Debt Management of State Governments: वित्त वर्ष 2024 के आखिर तक भारत के ग्रॉस स्टेट डॉमिस्टिक प्रोडक्ट (GSDP) में 12 राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों का कुल कर्ज 35 फीसदी से ज्यादा होगा. इसका सीधा अर्थ है कि देश के ये 12 राज्य कर्ज लेने में अव्वल हैं और प्रदेशों के कुल कर्ज का 35 फीसदी इन्हीं के ऊपर है. बड़ी बात ये है कि बिहार जैसे गरीब राज्य ही नहीं बल्कि कई ऐसे राज्य भी इस लिस्ट में शामिल हैं जो संपन्न कहे जाते हैं लेकिन देश की ग्रॉस स्टेट डॉमिस्टिक प्रोडक्ट (GSDP) में कर्ज का बड़ा हिस्सा इनके ऊपर है.


कौन-कौन से हैं ये 12 राज्य


अरुणाचल प्रदेश, बिहार, गोवा, हिमाचल प्रदेश, केरल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान और पश्चिम बंगाल अपने आर्थिक संकट और खराब मनी मैनेजमेंट की वजह से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की नजर में आ गए हैं. आरबीआई ने अपनी सालाना रिपोर्ट 2022-23 में राज्यों के कर्ज पर भी बड़ा खुलासा किया है.


क्या है देश के कर्ज को लेकर खास तथ्य


भारत के 33 फीसदी से ज्यादा राज्यों और विधायिका वाले केंद्र शासित प्रदेशों ने 2023-24 के आखिर में अपने कर्जों को उनके जीएसडीपी के 35 फीसदी को पार करने का अनुमान लगाया है. इन राज्यों ने इस वित्त वर्ष में अपने फिस्कल डेफिसिट को उनके संबंधित जीएसडीपी के 4 फीसदी से ज्यादा होने का अनुमान लगाया है. ये वो राज्य हैं जो पिछले साल की तुलना में ज्यादा बाजार उधारी ले रहे हैं. साल 2022-23 में राज्यों की ग्रॉस मार्केट बॉरोइंग कुल बाजार उधारी के 76 फीसदी पर थी.


उत्तर प्रदेश को छोड़कर बाकी सभी राज्यों का कर्ज 30 फीसदी से ज्यादा रहेगा


आरबीआई की सालाना रिपोर्ट में कहा गया है आंध्र प्रदेश, झारखंड, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश अब बड़े कर्ज वाले राज्यों की कैटेगरी में नहीं हैं. देश की सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश को छोड़कर इन बाकी सभी ने चालू वित्त वर्ष के अंत में अपना कर्ज जीएसडीपी के 30 फीसदी से ज्यादा होने का अनुमान लगाया है. यूपी ने वित्त वर्ष 2024 में कर्ज को 28.6 फीसदी पर लाने का अनुमान लगाया है जबकि एक साल पहले यूपी का कर्ज कुल जीएसडीपी के 30.7 फीसदी पर रहा था.


आरबीआई की ताजा सालाना रिपोर्ट में क्या है खास


आरबीआई ने अपनी लेटेस्ट एनुअल रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि नॉन-इसेंशियल वाले गुड्स एंड सर्विसेज, सब्सिडी, मनी ट्रांसफर और गारंटी के लिए कोई भी एक्स्ट्रा एलोकेशन इन राज्यों की नाजुक आर्थिक हालत को और खतरे में डाल सकता है. इसके असर से संभावित रूप से पिछले दो सालों में हासिल हुए सरकारी ट्रेजरी के कंसोलिडेशन में बाधा पैदा हो सकती है.


केंद्र शासित प्रदेशों के कर्ज का क्या है हाल


किसी भी केंद्र शासित प्रदेश ने अपना कर्ज जीएसडीपी के 35 फीसदी से ज्यादा होने का अनुमान नहीं लगाया है. केंद्र शासित प्रदेशों में जम्मू और कश्मीर और पुडुचेरी ने 2023-24 के आखिर तक अपना लोन 30 फीसदी को पार करने का अनुमान लगाया है. यदि इनमें जम्मू और कश्मीर, दिल्ली और पुडुचेरी को लिस्ट से बाहर कर दिया जाए तो इस वित्तीय वर्ष के आखिर में 42 फीसदी लोन संबंधित जीएसडीपी के 35 फीसदी से ज्यादा हो सकता है. 


