महाराष्ट्र सरकार ने सोमवार को बॉम्बे हाई कोर्ट को बताया कि SSC (कक्षा 10) और HSC (कक्षा 12) परीक्षाओं की तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि छात्रों के लिए बाद की परीक्षा अपेक्षाकृत ज्यादा महत्वपूर्ण क्योंकि ये परीक्षा उनके करियर के लिए मील का पत्थर साबित होती है.


राज्य सरकार ने कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा


राज्य सरकार ने एक हलफनामे में कहा कि छात्रों, शिक्षकों, अभिभावकों और अन्य हितधारकों की सुरक्षा पर विचार करने के बाद इस वर्ष के लिए एसएससी (कक्षा 10) परीक्षा रद्द कर दी गई थी. बता दें कि राज्य के स्कूल शिक्षा और खेल विभाग के उप सचिव राजेंद्र पवार द्वारा हलफनामा, प्रोफेसर धनंजय कुलकर्णी द्वारा दायर एक जनहित याचिका जिसमें इस साल दसवीं कक्षा की परीक्षा रद्द करने के राज्य सरकार के 19 अप्रैल के फैसले को चुनौती दी गई थी के जवाब में दाखिल किया गया था.


कोर्ट ने 10वीं की परीक्षा रद्द करने पर मांगा था स्पष्टीकरण


गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने 20 मई को राज्य सरकार को ये कहते हुए कड़ी फटकार लगाई थी कि वह शिक्षा प्रणाली का मजाक उड़ा रही है और उसे याचिका पर अपना हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था. हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्टीकरण मांगा था कि राज्य सरकार कक्षा 12 की परीक्षा क्यों आयोजित कर रही है.


वहीं राज्य सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि कक्षा 12 की परीक्षाएं वर्तमान में स्थगित कर दी गई हैं और इस पर अंतिम निर्णय केंद्र द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर कदम उठाने के बाद लिया जाएगा. हलफनामे में कहा गया है, "यह उचित समझा गया कि 12वीं बोर्ड परीक्षाएं छात्रों की शिक्षा में अपेक्षाकृत ज्यादा महत्वपूर्ण मील का पत्थर थीं क्योंकि उनका भविष्य 10वीं कक्षा की परीक्षा की तुलना में उसी पर निर्भर करता है."


राज्य सरकार ने 12वीं की परीक्षा को छात्रों के करियर के लिए जरूरी बताया


हलफनामे में कहा गया कि "आमतौर पर, 10 वीं कक्षा के विपरीत, 12 वीं कक्षा के बाद छात्रों के समग्र करियर का रास्ता तय किया जाता है." यह कहा गया कि 12 वीं कक्षा में छात्र 10वीं कक्षा की तुलना में ज्यादा मैच्योर, स्वतंत्र, सामाजिक रूप से जागरूक और शारीरिक और मानसिक रूप से फिट होते हैं." इसके साथ ही राज्य सरकार ने हलफनामे में कहा कि यह सेब की तुलना पनीर से करने जैसा है क्योंकि दोनों खाने योग्य हैं.


राज्य सरकार ने कहा कि यह नहीं माना जा सकता है कि एसएससी परीक्षाएं सिर्फ इसलिए रद्द नहीं की जा सकतीं क्योंकि एचएससी परीक्षाओं पर कोई फैसला नहीं लिया गया है. हलफनामे में कहा गया है कि एसएससी परीक्षा आयोजित करना, जिसके लिए हर साल लगभग 16 लाख छात्र उपस्थित होते हैं, एक "विशाल अभ्यास" था जिसमें शिक्षकों और अभिभावकों के साथ-साथ पुलिस और परिवहन प्रणाली भी शामिल हैं.  


19 अप्रैल को 10वीं की परीक्षा की गई थी रद्द


हलफनामें में आगे कहा गया कि, 2020-21 एकेडमिक ईयर फिजिकल क्लासेस बंद होने और कोविड-19 महामारी के कारण ऑनलाइन कक्षाओं का प्रबंधन करने वाले शिक्षकों के साथ उथल-पुथल से गुजरा. वहीं संक्रमण की दूसरी लहर के बाद, राज्य सरकार ने स्टेकहोल्डर्स से परामर्श करने के बाद, पहले एसएससी परीक्षाओं को जून तक स्थगित करने का फैसला किया और फिर 19 अप्रैल को इसे रद्द करने का फैसला लिया.


हलफनामे में कहा गया है कि "10वीं की बोर्ड परीक्षाओं को रद्द करने का निर्णय राज्य सरकार ने न केवल सुरक्षा और कल्याण बल्कि स्टूडेंट्स, एग्जामिनर्स, टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ व कई अन्य लोगों के जीवन पर भी प्राथमिक ध्यान देने के बाद लिया था  जो उन्हें आयोजित करने में शामिल होंगे."


महामारी की तीसरी लहर में 12 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों को खतरा


राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि कोविड ​​​​-19 मामलों की संख्या धीरे-धीरे कम हो रही है, लेकिन स्थिति अभी भी पूरी तरह से नियंत्रण में नहीं है और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर दबाव है. यह भी कहा कि महामारी की तीसरी लहर का खतरा है और मेडिकल एक्सपर्ट का कहना है कि 12 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों को तीसरी लहर प्रभावित कर सकती है.हलफनामे में कहा गया है कि सरकार को छात्रों का मूल्यांकन कैसे करना है, इस पर एक फॉर्मूला भी लाना होगा.


बहरहाल हाईकोर्ट में 1 जून यानी आज मामले की सुनवाई की उम्मीद है.


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