Madras High Court: मद्रास हाईकोर्ट ने बुधवार (13 दिसंबर) को बहस की कि क्या हिंदू धार्मिक नेताओं की टारगेट किलिंग को यूएपीए की धारा 15 के तहत परिभाषित आतंकवादी एक्ट माना जा सकता है? इस बहस के बाद कोर्ट ने UAPA के तहत गिरफ्तार एक शख्स को जमानत देते हुए कहा कि ये एक बहस का मुद्दा है.


जस्टिस एसएस सुंदर और सुंदर मोहन की खंडपीठ ने कहा कि सबूतों से पता चलता है कि कुछ धार्मिक नेताओं पर हमला करने की साजिश थी. अधिकारियों ने ये नहीं बताया कि इसे टेररिस्ट एक्ट कैसे माना जाए जैसा कि UAPA की धारा 15 के तहत परिभाषित किया गया है. अदालत अभियोजन पक्ष के दावों से सहमत नहीं हुई और आरोपी को सशर्त जमानत दे देती है.


‘आतंकवादी घटना स्थापित करने के पर्याप्त सबूत नहीं’


आरोपी कथित तौर पर आईएस में शामिल होना चाहता था और उसने बीजेपी और आरएसएस से जुड़े हिंदू धार्मिक नेताओं को मारने की साजिश रची थी. अदालत ने यूएपीए के तहत गिरफ्तार इस शख्स को यह कहते हुए जमानत दे दी कि सबूत भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा या संप्रभुता को खतरे में डालने या लोगों में आतंक पैदा करने के इरादे को स्थापित नहीं करते हैं. पीठ ने आरोपी आसिफ मुस्तफीन की ओर से जमानत पर रिहाई की मांग करने वाली याचिका पर ये टिप्पणी की.


आरोपी आसिफ को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने 26 जुलाई 2022 को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था. पहले दायर की गई उसकी जमानत याचिकाओं को ट्रायल कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. पिछले 17 महीनों से ये जेल में बंद था. अभियोन पक्ष ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि आरोपी आईएस का सदस्य बनना चाहता था और उसने दूसरे ऐसे आरोपी के साथ नजदीकियां बढ़ाईं जो वैश्विक आतंकवादी संगठन का पहले से सदस्य था. इन दोनों ने बीजेपी और आरएसएस से जुड़े हिंदू धार्मिक नेताओं को मारने की योजना बनाई थी.


अभियान पक्ष की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा कि जो सबूत मिले हैं वो कहीं से भी ये इशारा नहीं करते हैं कि आरोपी आईएस में शामिल हो गया था या फिर दूसरा आरोपी और उसका साथी आतंकवादी ग्रुप का मेम्बर था.


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