Vijay Baghel Vs Bhupesh Baghel: सालभर से भी कम वक्त में देश 5 विधानसभाओं और लोकसभा का चुनावी महासमर देखेगा. लोकसभा चुनाव अगले वर्ष है तो पांच राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम) में विधानसभा के चुनाव इसी साल के अंत होने हैं. इनमें 90 विधानसभा सीटों वाला छत्तीसगढ़ एक अहम राज्य है. बीजेपी ने महाराष्ट्र की तरह छत्तीसगढ़ में भी भतीजे पर दांव लगाया है. माना जा रहा कि मुख्यमंत्री की रेस में भी चाचा-भतीजे का मुकाबला देखने को मिलेगा.


दरअसल, बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति ने बुधवार (16 अगस्त) को मध्य प्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ के लिए अपने विधानसभा उम्मीदवारों की पहली सूची को मंजूरी दी, जिसे गुरुवार (17 अगस्त) को जारी किया गया. इस सूची ने राजनीतिक पंडितों को कयासबाजी की कई वजहें दे दीं क्योंकि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के भतीजे विजय बघेल को भी बीजेपी ने उनकी (सीएम) सीट से मैदान में उतारा है.


बीजेपी ने दुर्ग से अपने सांसद विजय बघेल को पाटन विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है. इस सीट से मौजूदा विधायक भूपेश बघेल अगर इस बार भी दावेदारी करते हैं तो मुकाबला एक बार फिर चाचा बनाम भतीजे का देखने को मिलेगा. पहले भी दोनों राजनीति की पिच पर आमने-सामने आ चुके हैं.


पहले भी चाचा भूपेश को मात दे चुके हैं विजय बघेल 


2008 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में विजय बघेल ने भूपेश बघेल को मात दे दी थी, जबकि 2013 के चुनाव में भूपेश बघेल ने भतीजे विजय को हरा दिया था. विजय बघेल 2000 तक कांग्रेस में थे, फिर बीजेपी आ गए थे. 


भतीजे पर क्यों दांव लगाया?


दरअसल, विजय बघेल ने 2000 में भिलाई चरोदा नगर निगम का चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ा था. उस दौरान भूपेश बघेल और काग्रेस के बड़े नेताओं ने अपनी पार्टी के उम्मीदवार के लिए प्रचार किया था लेकिन जीत निर्दलीय के रूप में विजय बघेल को मिली थी. बीजेपी में आने के बाद विजय कांग्रेस और भूपेश बघेल के खिलाफ लगातार मुखर रहे हैं. एक बार उन्होंने भूपेश बघेल को हराया भी है. वहीं, जुलाई में विजय बघेल को बीजेपी ने अपनी घोषणापत्र समिति के प्रभारी के रूप में नामित कर बड़ी जिम्मेदारी दी थी. माना जा रहा है कि सीएम भूपेश जैसे कांग्रेस के मजबूत और कद्दावर नेता के सामने विजय बघेल बीजेपी के लिए मजबूत विकल्प हैं, इसीलिए पार्टी ने उन पर दांव लगाया है.


महाराष्ट्र की सियासत से क्यों हो रही है तुलना?


दरअसल, महाराष्ट्र में पिछले दिनों बीजेपी शरद पवार के भतीजे अजित पवार को अपने पाले में लाने में सफल रही, जिससे उसने एक तीर से दो शिकार किए. पहला यह कि अजित के शिवसेना-बीजेपी गठबंधन वाली सरकार का हिस्सा बनने को एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने मंजूरी नहीं दी, जिसके चलते पार्टी में दो फाड़ देखा जा रहा है. एनसीपी के ज्यादातर विधायक अजित के समर्थन में देखे जा रहे हैं और पार्टी के नाम और निशान तक की लड़ाई चुनाव आयोग में पहुंच चुकी है, जिसका फैसला होना बाकी है. इस राजनीतिक घटनाक्रम से महाराष्ट्र में विरोधी गठबंधन महाविकास अघाड़ी को कमजोर करने में बीजेपी सफल रही है.


वहीं, दूसरा फायदा बीजेपी को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के विकल्प के रूप में अजित पवार को अपने पास भविष्य की संभावनाओं के लिए रखने में हुआ है. इस रूप में बीजेपी ने महाराष्ट्र में चाचा के खिलाफ भतीजे पर पहले ही दांव खेल दिया है.


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