Lok Sabha-Rajya Sabha Elections: लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या करोड़ों में होती है, जबकि राज्यसभा चुनाव में कुल वोटों की संख्या एक हजार भी नहीं होती है. लोकसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले जीत हार का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है, जबकि राज्यसभा चुनाव के लगभग नतीजे पहले से पता होते हैं.


राज्यसभा में 56 सीटों के लिए मतदान 27 फरवरी को होना है. इन 56 सीटों के लिए 15 राज्यों से राज्यसभा सांसदों का चुनाव होगा. सबसे ज्यादा 10 सीटें उत्तर प्रदेश से हैं. उम्मीदवारों के नाम शॉर्टलिस्ट किए जा चुके हैं. सभी पार्टियों ने कुल मिलाकर 59 उम्मीदवार उतारे हैं.


इससे साफ है कि तीन ऐसे उम्मीदवार होंगे, जिन्हें हार का सामना करना पड़ेगा. राज्यसभा चुनाव के ठीक बाद लोकसभा चुनाव भी होना है, जिसके लिए सभी पार्टियां तैयारी में लगी हैं. कई पार्टियों ने कुछ उम्मीदवारों के नाम का ऐलान भी कर दिया है. यहां हम बता रहे हैं कि लोकसभा और राज्यसभा चुनाव में कितना अंतर है.


लोकसभा और राज्यसभा चुनाव में सबसे बड़ा अंतर मतदाताओं का है. लोकसभा में आम जनता वोट करती है और हर क्षेत्र से प्रतिनिधि चुने जाते हैं, जो सदन में अपना नेता चुनते हैं. इस नेता को प्रधानमंत्री कहा जाता है. वहीं, राज्यसभा में जनता की ओर से चुने गए प्रतिनिधि मतदान करते हैं और राज्यसभा सांसद का चुनाव करते हैं. मौजूदा समय में लोकसभा चुनाव के लिए 90 करोड़ से ज्यादा मतदाता हैं, जबकि राज्यसभा के लिए हर राज्य के विधायक मतदान करते हैं. राज्यसभा सांसद मिलकर अपना नेता नहीं चुनते हैं.


टुकड़ों में होता है राज्यसभा चुनाव


राज्यसभा में कुल 245 सीटें हैं, इनमें से 12 सांसदों को राष्ट्रपति नामित करते हैं, जबकि 233 सांसद अलग-अलग राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करते हैं. लोकसभा में 543 सीट होती हैं. राज्यसभा में अधिकतम 250 और लोकसभा में 552 सदस्य हो सकते हैं. लोकसभा में सभी सीटों के लिए चुनाव एक साथ होते हैं. इसके बाद नई सरकार बनती है और नया प्रधानमंत्री चुना जाता है. 


राज्यसभा के चुनाव तीन टुकड़ों में होते हैं. एक बार में 33 फीसदी राज्यों के सांसदों का चुनाव होता है. लोकसभा सांसद का कार्यकाल पांच साल, जबकि राज्यसभा सांसद का कार्यकाल छह साल का होता है. लोकसभा सांसद बनने के लिए न्यूनम आयु 25 साल, जबकि राज्यसभा सांसद बनने के लिए न्यूनतम आयु 30 साल होनी चाहिए.


राज्यसभा में गोपनीय नहीं रखे जाते वोट


लोकसभा में हर व्यक्ति का मत गोपनीय रखा जाता है. हर मतदाता अपनी इच्छा के अनुसार पसंदीदा नेता को वोट दे सकता है. हालांकि, राज्यसभा में ऐसा नहीं है. यहां विधायकों को वोट देने से पहले अपनी पार्टी के मुखिया को दिखाना होता है कि वह किसे अपना मत दे रहे हैं. अगर कोई नेता अपनी पार्टी के उम्मीदवार को वोट नहीं देता है तो उसे पार्टी से निकाला जा सकता है.


2001 में बदला नियम


राज्यसभा चुनाव में भी पहले मत गोपनीय रखे जाते थे, लेकिन 1998 में कुछ विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की और कांग्रेस के उम्मीदवार को हार मिली. इसके बाद पाया गया कि पैसे के लालच में आकर और बाहूबली नेताओं से डरकर विधायक क्रॉस वोटिंग करते हैं. इस पर रोक लगाने के लिए यह नियम लाया गया कि हर पार्टी के विधायक को वोट डालने से पहले अपनी पर्ची पार्टी के नेता को दिखानी होगी.


2001 में अरुण जेटली यह बिल लेकर आए थे. इसके बाद से क्रॉस वोटिंग होने पर पार्टी को पता होता है कि किस विधायक ने क्रॉस वोटिंग की है. पार्टी इसकी वजह पूछ सकती है और बाद में विधायक को पार्टी से निकाल भी सकती है. कई मौकों पर क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों को पार्टी से निकाला जा चुका है.


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