By: ABP Live Focus | Updated at : 02 Aug 2023 04:00 PM (IST)
मणिपुर की स्थिति पर सर्वेक्षण ( Image Source : Pollsters India )
● 55% ने इसे जातीय संघर्ष माना वहीं सिर्फ 29% ने इसे कानून व्यवस्था का मुद्दा माना
● 50% का मानना है कि राज्य सरकार से उठाए गए कदम नाकाफी थे, वहीं 57% केंद्र सरकार के प्रयासों से संतुष्ट
● बीजेपी के समर्थक और राजनीतिक तौर पर तटस्थ लोग बड़े पैमाने पर मणिपुर मुद्दे पर बीजेपी के साथ
● मुद्दे को जोर-शोर से उठाने के बावजूद INC+ का ज्यादा असर नहीं, उसके समर्थकों में से सिर्फ 36% ने कानून व्यवस्था का मुद्दा माना जबकि 40% ने जातीय संघर्ष माना
● CATI का उपयोग करके 22 राज्यों से 9679 नमूने एकत्र किए गए
सर्वे की अग्रणी कंपनी पोलस्टर्स इंडिया के मणिपुर की स्थिति पर किए गए एक सर्वे में आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए हैं जो इस मसले पर बनाई गई धारणा और जमीनी वास्तविकता के बीच स्पष्ट अंतर को स्थापित करते हैं. सर्वेक्षण में पाया गया कि एक भारी बहुमत मणिपुर को जातीय संघर्ष के रूप में अधिक देखता है और कानून-व्यवस्था की समस्या के रूप में कम. सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश लोगों ने इस समस्या के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया, जबकि केंद्र सरकार को लेकर उनका मानना था कि उसकी इस मामले में अधिक भूमिका नहीं है. ये नतीजे काफी दिलचस्प हैं क्योंकि विपक्षी सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल मौजूदा दौर में स्थिति का आंकलन करने के लिए मणिपुर का दौरा कर राज्य की बिगड़ती स्थिति के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहा है.
मई की शुरुआत में शुरू हुई थी हिंसा
राज्य में मई की शुरुआत में शुरू हुई हिंसा में कई लोग मारे गए हैं. ऐसे में सवाल था कि इस हिंसा का प्राथमिक कारण क्या है? सर्वेक्षण इस प्रश्न का बेहद स्पष्ट उत्तर देता है. सर्वेक्षण में शामिल 55% उत्तरदाताओं ने इसे मैतेई और कुकी के बीच एक जातीय संघर्ष के रूप में देखा, जबकि केवल 29% ने इसे कानून-व्यवस्था की समस्या के रूप में देखा, वहीं 16% का इस मामले पर कोई स्पष्ट नजरिया नहीं था.
सर्वे से यह संकेत मिलता है कि केंद्र सरकार के खिलाफ विपक्ष के हमले का बेहद सीमित प्रभाव है. अधिकांश उत्तरदाताओं ने इसे केवल राज्य का मुद्दा माना है और इस स्थिति के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. सर्वेक्षण में लगभग आधे उत्तरदाताओं का मानना था कि राज्य सरकार ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं. इसके विपरीत, 34% उत्तरदाताओं ने कहा कि राज्य सरकार ने जिस तरह से स्थिति को संभाला है, उससे वे संतुष्ट हैं.
दिलचस्प बात यह है कि केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर बहुमत का समर्थन मिला. लगभग 57% उत्तरदाताओं का मानना है कि केंद्र सरकार ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त प्रयास किए हैं. केवल एक चौथाई (1/4) उत्तरदाताओं का मानना था कि केंद्र सरकार और अधिक कोशिश कर सकती थी, जबकि 18% उत्तरदाताओं का इस मामले पर कोई स्पष्ट दृष्टिकोण नहीं था.
लोगों का मत जानने की भी की गई कोशिश
सर्वेक्षण में पार्टी लाइन पर भी लोगों का मत जानने की कोशिश की गई. इस दौरान मणिपुर के मुद्दे पर बीजेपी और कांग्रेस (सहयोगियों समेत) के समर्थकों का मूड जानने की कवायद की गई. सर्वे में मालूम हुआ कि 70% बीजेपी समर्थक मणिपुर को एक जातीय संघर्ष के रूप में देखते हैं जबकि जो लोग कांग्रेस (और उसके सहयोगियों) का समर्थन करते हैं वे इस मुद्दे पर विभाजित हैं. 40% कांग्रेस+ समर्थकों का मानना है कि मणिपुर विवाद जातीय संघर्ष की देन है, जबकि 36% इसे कानून और व्यवस्था की समस्या के रूप में देखते हैं. सर्वेक्षण में राजनीतिक रूप से तटस्थ लोगों से भी संपर्क किया गया. राजनीतिक तटस्थ लोग, जो खुद को किसी भी राजनीतिक दल के समर्थक के रूप में नहीं देखते हैं, इस मुद्दे पर बीजेपी की ओर अधिक झुकते पाए गए. 51% 'राजनीतिक तटस्थ' लोगों का मानना है कि मणिपुर एक जातीय संघर्ष है, जबकि 31% इसे कानून और व्यवस्था की समस्या मानते हैं. कांग्रेस गठबंधन से अलग दूसरे दलों का समर्थन करने वाले 44% लोग इसे एक जातीय संघर्ष के तौर पर देखते हैं, जबकि ऐसे 41% लोगों का मानना है कि यह कानून और व्यवस्था की समस्या है.
डिस्क्लेमर:
वर्तमान सर्वेक्षण के निष्कर्ष और अनुमान पोल्स्टर्स इंडियाज़ के सर्वेक्षण पर आधारित हैं, जो 22 से 27 जुलाई के बीच किया गया था, जिसमें 9,679 वयस्क उत्तरदाताओं (18+) को शामिल किया गया था. ये सर्वे 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सीएटीआई सिस्टम के जरिए रैंडम नंबर विधि से किया गया. मार्जिन ऑफ इरर मैक्रो स्तर पर +/- 3% और माइक्रो स्तर पर +/- 5% है.
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