Karnataka Election Results 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ रहे हैं, जिससे पहले रुझानों में ये साफ हो चुका है कि कांग्रेस राज्य में सरकार बना लेगी. वहीं बीजेपी बहुमत के आंकड़े से काफी दूर चली गई है. चुनाव आयोग के आधिकारिक आंकड़ों में भी यही तस्वीर साफ हुई है. कर्नाटक में कांग्रेस ने बीजेपी सरकार के भ्रष्टाचार के मुद्दों को जमकर उछाला, जबकि बीजेपी ने पीएम मोदी और हिंदुत्व कार्ड को सामने रख ध्रुवीकरण की कोशिश की थी, जो सफल नहीं रही. रुझानों से ये साफ हुआ है कि कर्नाटक में बीजेपी 40% कमीशन वाली सरकार के आरोपों में फंस गई और उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा. 


कांग्रेस ने किन मुद्दों पर लड़ा चुनाव
कांग्रेस ने शुरुआत से ही कर्नाटक में मौजूद बीजेपी सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरना शुरू कर दिया. सबसे बड़ा नारा कांग्रेस ने 40% कमीशन वाली सरकार का दिया. इसके कई पोस्टर  चुनाव से पहले नजर आए और चुनावी रैलियों में खूब जिक्र भी हुआ. दरअसल बेलगावी में एक ठेकेदार ने बीजेपी के मंत्री पर ये आरोप लगाकर खुदकुशी कर ली थी कि उससे 40 फीसदी कमीशन मांगा जा रहा था. इसके बाद कई ठेकेदारों ने भी ऐसे ही आरोप लगाए. कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने राज्य सरकार को घेरना शुरू कर दिया. इस पूरे विवाद में बीजेपी के मंत्री को इस्तीफा तक देना पड़ा. 


कांग्रेस ने चुनाव के लिए इस मुद्दे को हाथों हाथ लिया और जमकर उछाला. चुनाव प्रचार में राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और डीके शिवकुमार जैसे नेताओं ने इसे जनता तक पहुंचाने का काम किया. इसके अलावा कर्नाटक में कई जगहों पर PayCM के पोस्टर भी लगे दिखे. इस करप्शन के मुद्दे पर बोम्मई सरकार बैकफुट पर नजर आई. कर्नाटक में अमूल और नंदिनी विवाद ने भी खूब सुर्खियां बटोरीं. जिसका बीजेपी को नुकसान हुआ और कांग्रेस ने इसे जमकर भुनाया. 


इन मुद्दों पर भी घिरी बीजेपी
ठेकेदारों से कमीशन लेने के आरोपों के अलावा बोम्मई सरकार पर कई और करप्शन के आरोप भी लगे. जिनमें मठ से 30 फीसदी की रिश्वतखोरी जैसा मामला भी था. जिसका आरोप सरकार के मंत्रियों पर लगाया गया. इसके अलावा स्कूलों के नाम पर रिश्वतखोरी जैसे आरोप भी सरकार पर लगे. बोम्मई सरकार के सामने केएसडीएल घोटाला और गुड़ निर्यात घोटाले ने भी परेशान खड़ी की.


काम नहीं आया हिंदुत्व कार्ड
कांग्रेस ने जहां कर्नाटक में पूरा चुनाव भ्रष्टाचार और नफरत के खिलाफ लड़ा, वहीं बीजेपी के सामने एंटी इनकंबेंसी से निपटने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था. बीजेपी का सीएम बदलने वाला प्रयोग पहले ही फेल हो चुका था, ऐसे में पीएम मोदी के चेहरे को आगे रखकर बीजेपी चुनावी मैदान में उतरी. बीजेपी ने सबसे पहले मुस्लिम आरक्षण को खत्म कर लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय को लुभाने की कोशिश की. ये बीजेपी की ध्रुवीकरण की पहली कोशिश थी. हालांकि ये जमीन पर सफल नहीं हो पाई. 


बजरंग बली से लेकर केरल स्टोरी तक
इसके अलावा बीजेपी ने कांग्रेस के कई मुद्दों को उठाकर उसी पर हमला बोलने की कोशिश की. चुनाव की तारीखें नजदीक आते ही ऐसा लगा कि ये मुद्दे कांग्रेस पर भारी पड़ सकते हैं, लेकिन कर्नाटक जैसे राज्य में हिंदुत्व से जुड़े इन मुद्दों का कोई असर नहीं दिखा. फिर चाहे वो खरगे का जहरीले सांप वाला बयान हो या फिर बजरंग दल को बैन करने की बात और केरला स्टोरी... हर बार पीएम मोदी ने खुद इन मुद्दों को चुनावी हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया. बजरंग दल को बैन करने की बात को बजरंग बली के अपमान के तौर पर दिखाया गया. बीजेपी ने इसका जमकर प्रचार किया और कांग्रेस के खिलाफ कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे. पूरा माहौल बनाया गया, लेकिन अब जो नतीजे सामने आ रहे हैं, उनसे ये साफ हो चुका है कि कर्नाटक की जनता ने ऐसे मुद्दों को तरजीह नहीं दी. 


हालांकि तमाम चुनावी जानकारों ने पहले ही ये अंदाजा लगा लिया था कि दक्षिण भारत के राज्यों में बीजेपी की हिंदुत्व पॉलिटिक्स का ज्यादा स्कोप नहीं है, यहां पर लोग जमीन से जुड़े मुद्दों पर वोटिंग करते हैं और ध्रुवीकरण बहुत ज्यादा नहीं हो पाता है. तमाम सर्वे में भी बताया गया कि जनता के बीच सबसे ज्यादा जो मुद्दा चर्चा में रहा वो भ्रष्टाचार का मुद्दा था. हालांकि नॉर्थ के कई राज्यों में बीजेपी का ये दांव खूब चलता है, जिसका एक प्रयोग कर्नाटक में किया गया, जो पूरी तरह से फेल साबित हुआ है.