'समझदार' मतदाता !
सादर प्रणाम,


मैं कुशल मंगल हूं. दुआ करता हूं कि आप ऐसे ही 'समझदार' बिल्कुल ना बने रहें. ईश्वर आपको वास्तव में इतना समझदार बना दें कि आप सुखद मकरंद बन जाएं. जिस लोकतंत्र को इतिहास ने अपने लहू से सींचा है उसे यूं कमजोर मत होने दीजिए. सियासत चाहकर भी आपके जीवन में जहर नहीं बो सकती है. इसके लिए आप अपने इतिहास के महापुरूषों को शुक्रिया कहिए. टीवी देखते हुए, चाय का कप पकड़कर यदि आप बदल रही सियासत को गाली देते हैं. तो माफ करिए..जरा आंख बंद कर अपने अंदर झांकिए.. सारा कूड़ा उसी में भरा है. चलिए आज आपको आपके अंदर के कूड़े से मुलाकात कराता हूं. मन करे तो साफ करिए या उसको सहेजकर रखिए आपकी मर्जी...

आजकल महीने भर से चुनावी मौसम चल रहा है. रोज सुनता हूं अरे फलां ने ये विवादित बयान दिया..वो विवादित बयान दिया. चाय का कप पकड़े आप, अपने बेटे और बहू से बोलते हैं कि राजनीति में भड़काऊ भाषणों से जनता को कुछ नहीं मिलता. क्योंकि इनमें कहीं भी सड़क, स्कूल, अस्पताल, सुरक्षा देने का वादा नहीं होता है. बल्कि इसके बदले जनता को डराने, भड़काने और हिंसा के लिए उकसाने की बात की जाती है. लेकिन जैसे ही चुनाव का दिन नजदीक आता है आपकी समझदारी पर पर्दा पड़ जाता है. आप एक पक्षकार बन जाते हैं. मैं यूं ही नहीं कह रहा हूं आज आपको आइना दिखा रहा हूं आप चेहरा तथ्यों के जरिए देखिए.. छुपाइए मत.. इसका सबूत अब हम आपको देते हैं.

इंडिया स्पेंड के तरफ से 12 साल के चुनावों पर किया गया एक विश्लेषण बताता है कि ईमानदार छवि वाले उम्मीदवार के मुकाबले भड़काऊ बयान देने के आरोपी कैंडिडेट तीन गुऩा ज्यादा सफल हैं. 12 साल में देश हुए चुनावों में अगर बिना किसी आपराधिक केस वाले 82,970 उम्मीदवार उतरे तो सिर्फ 10 प्रतिशत जीत पाए. लेकिन इन 12 सालों में भड़काऊ बयान देने के आरोपी 399 उम्मीदवारों में 30 प्रतिशत ने जीत हासिल की. पिछले 12 साल में लोकसभा-विधानसभाओं के चुनाव में भड़काऊ भाषण देने के आरोपी 399 नेताओं को अलग अलग पार्टी ने टिकट दिया. जिनमें सबसे ज्यादा भड़काऊ भाषण देने के 97 आरोपी नेता बीजेपी से टिकट पाए हैं. बीएसपी ने ऐसे 28 आरोपियों कांग्रेस ने भी 28 आरोपियों और समाजवादी पार्टी ने 25 आरोपियों को टिकट देकर मैदान में उतारा. अब आपको समझ आया कि नेता विवादित बयान क्यों देते हैं? क्योंकि सड़क, स्कूल, अस्पताल, सुरक्षा के बजाए आपको उसी में मजा आता है. अब इधर उधर मत झांकिए.. हो सके तो खुद में झांकिएगा..नेता तो वही कहेगा जो आपको पसंद है.