हाई लोन वाले राज्यों की संख्या घटकर 12 हुई 


हालांकि, कोविड-संकटकाल यानी साल 2020-21 के बाद से हाई रेश्यों वाले लोन के राज्यों की संख्या में कमी देखी गई है. वित्त वर्ष 2011 के आखिर में 16 राज्यों पर इस तरह का हाई लोन था. अगले साल यह राज्य घटकर 13 रह गए.  अब 2022-23 के संशोधित अनुमान और 2023-24 के बजट अनुमान के मुताबिक यह घटकर 12 रह गए हैं.


सारे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का कुल कर्ज GSDP का कितना होगा


कुल मिलाकर देखा जाए तो सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अपना लोन-जीएसडीपी रेश्यो वित्त वर्ष 2023-24 में 27.6 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान लगाया है. ये 2022-23 रिवाइज्ड एस्टीमेट या संशोधित अनुमान में 27.5 फीसदी है.


राज्यों के उच्च लोन का क्या होता है असर


राज्यों का हाई लोन उनके संसाधनों को खा जाता है, जिससे कैपिटल एक्सपेंडीचर के लिए बहुत कम बचत होती है. उदाहरण के लिए पंजाब को देखें तो इस वित्तीय वर्ष में अपनी राजस्व प्राप्तियों में ब्याज पेमेंट का हिस्सा 22.2 फीसदी होने का अनुमान है. पश्चिम बंगाल के लिए यह 20.11 फीसदी, केरल के लिए 19.47 फीसदी, हिमाचल प्रदेश के लिए 14.6 फीसदी और राजस्थान के लिए 13.8 फीसदी पर है. 


इसका अर्थ साफ है कि राज्यों को जो रेवेन्यू मिल रहा है उसमें से बड़ा हिस्सा वो अपने कर्ज को चुकाने में खर्च कर रहे हैं. सामान्य शब्दों में कहें तो राज्यों की कमाई का बड़ा हिस्सा लोन को चुकाने में जा रहा है जिससे उनके अपने यहां विकास कार्यों के लिए ज्यादा रकम नहीं बचा पा रहे हैं.


आरबीआई रिपोर्ट में ओल्ड पेंशन स्कीम के भी रिस्क बताए


आरबीआई रिपोर्ट में कुछ राज्यों के ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) को दोबारा वापस लाने पर विचार करने से जुड़े रिस्क को दिखाया है. केंद्रीय बैंक ने चेतावनी दी है कि इस तरह के बदलाव से राज्य के फाइनेंस पर काफी बोझ पड़ सकता है. इसके बाद विकास कार्यों पर कैपिटल खर्च करने की उनकी कैपिसिटी सीमित हो सकती है.


केंद्रीय बैंक के अनुमान से पता चलता है कि यदि सभी राज्य नेशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएस) से ओपीएस पर वापस लौटते हैं तो साल 2060 तक जीडीपी के ऊपर फिस्कल डेफिसेट बड़ा बोझ बनेगा. ये 0.9 फीसदी के अतिरिक्त बोझ के साथ एनपीएस के 4.5 गुना तक बढ़ सकता है.


आरबीआई रिपोर्ट के आकलन का निष्कर्ष क्या है


31 राज्यों में से अगर केवल 12 राज्य और UTs का हिस्सा ही GSDP के 35 फीसदी से ज्यादा होगा तो ये देश में राज्यों के बीच आर्थिक असामनता का एक बड़ा उदाहरण कहा जा सकता है. अगर राज्यों की वित्तीय स्थिति ही खराब होगी तो वो देश के संपूर्ण विकास में अपना हरसंभव योगदान कैसे दे पाएंगे.


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