Engineer's Day 2021: भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जन्मदिन 15 सितंबर को भारत में इंजीनियर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है. इंजीनियरिंग और शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान महत्वपूर्ण है. उन्हें आधुनिक भारत के बांधों, जलाशयों और जल-विद्युत परियोजनाओं के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महान राष्ट्र-निर्माताओं में से एक माना जाता है.


इंजीनियर्स डे इतिहास क्या है


1968 में, भारत सरकार ने सर एम विश्वेश्वरैया की जयंती को इंजीनियर्स दिवस के रूप में घोषित किया था.  तब से, यह दिन उन सभी इंजीनियरों को सम्मानित करने और स्वीकार करने के लिए मनाया जाता है जिन्होंने योगदान दिया है और अभी भी एक आधुनिक और विकसित भारत के निर्माण के लिए ऐसा प्रयास कर रहे हैं.


इंजीनियर्स दिवस का महत्व क्या है


1903 में, सर एम विश्वेश्वरैया ने ऑटोमैटिक बैरियर वाटर फ्लडगेट को डिजाइन और पेटेंट कराया था. इसे ब्लॉक सिस्टम भी कहा जाता है, इसमें ऑटोमेटेड दरवाजे होते हैं जो पानी के अतिप्रवाह की स्थिति में बंद हो जाते हैं. इसे सबसे पहले पुणे के खड़कवासला जलाशय में स्थापित किया गया था.


1861 में कर्नाटक में चिक्कबल्लापुर के पास एक छोटे से गाँव में जन्मे, सर एम विश्वेश्वरैया ने मद्रास विश्वविद्यालय से कला स्नातक की पढ़ाई की और पुणे के कॉलेज ऑफ़ साइंस से सिविल इंजीनियरिंग की. 1917 में, उन्होंने गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना की, जिसे अब बेंगलुरु विश्वविद्यालय विश्वेश्वरैया कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग के रूप में जाना जाता है.


सर एम विश्वेश्वरैया ऐसे बने थे रोल मॉडल


हैदराबाद में 1908 में एक विनाशकारी बाढ़ के बाद, तत्कालीन निज़ाम ने सर एम विश्वेश्वरैया की सेवाओं से एक ड्रेनेज सिस्टम तैयार करने और शहर को बाढ़ से बचाने का अनुरोध किया था. इंजीनियर ने स्टोरेज जलाशयों के निर्माण का प्रस्ताव रखा और हैदराबाद से बहने वाली मुसी नदी के प्रदूषण को रोकने के लिए शहर के बाहर एक सीवेज फार्म भी बनाया.अंग्रेज भी उनकी इंजीनियरिंग का लोहा मानते थे.


विश्वेश्वरैया से जुड़ा है रेल यात्रा का ये दिलचस्प किस्सा


एक बार डॉ विश्वेश्वरैया ब्रिटिश भारत में एक रेलगाड़ी से यात्रा कर रहे थे. इस रेल में ज़्यादातर अंग्रेज़ सवार थे. अंग्रेज़ उन्हें मूर्ख और अनपढ़ समझकर मज़ाक उड़ा रहे थे. इस दौरान डॉ विश्वेश्वरैया ने अचानक रेल की जंज़ीर खींच दी. थोड़ी देर में गार्ड आया और सवाल किया कि जंज़ीर किसने खींची? तब डॉ विश्वेश्वरैया ने कहा कि जंजीर मैंने खीचीं है, क्योंकि मेरा अंदाजा है कि यहां से लगभग कुछ दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है. इसपर गार्ड ने पूछा कि आपको कैसे पता चला? तब विश्वेश्वरैया ने कहा कि'गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आया है और आवाज़ से मुझे खतरे का आभास हो रहा है. इसके बाद पटरी की जांच हुई तो पता चला कि एक जगह से रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए हैं और सब नट-बोल्ट खुले हुए हैं.


कई पुरस्कारों से किए गए सम्मानित


सर एम विश्वेश्वरैया को 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था और उन्हें ब्रिटिश नाइटहुड से भी सम्मानित किया गया. उन्होंने 1912 से 1918 तक मैसूर के दीवान के रूप में कार्य कियाय इंजीनियर दिवस पर, राष्ट्र सर एम विश्वेश्वरैया को श्रद्धांजलि देता है.


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