FICCI Economic Outlook Survey: देश के दिग्गज बिजनेस चैंबर फिक्की ने मौजूदा वित्त वर्ष 2023-24 में जीडीपी ग्रोथ 6.3 फीसदी रहने का अनुमान जताया है. फिक्की ने इकोनॉमिक आउटलिक सर्वे के लेटेस्ट राउंड के मुताबिक न्यूनतम जीडीपी 6 फीसदी तो अधिकत्तम 6.6 फीसदी जीडीपी ग्रोथ मौजूदा वित्त वर्ष में देखने को मिल सकता है. सर्वे के मुताबिक आरबीआई की ओर से 2024-25 की पहली या दूसरी तिमाही में ही रेपो रेट में कटौती संभव है. 


फिक्की ने सितंबर महीने में इकोनॉमिक आउटलुक सर्वे कराया है जिसमें इंडस्ट्री, बैंकिंग और फाइनेंशियल सेक्टर से देश के दिग्गज अर्थशास्त्रियों से रेस्पांस हासिल किया है. इन अर्थशास्त्रियों से वित्त वर्ष 2023-24 के अलावा इस वित्त वर्ष की जुलाई से सितंबर की दूसरी तिमाही और अक्टूबर से नवंबर की तीसरी तिमाही के लिए अपने अनुमान साझा करने को कहा गया था. 


फिक्की के मुताबिक वैश्विक तनाव, चीन की अर्थव्यवस्था की रफ्तार की गति के धीमे पड़ने, सख्त मॉनिटरी पॉलिसी के असर और सामान्य से कम मानसून बारिश आर्थिक विकास की रफ्तार में सबसे बड़ी जोखिम बनकर सामने आई है. सर्वे के मुताबिक दूसरी तिमाही में 6.1 फीसदी और तीसरी तिमाही में 6 फीसदी ग्रोथ रेट रहने का अनुमान है. मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 7.8 फीसदी जीडीपी ग्रोथ रेट देखने को मिला था.  


सर्वे के मुताबिक 2023-24 में 5.5 फीसदी खुदरा महंगाई दर रहने का अनुमान है. जिसमें कम से कम 5.3 फीसदी और अधिकतम 5.7 फीसदी महंगाई दर रहने का अनुमान जताया गया है. सर्वे में भाग लेने वाले कई अर्थशास्त्रियों ने कहा कि महंगाई को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है. उनका कहना है कि खुदरा महंगाई दर अपने उच्चतम स्तर को छू चुकी है लेकिन कीमतों में बढ़ोतरी का जोखिम बना हुआ है.  


अनाज की कीमतें स्थिर बनी हुई हैं. खरीफ फसलों के तहत दलहन और तिलहन के रकबे में कमी दर्ज की गई है.  काला सागर अनाज सौदा रद्द होने से भारत पर असर पड़ सकता है क्योंकि सनफ्लावर ऑयल  का बड़ा हिस्सा यूक्रेन और रूस से आयात करता है. हाल के दिनों में मौसम से जुड़ी अनिश्चितताओं में बढ़ोतरी आई है इससे खाद्य वस्तुओं की कीमतों में उतार-चढ़ाव बनी रहेगी. कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से महंगाई बढ़ने का खतरा है. सर्वे में भाग लेने वाले एक्सपर्ट्स के मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष में आरबीआई के अनुमान से लक्ष्य से ज्यादा रहने का अनुमान है. 


सर्वे में हिस्सा लेने वाले अर्थशास्त्रियों ने कहा कि आरबीआई की ओर से रेपो रेट में कटौती वित्त 2024-25 की पहली या दूसरी तिमाही में ही देखने को मिल सकती है. 


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