किसी भी कॉम्पिटिटिव एग्जाम को पास करना अभ्यर्थियों के लिए आसान नहीं होता है और इसलिए वे लगातार  मेहनत के साथ तैयारी भी करते है. ऐसे में यूपीएससी सिविल सर्विसेज की परीक्षा की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों  को दोगुनी मेहनत करनी होती है. गांव में रहकर इस परीक्षा की तैयारी करना और भी मुश्किल है लेकिन  इस लड़की ने अपनी मेहनत और लगन से ये ही कर दिखाया और साबित किया की अगर आप एक बार किसी चीज की ठान लें, तो आप अपने सपने को पूरा कर सकते है. मध्य प्रदेश के छोटे से गांव की रहने वाली सुरभि  के पिता वकील और माता शिक्षिका थी.  सुरभि की प्राथमिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल में ही हुई और उनका स्कूल हिंदी मीडियम था.


सुरभि बचपन से ही पढ़ने में काफी अच्छी थी. मध्य प्रदेश के स्कूलों में पांचवीं  कक्षा में भी बोर्ड की परीक्षा होती है. जब पांचवीं का परिणाम आया तो टीचर ने सुरभि को बुलाकर कहा की आपको गणित में शत-प्रतिशत अंक मिले हैं और साथ में ये भी कहा कि आगे आप बहुत अच्छा करोगी. इसके बाद सुरभि पढ़ाई करने के लिए काफी ज्यादा सीरियस हो गई लेकिन  इसी बीच उनके जोड़ों में  दर्द रहने लगा  पर वह उसे नजरअंदाज करती रहीं और धीरे-धीरे दर्द सुरभि के पूरे शरीर में फैल गया. सुरभि के  माता-पिता उनके इलाज के लिए जबलपुर गए और डॉक्टर ने कहा की सुरभि को ‘रूमैटिक फीवर’ है. यह बीमारी हृदय को नुकसान पहुंचाती है फिर डॉक्टर ने सुरभि को हर 15 दिन पर पेनिसिलिन का इंजेक्शन लगाने की सलाह दी.


गांव में अच्छे डॉक्टर नहीं थे इसलिए हर 15वें दिन सुरभि को जबलपुर जाना पड़ता था. कमजोर सेहत के बीच भी सुरभि ने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी. सुरभि को दसवीं बोर्ड में गणित के साथ विज्ञान में भी शत-प्रतिशत अंक प्राप्त किए और उन्हें राज्य के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों में गिना फिर उस समय के अखबारों में खबर छापी गई कि सुरभि कलेक्टर बनना चाहती हैं लेकिन  सुरभि के मन में उस वक्त तक कलेक्टर बनने का ऐसा कोई ख्याल नहीं था. लेकिन कही न कही इन खबरों के कारण ही सुरभि का झुकाव यूपीएससी की तरफ हो गया.


12वीं कक्षा में भी अच्छे अंक प्राप्त करने के बाद सुरभि ने एक स्टेट इंजीनियरिंग एंट्रेंस परीक्षा क्लियर की और भोपाल के एक इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में एडमिशन लिया. सरकारी स्कूल में पढ़ाई करने के दौरान वे अपने स्कूल की सबसे बेस्‍ट स्टूडेंट थीं और सुरभि को कॉलेज पहुंचने पर कुछ दिक्कतें हुई क्योंकि वह हिंदी मीडियम की छात्रा रही थीं और वहा के ज्यादातर छात्र इंग्लिश मीडियम के थे. सुरभि ने अपनी इंग्लिश सुधारने के लिए खुद से अंग्रेजी में बात करना शुरू किया और प्रतिदिन कम से कम 10 शब्दों की मीनिंग याद करने लगी.


ठान लें तो कुछ भी सम्भव
इसका असर ये हुआ की सुरभि ने अपने ग्रेजुएशन के फर्स्ट सेमेस्टर में टॉप किया और उन्हें पुरस्कार भी मिला. सुरभि ने खुद पर मेहनत की ओर अपने सपने को पूरे करने में लग गई. कॉलेज में प्लेसमेंट के दौरान सुरभि को टीसीएस कंपनी में जॉब मिल गई लेकिन सुरभि ने एक्सेप्ट नहीं किया और इसके बाद उन्होंने कई प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लिया और सभी को पास भी किया. फिर वर्ष  2013 में सुरभि ने आईएएस की परीक्षा भी पास की और ऑल इंडिया फर्स्ट रैंक प्राप्त की  लेकिन सुरभि का सपना आईएएस बनने का था  इसलिए, उन्होंने अपनी तैयारी जारी रखी और वर्ष 2016 में यूपीएससी की  परीक्षा में सुरभि ने अपने पहले प्रयास में 50वीं रैंक प्राप्त की.  इस परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए  सुरभि कहती हैं कि भाषा की कोई दीवार नहीं होती अगर अभ्यर्थी ठान ले तो वे कुछ भी हासिल कर सकते है.


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