भाई अपने पिता पर हंसो मत चलो तुम्हें भी आइना दिखाने की कोशिश करता हूं. चुनाव से पहले और चुनाव के बाद तुम बेरोजगार बन जाते हो. चुनावी मौसम में तुम बेरोजगार नहीं..हिन्दू, मुसलमान, दलित, यादव, अगड़ा, पिछड़ा, कुशवाहा, तिवारी, बाबू साहब, पटेल, निषाद और पता नहीं क्या क्या बन जाते हो? बस वोट देते वक्त बेरोजगार नहीं रहते हो. इसीलिए वोट पाने के बाद कोई भी सरकार बने किसानों और बेरोजगारों को बेवकूफ बना देती है . फिर किसान और नौजवान सालों तक रोते हुए सरकारों को कोसते हैं. अरे भाई किसान और बेरोजगारी की चर्चा सभी करते हैं लेकिन किसी भी चुनाव में ये मुद्दा क्यों नहीं बनते? फिलहाल यूपी चुनाव में ही देख लीजिए तीन बड़े मुद्दे हैं, यादव, दलित, मुसलमान और हिन्दू-मुसलमान (इसमें, श्मशान-कब्रिस्तान, लव जेहाद, कैराना सब शामिल है). क्या किसान और बेरोजगारी मुद्दा है? क्या दलित, सवर्ण, पिछड़ा हिन्दू मुसलमान सभी खेती नहीं कराते हैं? ये बेरोजगार और किसान के रूप में कभी संगठित क्यों नहीं होते. वोट देते समय जाति और धर्म में क्यों बंट जाते हैं? भाई जैसी प्रजा वैसा ही राजा मिलता है. रोओ मत.. जैसा बोओगे वैसा काटोगे.

अब तुम्हारे हालात का सबूत भी दे रहा हूं. इच्छा हो तो याद कर लो. कभी इसके बारे में भी नेताजी से पूछ लेना..जाति और धर्म से छुटकारा मिल जाए तो. बेरोजगारी की दर बढ़कर 5 प्रतिशत हो गई है. यह मैं नहीं कह रहा हूं संसद में मोदी सरकार के मंत्री जी उवाचे हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में जिनके पास कोई काम नहीं उनकी तादाद 6 करोड़ 7 लाख है. और जिनके पास कोई सुनिश्चित काम नहीं उनकी तादाद 5 करोड़ 85 लाख है. कुल मिलाकर करीब 12 करोड़ लोग देश में ऐसे हैं जिनके पास रोजगार नहीं है. अनुमान है कि अगले तीन साल में ये देश में बेरोजगारी की संख्या 13 करोड़ 89 लाख हो सकती है. एक आंकड़े के मुताबिक 2001 से 2015 के बीच बेरोजगारी के कारण 72 हजार 333 लोगों ने खुदकुशी की.
संसद से सड़क तक सियासत की हर सांस बिना किसान मानों पूरी नहीं होती. एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट बताती है कि साल 2015 में 12 हजार 602 किसानों और कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की है. इस रिपोर्ट की मानें तो साल 2014 में 12 हजार 360 आत्महत्या के मुकाबले 2015 में दो प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. इधर किसानों की आत्महत्या और बदहाली बढ़ती जा रही है उधर नेताजी मालामाल होते जा रहे हैं. सोचिए आपने सोने में 15 साल निवेश किया होगा तो फायदा 13.66 प्रतिशत हुआ होगा. आपने शेयर बाजार में 15 साल निवेश किया होगा तो फायदा 13.97 प्रतिशत हुआ. लेकिन पांच साल सियासी कुर्सी पर निवेश करने पर मुनाफा 1015 प्रतिशत तक पहुंच जाता है. उधर सब मस्त है और आप पस्त हैं. पता है क्यों.. क्योंकि आपको वोट देते समय अपने किसानी की नहीं..जाति और धर्म को बचाने की जिद्द होती है.

सियासत में आपका समझदारी भरा वोट ही व्याकरण है. यदि सही व्याकरण हो तो गद्य भी पद्य जैसा सुरीला हो सकता है. आप जैसा हर युवा मन मुताबिक परोसे गये भाषण के बजाए अपने चारो तरफ तार्किकता से ध्यान दे तो हर धोखे से बच जाए.

आपका शुभचिंतक

प्रकाश

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