Success Story Of IAS Topper Mani Agarwal: दूसरों से अलग मणि जब बात करती हैं तो उनका कांफिडेंस उनकी बातचीत में साफ दिखता है. यूपीएससी सीएसई परीक्षा को लेकर वे केवल अपना मत नहीं रखती बल्कि जोरदारी से उसे सपोर्ट करने के कारण भी पेश करती हैं. मणि की बातें सुनकर इतना जोश आता है और उनकी स्ट्रेटजी जो दूसरों से अलग है पर इतनी स्ट्रांग फील होती है कि उसे फॉलो करने का मन करता है. मणि की दूरदर्शिता और लक्ष्य के प्रति साफगोई इसी से पता चलती है कि उन्होंने ग्रेजुएशन के दूसरे साल से ही तैयारी आरंभ कर दी थी. जानते हैं मणि से उनकी खास स्ट्रेटजी के बारे में जिसने उन्हें दोनों बार सफल बनाया.


कॉलेज के दिनों से गोल था क्लियर


मणि दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिए इंटरव्यू में बताती हैं कि कॉलेज के सेकेंड ईयर से ही उन्होंने यूपीएससी की तैयारी के लिहाज से न्यूजपेपर पढ़ना शुरू कर दिया था. अगर बात करें उनके बैकग्राउंड की तो मणि आगरा की हैं और उन्होंने मैथ्स में बीएससी ऑनर्स किया है. मैथ्स के प्रति प्रगाढ़ प्रेम और यूपीएससी में ऑप्शनल मैथ्स ही चुनने का निर्णय बहुत पहले ही ले चुकी मणि ने इसी लिहाज से इस विषय में पोस्टग्रेजुएशन करने की योजना बनाई.


मणि ने हमेशा स्तरीय संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की और वहां जगह बनाने के लिए कड़ी मेहनत भी की. उन्होंने बीएससी की हिंदू कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी से और पीजी किया आईआईटी बॉम्बे से. यहां से उन्होंने मैथ्स में एमएससी की डिग्री ली.


आप यहां मणि अग्रवाल द्वारा दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिया गया इंटरव्यू भी देख सकते हैं



कोचिंग न लेने के लिए थी प्रतिबद्ध


मणि कोचिंग को कतई बुरा नहीं मानती बल्कि वे कहती हैं कि इससे आपको बढ़िया गाइडेंस मिलता है लेकिन वे अपने लिए कोचिंग न लेने को लेकर प्रतिबद्ध थी. उनका कहना है कि अगर आप कोचिंग नहीं लेते तो आपको सबकुछ खुद से करना पड़ता है और इसके लिए तैयार रहें. वे यूपीएससी परीक्षा को बहुत अच्छे से समझने के बाद तैयारी के लिए आगे बढ़ी थी और उन्होंने एक-एक कदम प्लान करके सावधानी से इस सफर की शुरुआत की.


सबसे पहले मणि ने बाजार से यूपीएससी की तैयारी के लिए उपलब्ध स्टैंडर्ड बुक्स खरीदीं और एनसीईआरटी की किताबें इकट्ठी की. इसके बाद उन्होंने अपनी स्ट्रेटजी खुद बनायी और उसी पर चलकर दोनों बार सारे चरण पास कर गईं. हालांकि पहले प्रयास में सभी स्टेजेस क्रॉस करने के बाद भी उनका नाम फाइनल सूची में नहीं आया.


मेन्स की तैयारी से करें शुरुआत


दूसरों से अलग मणि मानती हैं कि प्री के पहले ही कैंडिडेट को मेन्स की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. वे इस चीज को ब्रॉडर सेंस में देखती हैं और कहती हैं कि मेन्स की तैयारी करने से प्री की तैयारी खुद-ब-खुद हो जाती है लेकिन प्री की तैयारी करने से मेन्स की नहीं हो सकती. वे कहती हैं कि मेन्स को इस तरह पढ़ो और तैयार करो की प्री भी कवर हो जाए. उनका मानना है कि कोई भी विषय दो-तीन बार पढ़कर आपको इतनी नॉलेज हो जाती है कि आप प्री में खाली टिक करने का काम कर सकते हैं. लेकिन बिना डीप और डिटेल में पढ़ें आप मेन्स के उत्तर नहीं लिख सकते और मेन्स ही वह एग्जाम है जो आपका सेलेक्शन सुनिश्चित करता है.


दो महीने पहले किया केवल प्री पर फोकस


मणि आगे कहती हैं कि प्री के बाद इतना समय नहीं होता कि मेन्स की तैयारी की शुरुआत की जाए या बहुत गहराई से इसे पढ़ा जाए. इस समय केवल जो आता है उसे रिवाइज कर सकते हैं और मॉक टेस्ट दे सकते  हैं. इसलिए प्री के दो महीने पहले ही मेन्स का सिलेबस पूरा खत्म हो जाना चाहिए. जब प्री परीक्षा के केवल दो महीने बचें तो सिर्फ इस पर फोकस करने लगें और तैयारी को केवल प्री के अनुसार ही आगे बढ़ाएं. इस समय डेटा, इंफॉर्मेशन जो याद करनी है, न्यूज पेपर आदि पर अधिक ध्यान देना शुरू कर दें और खूब मॉक दें तभी प्री की तैयारी भली प्रकार हो पाएगी.


स्टेप बाय स्टेप बढ़ें आगे


मणि ये भी कहती हैं कि जब तक इंफॉर्मेशन ठीक से कलेक्ट न कर लें तब तक आंसर राइटिंग शुरू न करें और जब तक मेन्स में सेलेक्शन न हो जाए तब तक इंटरव्यू की तैयारी आरंभ न करें. वे केवल प्री के लिए ऐसा मानती हैं कि इस कदर तैयारी करें कि पेपर देने के अगले दिन से ही मेन्स के लिए कमर कस सकें लेकिन जब तक मेन्स का रिजल्ट न आ जाए इंटरव्यू के लिए परेशान न हों. वे वैसे भी सबसे अधिक महत्व मेन्स को देती हैं और मानती हैं कि इससे आप सेलेक्ट होते हैं और इंटरव्यू से आपकी रैंक बनती है. जब तक सेलेक्ट नहीं होंगे रैंक का नंबर आएगा ही नहीं इसलिए मेन्स पर पूरा फोकस करें.


अंत में मणि यही कहती हैं कि ये उनकी स्ट्रेटजी है जो उनके लिए काम की थी. ऐसा कतई जरूरी नहीं कि आप भी इसे फॉलो करें. आप चाहें तो अपनी जरूरत के मुताबिक इसे बदल लें या नई स्ट्रेटजी बना लें.


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