महीनों के कयास के बाद 2023 में आर्थिक मंदी (Economic Recession 2023) हकीकत बनने लगी है. यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी आर्थिक मंदी 2023 का पहला शिकार बनी है. जर्मन सरकार के आधिकारिक आंकड़ों से इसकी पुष्टि हो चुकी है. अब पूरी दुनिया को इस बात का डर सता रहा है कि मंदी का अगला शिकार कौन होने वाला है. इस बीच दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका से कुछ खतरनाक आंकड़े सामने आ रहे हैं.


इस तरह से मंदी में गिरा जर्मनी


आर्थिक मंदी के कयास पिछले साल से ही लगाए जा रहे हैं. विश्व बैंक से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष तक ने बार-बार मंदी के खतरे को लेकर आगाह किया है, साथ ही कई मौकों पर मंदी को अवश्यम्भावी बताया है. जर्मनी के सांख्यिकी कार्यालय ने बीते सप्ताह इन्हें सच साबित कर दिया, जब आंकड़ों में पता चला कि मार्च 2023 तिमाही के दौरान जर्मनी के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में 0.3 फीसदी की गिरावट आई है. इससे पहले पिछले साल की आखिरी तिमाही यानी अक्टूबर से दिसंबर 2022 के दौरान जर्मनी की जीडीपी में 0.5 फीसदी की गिरावट आई थी.


क्या होती है आर्थिक मंदी?


अर्थशास्त्र की प्रचलित परिभाषा के अनुसार, अगर कोई अर्थव्यवस्था लगातार दो तिमाही के दौरान सिकुड़ती है, तब कहा जाता है कि संबंधित अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी का शिकार बन चुकी है. इसका मतलब हुआ कि जर्मनी की अर्थव्यवस्था अब आधिकारिक रूप से मंदी की चपेट में आ चुकी है. राहत की बात यह है कि जर्मनी की जीडीपी के गिरने की रफ्तार तिमाही दर तिमाही आधार पर कम हुई है. इसका मतलब हुआ कि आर्थिक मंदी तो आई है, लेकिन फिलहाल उसकी तीव्रता बहुत ज्यादा नहीं है.


सबसे अमीर देश कर सकता है डिफॉल्ट?


दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका (US Economy) की बात करें तो उसके सामने इन दिनों ऐसा संकट उत्पन्न हो गया है, जो आज तक कभी देखने को नहीं मिला था. इतिहास में पहली बार अमेरिका डिफॉल्ट (US Default) करने की कगार पर खड़ा है. अमेरिका का सरकारी खजाना लगभग पूरी तरह से खाली हो चुका है. सरकार के पास अब उधार जुटाने के विकल्प नहीं बचे हैं. सरकार ने जनवरी 2023 में ही कर्ज लेन की  31.4 ट्रिलियन डॉलर की अधिकतम सीमा को छू लिया था.


खाली हो चुका है अमेरिकी खजाना


उसके बाद पैसे जुटाने के अतिरिक्त उपाय किए गए. ट्रेजरी ने वे उपाय अपने पास उपलब्ध सभी संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए किए. उसके बाद अमेरिकी सरकार के पास इतने पैसे आ गए कि कुछ महीने तक काम चल जाए. अब ये पैसे भी इसी सप्ताह समाप्त होने वाले हैं. ट्रेजरी के पास 23 मई तक कैश बैलेंस 76.5 बिलियन डॉलर रह गया था. वहीं दूसरी ओर 1-2 जून तक ठीक-ठाक बड़ा पेमेंट करना है. ऐसे में एक्स-डेट यानी खजाने के पूरी तरह से खाली हो जाने की तारीख अब ज्यादा दूर नहीं है.


कर्ज के बाद महंगाई की दोहरी मार


अमेरिका के सामने खतरे की एक और घंटी महंगाई ने बजाई है. अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने सप्ताह के अंत में महंगाई के आंकड़े जारी किए. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल महीने के दौरान पर्सनल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर इंडेक्स बढ़कर 4.4 फीसदी पर पहुंच गया. यह मार्च में 4.2 फीसदी था. अमेरिका में इस इंडेक्स का वही महत्व है, जो भारत में खुदरा मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई का है. आसान शब्दों में मतलब यह हुआ कि यही इंडेक्स ब्याज दरों का घटना-बढ़ना तय करता है. चूंकि अप्रैल में दर बढ़ी है, इस बात की आशंका बढ़ गई है कि फेडरल रिजर्व जून में भी ब्याज दरों को बढ़ा सकता है, जो पहले से सुस्त पड़ चुकी जीडीपी वृद्धि दर को और गिरा सकता है. इस तरह से जर्मनी के बाद अमेरिका भी आर्थिक मंदी का आधिकारिक शिकार बन सकता है.


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