Russia - Ukraine War Impact On India: रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध (Russia - Ukraine War) को 100 दिन पूरे हो चुके हैं. और बीते 100 दिनों में भारत समेत पूरी दुनिया पर इसका व्यापक असर देखने को मिला है. इस युद्ध को चलते कच्चे तेल (Crude Oil) समेत सभी कमोडिटी ( Commodity) के दामों में आग लग गई. तो यूक्रेन के सप्लाई बाधित होने के गेंहू ( Wheat) समेत सनफ्लावर ऑयल ( Sunflower Oil) की कीमतें आसमान छूने लगी. सरकार ने गेंहू के निर्यात पर रोक लगा दिया. जिससे देश में महंगाई ( Inflation) में लगातार बढ़ोतरी ही देखी जा रही है. महंगाई के बढ़ने के चलते आरबीआई ( RBI)  को दखल देना पड़ा और नतीजा आरबीआई ने रेपो रेट ( Repo Rate) बढ़ाया तो कर्ज महंगा हो गया. होम लोन ( Home Loan) ले चुके लोगों की ईएमआई ( EMI) महंगी हो गई. महंगाई के बढ़ने के डिमांड पर असर पड़ रहा है. तो शेयर बाजार ( Share Market)  में भी उठापटक देखा जा रहा है. विदेशी निवेशकों ( Foreign Investors) ने बाजार में रिकॉर्ड इस दौरान बिकवाली की है जिससे निवेशकों के लाखों करोड़ रुपये खाक हो गए.  आइए सिलसिलेवार डालते हैं नजर रूस यूक्रेन युद्ध का भारत पर क्या क्या असर पड़ा है. 



महंगाई में उछाल 
रूस यूक्रेन के युद्ध ने भारत के लोगों की जेब पर डाका डालने का काम किया है. खाने पीने की चीजों से लेकर ईंधन, प्रॉकृतिक गैस, स्टील, एल्युमिनियम से लेकर कई चीजें महंगी हो गई है. खुदरा महंगाई दर में बढ़ोतरी इसका प्रमाण है. जनवरी में जहां खुदरा महंगाई दर 6.01 फीसदी था, वो अप्रैल में बढ़कर 7.79 फीसदी पर जा पहुंचा है. गेंहू, आटा, खाने के तेल के दामों में उछाल के चलते खाद्य महंगाई दर में भी  इजाफा हुआ है जो अप्रैल 2022 में 8.38 फीसदी रहा है. जबकि जनवरी 2022 में ये 5.43 फीसदी था. 





विदेशी मुद्रा भंडार में 5.38 फीसदी की कमी 
डॉलर ( Dollar) के मुकाबले रुपये में गिरावट आने के बाद से भारत के विदेशी मुद्रा कोष ( Foreign Currency Reserves) में लगातार कमी आ रही है. रूस - यूक्रेन युद्ध ( Russia-Ukraine War) के बाद से रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ था तब से देश के विदेशी निवेशक ( Foreign Investors) लगातार पैसा वापस निकाल रहे हैं और कम जोखिम वाले जगहों में निवेश कर रहे हैं. भारतीय रिजर्व बैंक ( Reserve Bank Of India) ने रुपये को थामने की कोशिश की है बावजूद इसके मंगलवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 77.77 रुपये तक जा लुढ़का था.  आरबीआई ने अपने स्टेट ऑफ इकोनॉमी रिपोर्ट ( State Of Economy Report) में कहा है कि मार्च 2022 में 20 अरब डॉलर अपने मुद्रा कोष से बेचे हैं जिससे रुपये को और कमजोर होने से रोका जा सके. आरबीआई ने अपने स्टेट ऑफ इकोनॉमी रिपोर्ट में कहा है कि 20 मई तक भारत के पास 598 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है जिससे केवल अगले 10 महीने के अनुमानित आयात को पूरा किया जा सकता है. युद्ध शुरू होने से पहले भारत के पास 632 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा कोष था. युद्ध के बाद विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट ही देखी जा रही है. जब से रुस ने यूक्रेन पर हमला किया तब से विदेशी मुद्रा कोष में 36 अरब डॉलर की कमी आई है. 




डॉलर के आगे रुपया पस्त
जब से  रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की शुरुआत हुई है रुपया लगातार डॉलर के मुकाबले कमजोर होता जा रहा है. विदेशी निवेशकों द्वारा वौश्विक अस्थिरता के चलते अपने निवेश वापस निकालने के चलते डॉलर के मुकाबले रुपया अब तक के अपने ऐतिहासिक निचले स्तर 77.72 रुपये पर गिरकर भी बंद हुआ है. 23 फरवरी, 2022 को युद्ध शुरू होने से पहले रुपया डॉलर के मुकाबले 74.62 रुपये प्रति डॉलर पर था जो गिरकर 2 जून, 2022 को 77.56 रुपये पर आ चुका है. रुपया में गिरावट को थामने के लिए आरबीआई नई कई कदम उठाये हैं. आरबीआई ने डॉलर बेचें हैं. लेकिन विदेशी निवेशक लगातार भारतीय शेयर बाजार में बिकवाली कर निवेश निकाल रहे हैं जिससे रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर होता जा रहा है. 2022 में अब तक विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से 1.57 लाख करोड़ रुपये वापस निकाल चुके हैं. रुपये को नहीं थामा गया तो रुपये में गिरावट के चलते लोगों पर महंगाई की और मार पड़ सकती है आयात महंगा हो सकता है ऐसे में इसका भार कंपनियां सीधा आम लोगों पर डालेंगी. कई जानकारों के मुताबिक आने वाले दिनों में एक डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होकर 80 रुपये प्रति डॉलर तक गिर सकता है.




युद्ध के चलते अनुमान से कम रहा जीडीपी
वित्त वर्ष 2021-22 में जीडीपी 8.7 फीसदी रहा है. हालांकि सांख्यिकी विभाग ने जनवरी 2022 में जो पहला अनुमान जारी किया था उसमें जीडीपी के 9.2 फीसदी रहने का अनुमान जताया था. बाद में फरवरी में सांख्यिकी विभाग ने दूसरे अनुमान में जीडीपी के 8.9 फीसदी रहने का अनुमान जाहिर किया था. लेकिन 31 मई 2022 को 2021-22 के जीडीपी के जो आंकड़े आये हैं उसमें वित्त वर्ष में जीडीपी अनुमान से कम 8.7 फीसदी रहा है. दरअसल इसकी बड़ी वजह रूस यूक्रेन युद्ध है. युद्ध के चलते कमोडिटी के दाम आसमान छूने लगे. पेट्रोल डीजल महंगा हो गया. महंगाई बढ़ गई जिससे मांग घट गई और इसके चलते जीडीपी अनुमान से कम रहा है. 




कच्चा तेल आसमान पर
युद्ध के बाद से कच्चे तेल के दाम में आग लग गई. कच्चे तेल के दाम 139 डॉलर प्रति बैरल पर जा पहुंचा जो 2008 के बाद सबसे अधिक था. विधानसभा चुनावों के बाद सरकारी तेल कंपनियों ने 10 रुपये पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ा दिए. लेकिन महंगाई से त्रस्त जनता को राहत देने के लिए सरकार ने पेट्रोल पर 8 रुपये और डीजल पर 6 रुपये एक्साइज ड्यूटी कम कर दिया. इससे पेट्रोल डीजल के दामों में कमी आ गई. लेकिन सरकारी तेल कंपनियों के अभी पेट्रोल डीजल बेचने पर भारी नुकसान उटाना पड़ रहा है.  


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