RBI Intervening in NDF Market: शुक्रवार यानी 7 अक्टूबर को डॉलर के मुकाबले रुपया ऐतिहासिक गिरावट के साथ बंद हुआ. भारतीय करेंसी मार्केट ने पहली बार 82.33 के लेवल को टच कर लिया. रुपये की गिरती कीमतों को देखते हुए रिजर्व बैंक लगातार इस पर नजर बनाए हुए हैं. अब आरबीआई ने रुपये की कीमतों को कंट्रोल करने के लिए एक बड़ा फैसला लिया है.


मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रिजर्व बैंक Non-Deliverable Forward मार्केट में डॉलर बेचकर रुपये की गिरती कीमतों को कंट्रोल करने की तैयारी कर रहा है. आपको बता दें कि NDF करेंसी ट्रेडिंग करके मुद्राओं की वैल्यू को निश्चित करता है. ऐसे में आरबीआई डॉलर की कीमतों को कंट्रोल करने के लिए अपने डॉलर रिजर्व को बेचेगी. ऐसे में डॉलर की गिरती कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी. 


रुपये की गिरावट का कारण


कोरोना महामारी और रूस यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine) के कारण पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था कठिन दौर से गुजर रही है. भारत समेत पूरी दुनिया में महंगाई बढ़ रही है. महाशक्ति अमेरिका (United States of America) पर भी इसका बुरा असर पड़ा है. अमेरिका में पिछले कई सालों का महंगाई का रिकॉर्ड टूट गया है.


ऐसे में अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने महंगाई पर लगाम लगाने के लिए अपनी ब्याज दरों में 0.75% का इजाफा किया है. इसके बाद से लगातार दुनिया भर की करेंसी में गिरावट दर्ज की जा रही हैं. इसका असर भारतीय रुपये पर भी दिख रहा है.


RBI रुपये की गिरती कीमतों पर बनाए हुए नजर


सूत्रों के हवाले से खबर है कि आरबीआई दो प्राइवेट सेक्टर बैंकों की मदद से NDF मार्केट में रुपये की गिरती कीमतों को कंट्रोल करने की कोशिश कर रही है. इसके साथ यह भी जानकारी मिली है कि आरबीआई इस समय बाजार की स्थिति पर कड़ी नजर बनाए हुए हैं हर मुमकिन कोशिश कर रही है ताकी रुपये की गिरती कीमतों को कंट्रोल किया जा सके.


महंगे डॉलर का क्या होगा असर


रुपये की गिरती कीमत यानी महंगे डॉलर का भारत की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ सकता है. इसके चलते तेल कंपनियों को ज्यादा डॉलर देकर कच्चा तेल खरीदना होगा. इससे आयात महंगा होगा और आम उपभोक्ताओं को पेट्रोल डीजल के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी.


वहीं विदेश जाने वाले लाखों बच्चे पर भी इसका असर पड़ेगा क्योंकि अब आपको ज्यादा डॉलर देकर फीस चुकानी होगी. इसके साथ ही अब खाने के तेल के रेट में बढ़ोतरी दर्ज की जाएगी क्योंकि अब तेल आयात करने के लिए ज्यादा विदेशी मुद्रा सरकार को खर्च करनी पड़ेगी. इसके साथ ही भारत की इंपोर्ट बिल में इजाफा दर्ज किया जाएगा. 


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