EPF Interest Rate: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार (Modi Government) ने पांच राज्यों के चुनाव खत्म होते ही आम जनता को बड़ा झटका दिया है. सरकार ने देश के करीब 6 करोड़ नौकरीपेशा लोगों की जमापूंजी पर फिक्स्ड कमाई के सबसे बड़े जरिए में कटौती कर दी है. EPFO यानी कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए EPF की ब्याज दर को 8.5 फीसदी से घटा कर 8.1 फीसदी कर दिया गया है. 


40 सालों में है सबसे कम दर
आपको बता दें पिछले 40 सालों में ये सबसे कम ब्याज दर है. इससे पहले ईपीएफ पर सबसे कम ब्याज दर 8 फीसदी 1977-78 में थी. सरकार के इस कदम से पीएफ खातों पर ब्याज ले रहे ईपीएफओ सब्सक्राइबर्स को अब कम ब्याज मिलेगा यानी उनकी कमाई कम होगी.


लगातार कई सालों से घट रही हैं ब्याज दरें
कोरोना महामारी और यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से वित्तीय संकट तो अभी आया है, लेकिन EPF की ब्याज दरें पिछले कुछ सालों से लगातार कम की जा रही हैं. वित्त वर्ष 2015-16 में EPF पर ब्याज दर 8.80 फीसदी थी. इसके बाद 2019-20 में घटते हुए ये 8.50 फीसदी हुई औऱ अब यानी 2021-22 में इसे 8.1 फीसदी कर दिया गया है. 


निवेश के मौके लगातार हो रहे कम
पिछले कुछ सालों की कटौती के ट्रेंड को भी देखें तो ये सबसे तीखा प्रहार है. आम आदमी औऱ खास तौर पर मिडिल क्लास के लिए निवेश के मौके लगातार कम हो रहे हैं. बैंकों ने फिक्स्ड डिपॉजिट की दरें बहुत कम कर दी हैं. शेयर बाजार में अनिश्चितता के कारण निवेश मुश्किल है, सोना खरीदना भी सबके बस की बात नहीं है और अब ईपीएफ पर भी ब्याज कम कर दिया गया है तो ऐसे में आम आदमी आखिर करे तो क्या करें? कहां निवेश करें? अपना पैसा कैसे बढ़ाए?


EPF की ब्याज दर कम होने से एक नौकरीपेशा व्यक्ति को कितना नुकसान होता है इसे एक उदाहरण के जरिए समझते हैं -  


उदाहरण से समझिए ब्याज दरें बढ़ने पर कितना होगा नुकसान-
मान लीजिए आपके पीएफ फंड में फिलहाल 5 लाख रुपये हैं. इसमें हर साल आपकी सैलरी से 50 हजार रुपये कट कर पीएफ फंड में और जमा होते हैं तो 9 फीसदी की दर से बीस साल बाद आपका फंड 56 लाख रुपये हो जाता है, लेकिन अगर बाकी चीजें वैसी ही रहें और ब्याज दर घटकर 8 फीसदी हो जाए तो ये रकम बीस साल बाद 48 लाख रुपये होगी. यानी आपको सीधे-सीधे 8 लाख रुपये का घाटा होगा, लेकिन सच ये है कि हर साल कमाई बढ़ने पर PF में पैसे भी ज्यादा जमा होते हैं और Compound Interest के आधार पर ये नुकसान और भी बड़ा हो जाता है.


जानें क्यों हुई ब्याज दरों में कटौती?
कई जानकारों के मुताबिक, EPFO के हाथ भी बंधे हैं उन्हें अपने करोड़ों सब्सक्राइबर्स के हितों का ध्यान रखना होता है. दरअसल, EPFO जो भी पेंशन फंड इकट्ठा करता है वो उसे लोन पर चढ़ा देता है और थोड़ा सा हिस्सा शेयर बाजार में भी निवेश करता है. साल भर में डिविडेंड और ब्याज की कमाई को ही वो अपने सब्सक्राइबर्स में बांटता है, लेकिन इस बार कोविड के साथ-साथ यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण माहौल थोड़ा अनिश्चित है. ऐसे में उन्हें ये डर है कि जहां-जहां निवेश किया है उसमें रिटर्न शायद कम मिले. शायद इसी वजह से उन्होंने ईपीएफ की ब्याज दरों में कटौती की है.


खत्म हो रहा ऊंची ब्याज दरों का दौर
आपको बता दें भारत में अब ऊंची ब्याज दरों का दौर धीरे धीरे खत्म हो रहा है. चाहे वह EPF हो या या फिर बैक FD, हर चीज पर ब्याज लगातार कम हो रहा है. विकसित देशों में भी ऐसा ही होता है. अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन जैसे देशों में ब्याज दर अधिकतम 1 या 2 फीसदी ही होती है. वहां, निवेश पर रिटर्न कम होने की वजह से ही अंतर्राष्ट्रीय निवेशक भारत जैसे कई एशियाई बाजारों में पैसे लगाते है क्योंकि यहां ब्याज दरें ऊंची है.


शेयर बाजार से मिल सकता है अच्छा रिटर्न
बता दें इससे शेयर बाजार को भी मदद मिलती है, लेकिन ऐसा कब तक चलेगा, ये कोई नहीं जानता... घूम फिर कर आम भारतीय निवेशक को अगर ज्यादा रिटर्न चाहिए तो उसे जोखिम उठाना पड़ेगा यानी सीधे इक्विटी या म्यूचुअल फंड में निवेश करना पड़ेगा. दुनिया के ज्यादातर आर्थिक एक्सपर्ट हमेशा से यही मानते रहे हैं कि महंगाई से निपटने के लिए लंबी अवधि में शेयर बाजार से ही अच्छा रिटर्न मिल सकता है, लेकिन इसके लिए बहुत संयम और अनुशासन की जरूरत है.


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