Bank Privatisation News: आरबीआई गर्वनर शक्तिकांत दास ने कहा है कि बैकिंग सेक्टर के रेग्युलेटर होने के बैंकों के मालिकाना हक को लेकर आरबीआई की भूमिका तटस्थ है. उन्होंने कहा कि ये बैंकों के मालिकाना हक रखने वालों पर निर्भर करता है कि वे कितना शेयरहोल्डिंग अपना पास रखना चाहते हैं. कितना दूसरों को देना चाहते हैं या फिर पब्लिक को देना चाहते हैं. लेकिन आरबीआई की भूमिका बैंकों के मालिकाना हक को लेकर तटस्थ (Ownership Nuetral) है. 


मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आबीआई गर्वनर ने कहा कि बैकिंग सेक्टर के रेग्युलेटर होने के नाते हमने रेग्युलेटरी गाइडलाइंस तैयार किए हैं और ये हमें सुनिश्चित करना है कि इन गाइडलाइंस का सही तरीके से पालन हो और बैकिंग सेक्टर सही तरह से कार्य करे. बैंक मजबूत होते हैं, वे अच्छी तरह से पूंजीकृत होते हैं, वित्तीय मानदंड पर बैंकों को मजबूत होने चाहिए. इसलिए हम बैंकों के स्वामित्व पर तटस्थ हैं. 


दरअसल पिछले हफ्ते सरकार के सरकारी बैंकों के निजीकरण करने के फैसले पर आरबीआई के बुलेटिन में एक लेख छपा था जिसमें निजीकरण पर सवाल खड़ा किया था. आरबीआई ने अपने लेख में लिखा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बड़े पैमाने पर निजीकरण से फायदे से ज्यादा नुकसान हो सकता है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपने एक लेख में सरकार को आगाह करते हुए इस मामले में ध्यान से आगे बढ़ने की सलाह दी है. आरबीआई के बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि निजी क्षेत्र के बैंक ज्यादा मुनाफा बनाने में सफल रहे हैं वे इसमें कुशल भी हैं जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में बेहतर प्रदर्शन किया है. 


हालांकि इस लेख के सामने आने के बाद आरबीआई को सफाई देना पड़ा. आरबीआई ने कहा है कि लेख में स्पष्ट तौर पर लिखा हुआ है जो कुछ विचार लेख में व्यक्त किया गया है वो आरबीआई के नहीं बल्कि लेखक के निजी विचार हैं. आरबीआई ने कहा कि अगस्त 2022 बुलेटिन को लेकर जो प्रेस रिलिज जारी की गई उसमें कहा गया है कि निजीकरण का फैसला सरकार इसलिए भी धीरे ले रही है जिससे ये सुनिश्चित किया जा सके कि वित्तीय समावेषन का सामाजिक उद्देश्य हासिल करने में शून्य पैदा ना हो. 


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