पूर्वांचल से बीजेपी के उदय की कमान सीधे प्रधानमंत्री मोदी ने संभाल ली है तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कील-कांसे दुरुस्त करने का जिम्मा गृह मंत्री अमित शाह के पास होगा. बात जब देश के सबसे बड़े सूबे जहां से पीएम खुद चुनकर आते हों तो वहां किसी भी मोर्चे पर बीजेपी आलाकमान जरा भी कोताही नहीं बरतेगा. भले ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हों, लेकिन यूपी की सत्ता के दो प्रमुख ध्रुव पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीधी कमान मोदी-शाह खुद संभाल रहे हैं.


राज की बात ये है कि बीजेपी मानकर चल रही है कि यूपी में उसके लिए सत्ता में वापसी की सभी संभावनाएं हैं. बस स्थानीय गुटबाजी और संगठन व सरकार में महत्वाकांक्षाओं की आपसी लड़ाई को मुखर नहीं होने देना है. खासतौर से सामाजिक, जातीय और राजनीतिक समीकरण साधने के लिए थोड़ा सख्त और कूटनीतिक होने की जरूरत है. इसीलिए, अमित शाह के यूपी दौरे के बाद ही प्रदेश के चुनावी फ्रेम के केंद्र में तबसे पीएम मोदी ही हैं. चाहे काशी में विश्वनाथ धाम का लोकार्पण हो या फिर जेवर हवाई अड्डा, पूर्वांचल एक्सप्रेस वे या अब काशी में फिर अमूल दुग्ध डेरी का शिलान्यास. हर जगह आस्था और विकास की कमान मोदी संभाले हुए हैं.


राज की बात ये है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में जिस तरह से जातीय धड़ेबंदी को विपक्ष उभार रहा है और पार्टी के भीतर से भी कुछ संकेत आए हैं, उसके बाद ही पीएम को इस पिच पर खुद उतरना पड़ा. ब्राह्मण और ओबीसी को साधने के लिए नेताओं के चेहरे मंच पर कैसे दिख रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं. सीएम के साथ-साथ डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को मोदी लगातार तवज्जो देते दिख रहे हैं.


इसके अलावा महेंद्र नाथ पांडेय और लक्ष्मीकांत वाजपेयी जैसे नेताओं को भी तवज्जो मिल रही है. बीजेपी नेतृत्व पूरा संदेश दे रहा है कि किसी जाति या वर्ग के साथ कोई बेइंसाफी नहीं कर सकेगा. हालांकि, इस दौरान सीएम योगी की छवि को भी भरपूर भुनाया जा रहा है, ताकि उनकी जो उनका एक प्रशंसक वर्ग तैयार हुआ है, उसके बीच गलत संदेश न जाए.


राज की बात ये है कि पीएम पूर्वांचल के साथ वैसे तो पूरे प्रदेश में ही बीजेपी का ट्रंप कार्ड हैं, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रचार से लेकर सियासी गोटियां सेट करने की कमान सीधे अमित शाह संभालेंगे. शाह पूरे प्रदेश में करीब 150 से ज्यादा विधानसभाओं को अपने कैंपेन में रखेंगे, जिसमें अन्य विधानसभा के चेहरे भी होंगे.


इसमें प्रमुख तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश केंद्र में होगा. 2014 से लेकर 2017 और फिर 2019 के सभी चुनावों में शाह का प्रबंधन और उनकी छवि भी अहम थी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उनके फैसलों ने बड़ी लकीर भी खींची थी. उसी बेलौस छवि को पार्टी इस दफा भी भुनाएगी.



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