मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव बीते गुरुवार यानी 18 जनवरी को बिहार के दौरे पर थे. जब वे मुक्खमंत्री बने थे तब भी लोगों को काफी अश्चर्य हुआ था और कई लोगों ने इसे बीजेपी का ट्रंप कार्ड भी बोला था. यूपी और बिहार जहां यादवों की जनसंख्या अधिक है, वहां यादवों का वोट बहुत ही प्रभावी होता है, उसको साधने की कोशिश के तौर पर भी यह देखा गया था. गुरुवार को मोहन यादव बिहार में 4 घंटे रुके, भाषण दिया, कार्तकर्ताओं से मिले और फिर चले गए. उन्होंने अपनी सारी बात यादवों, गोपालकों, यदुवंशियों और श्री कृष्ण के इर्द-गिर्द रखा. साथ ही मोहन यादव ने बिहार के पिछड़ेपन और बेरोजगारी का जिक्र करते हुए जहां एक तरफ राज्य की नीतीश सरकार पर हमला बोला तो अपने भाषण में नीतीश और लालू प्रसाद का नाम लेने से परहेज किया. उन्होंने बिहार के लोगों की प्रतिभा की तारीफ के पुल भी बांधे. वहां की सरकार पर हमला करते हुए उन्होंने सरकारी कामकाज पर निशाना साधा, लेकिन किसी व्यक्ति पर हमला नहीं किया.

  


बिहार के पिछड़ेपन और बेरोजगारी का जिक्र 


यूपी और बिहार में यादवों के वोट की अहमियत को देखते हुए इस प्रकार का निर्णय लिया गया है, यह बात उस वक्त भी कही गई जब मोहन यादव को मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री पद पर बिठाया गया. बिहार में कास्ट सर्वे को लेकर राजनीति हुई और जो रिजल्ट बिहार ने जारी किया, उसके बाद से ही देश की दो सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस मुद्दे को ऐसे झपटा मानो ये एक अलाद्दीन का चिराग उनके हाथ लग गया हो और इससे उनकी नैया पार हो जाएगी, लेकिन ऐसा कुछ होते हुए दिखाई नहीं दिया. हालांकि, कहीं न कहीं भाजपा को दूसरी तरफ ये जरूर लगा कि ये एक ट्रंप कार्ड नीतिश कुमार का है, महागठबंधन का है. ये बिहार से निकला हुआ एक ऐसा तीर है जो 2024 के चुनाव के लिए नुकसान साबित हो सकता है. ये डर राजनैतिक तौर पर स्वभाविक था. कहीं न कहीं भाजपा इस मुद्दे से पीछे हटी है. भाजपा ने यह सोचना शुरू किया है कि इसके लिए क्या किया जाए.



ध्यान से देखा जाए तो भाजपा के बहुत से निर्णय कास्ट सर्वे को काटने के लिए है. मोहन यादव बिहार आए और कार्यक्रम में गए, उन्होंने अपनी सारी बात यादवों, गोपालकों, यदुवंशियों और श्री कृष्ण इन्हीं के इर्द-गिर्द रखी. साथ ही मोहन यादव ने बिहार के पिछड़ेपन और बेरोजगारी का जिक्र करते हुए जहां एक तरफ राज्य की नीतीश सरकार पर हमला बोला तो वहीं वहां के लोगों की प्रतिभा की तारीफ के पुल भी बांधे. उन्होंने सरकारी कामकाज पर निशाना साधा लेकिन लालू यादव या फिर नीतीश कुमार का नाम नहीं लिया. 


लालू यादव और नीतीश कुमार का कॉम्बो कठिन 


शाम के समय डॉ. मोहन यादव इस्कॉन गए, श्रीकृष्ण की आरती की, उस समय उनके साथ रामकृष्ण यादव और रामकृपाल यादव मौजूद रहे. यह भी खबर सामने आ रही है कि जहां उन्होंने भाषण दिया है वहां पर यादव नेताओं की संख्या अधिक थी. ये सीधी बात है कि 2024 का चुनाव नजदीक है. यदि संभव हुआ तो नीतीश कुमार और लालू यादव 2014 और 2019 के बाद पहली बार मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे. 2015 में वे एक साथ विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं. 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव और नीतीश कुमार एक साथ थे, सबने देखा था कि चुनाव का रिजल्ट क्या था. 2020 में भले ही नीतीश कुमार भाजपा के साथ थे लेकिन बिना अपने माता-पिता के पोस्टर का इस्तेमाल किए तेजस्वी यादव ने अपने आप को और अपनी पार्टी को सबसे बड़ा दल बना दिया, ये राजद के लिए बहुत बड़ी बात थी. कहीं न कहीं ये एक संकेत था कि विधानसभा के चुनावों में यादव वोट राजद के सिवाय कहीं नहीं जाता. 



बदली हुई परिस्थिति में भाजपा को डर


लोकसभा के चुनाव में कोई ऐसा डेटा मौजूद नहीं है लेकिन यह माना जाता है कि चुनाव में यादव वोटों का बिखराव हो जाता है. जैसा कि 2019 के चुनाव में देखा गया कि राजद की सीट शून्य है, महागठवंधन में कांग्रेस को एक ही सीट मिली थी. लेकिन विधानसभा चुनाव में यह उल्टा हो जाता है. चूंकि भाजपा को यह पता है कि पहली बार नीतीश कुमार और लालू यादव मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं तो जो यादव वोटों का बिखराव भाजपा के पक्ष में हो जाता था, वह इस बार नहीं हो सकता है. हालांकि, भाजपा बिहार में नंदकिशोर यादव , रामकृपाल यादव और  नित्यानंद राय के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश करती रही है कि हम यादवों का सम्मान करते हैं, उनको बिहार का अध्यक्ष भी बनाया गया था.


इसके बावजूद भी यादवों का वोट विधानसभा चुनाव में लालू यादव को छोड़कर कहीं नहीं जाता हैं. भले ही लोकसभा के चुनाव में इस बार की परिस्थिति बदली हुई है. इस बदली हुई परिस्थिति में भाजपा को डर है और इसलिए भाजपा ने प्रतीकात्मक तौर पर मोहन यादव को सीएम के पद पर खड़ा किया है. भाजपा ने यह काम सामान्य कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए किया है.


आज की ही खबर है कि राजद के पूर्व सांसद पार्टी छोड़कर चले गए है. साथ ही यह आरोप भी लगाया है कि राजद परिवार की पार्टी है. मोहन यादव ने बिहार में जितने भी बयान दिए, वे सभी बयान बहुत ही संतुलित हैं और राजनीतिक तौर पर ऐसा कहा जा सकता है कि ये ठीक भी है कि वो बयान देकर ये संदेश देना चाहते है कि भाजपा में यादवों का स्वागत हैं. चूंकि उनकी संख्या भी ठीक हैं, तो आप अपनी हिस्सेदारी भाजपा में आकर ले सकते है और आप क्यों किसी एक पार्टी के परिवार के तरफ 30 सालों से समर्पित है, यह सवाल भी वह यादवों तक पहुंचाना चाहते हैं, लेकिन ये संदेश कितना काम करेगा, ये अब आने वाले चुनाव के परिणाम से ही पता चलेगा.



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