां जानबूझकर विपक्षी दलों के चुनाव अभियान में देरी करने के लिए कार्रवाई कर रही हैं या छापेमारी कर रही हैं तो चुनाव आयोग उन्हें इंतजार करने के लिए कह सकता है. 


उन्होंने बताया कि 2019 में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने ईडी को न्यूट्रल और निष्पक्ष रूप से कार्य करने के लिए कहा था, जोकि की एक मिसाल है. यह उस वक्त  हुआ था जब विपक्षी दलों ने सत्ताधारी पार्टी पर अपने खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था. 


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