कठुआ और उन्नाव में बलात्कार की दो घटनाएं भारतीय राजनीति के उस शर्मनाक चेहरे को सामने ला रही है जो अभी तक बापरदा रहा है. जम्मू कश्मीर के कठुआ में आठ साल की बच्ची के साथ सामुहिक रेप होता है. यहां तक कि मरी हुई बच्ची से भी एक पुलिस वाला रेप करता है और पूरा मामला हिंदु –मुस्लिम हो जाता है. हद तो यह है कि वकीलों ने चार्जशीट तक दाखिल होने में रोड़े अटकाए. यूपी के उन्नाव में एक राजपूत बीजेपी विधायक पर एक नाबालिग बच्ची के साथ बलात्कार का आरोप लगता है. पूरा पुलिस प्रशासन मानों लगता है कि विधायक के बचाव में उतर आया है. इलाहाबाद हाई कोर्ट तक को पूछना पड़ रहा है कि आखिर यूपी सरकार आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को कब गिरफ्तार करेगी. रेप की यह दोनों घटनाएं बताती हैं कि राजनीतिक नेता और सत्ता के दबाव में प्रशासन किस तरह संवेदनहीन हो गया है. वैसे यह पहली बार नहीं है जब रेप पर राजनीति हो रही हो.


आपको याद होगा राजस्थान की साथिन भंवरी देवी के साथ हुए सामूहिक रेप की कहानी जो नब्बे के दश्क में हुई थी. साथिन भंवरी देवी राज्य सरकार के महिला एवं बाल कल्याण विभाग से साथिन के रुप में जुड़ी थी और उस पर बाल विवाह की पूर्व सूचना प्रशासन को देने की जिम्मेदारी थी. उसने गांव के प्रभावशाली गुर्जरों के यहां बाल विवाह होने की सूचना दी तो उसके साथ गैंगरेप हुआ. तब भी बीजेपी गुर्जरों के बड़े नेता राजेश पायलट पर आरोपी गुर्जरों का आरोप लगाती रही थी. गौरतलब है कि भंवरी देवी रेप केस सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और कामकाजी महिलाओं के यौन शोषण के खिलाफ सख्त गाइडलाइंस केन्द्र को जारी करनी पड़ी. हैरानी की बात है कि भंवरी देवी रेप केस के सभी आरोपी अदालत से बरी हो गये थे और अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि चाचा भतीजा मिलकर रेप नहीं कर सकते और उंची जाति का आदमी छोटी जाति के महिला के साथ रेप करके अपनी जात खराब नहीं कर सकता. कुछ ऐसा ही तर्क उन्नाव रेप केप में भी बीजेपी के नेता दे रहे हैं. लेकिन बड़ी बात है कि 2012 में दिल्ली में निर्भया रेप केस के बाद जस्टिस जे एस वर्मा कमेटी की सिफारिशों को पूरी संवेदनशीलता के साथ लागू करने का संकल्प पूरे देश की राज्य सरकारों ने लिया था. इस पृष्ठभूमि में उन्नाव और कठुआ की घटनाओं को देखने पर सिर नीचे झुक जाता है.

यूपी में योगी सरकार एंटी रोमियो स्क्वॉड लेकर आई थी. रेप और महिलाओं के साथ छेड़खानी को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया था. लेकिन खुद की पार्टी के एक विधायक पर रेप का आरोप लगा तो सारे नियम कानून कायदे भूल गयी. डीजी पुलिस विधायक को माननीय विधायक जी कह रहे हैं और माननीय विधायकजी टीवी कैमरों के आगे मुस्कराते हुए कहते हैं कि उन्हें झूठा फंसाया जा रहा है. हो सकता है कि ऐसा ही हो रहा हो लेकिन सत्ता में रहते हुए संविधान की रक्षा के शपथ लेने वाली सरकार कानूनों की अवहेलना नहीं कर सकती. जब साफतौर पर कानून कहता है कि रेप का आरोप लगने पर पुलिस को एफआईआर लगानी है तो लगानी चाहिए थी. जब कानून कहता है कि आरोपी से पूछताछ और गिरफ्तारी होनी चाहिए तो कम से कम पूछताछ तो होनी चाहिए थी. जब कानून कहता है कि नाबालिग से रेप पर पास्को लगता है तो यह धारा पहले ही लग जानी चाहिए थी. यह सब नहीं हुआ तब तक मीडिया में हल्ला नहीं मचा और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्वत संज्ञान नहीं लिया. ऐसा होने पर एफआइआर तो हुई लेकिन पुलिस से छीनकर केस सीबीआई को भेज दिया और तकनीकी आड़ में विधायक की गिरफ्तारी नहीं होने दी. सवाल उठता है कि अगर सीबीआई केस लेने से इनकार कर देती है तो.....सवाल उठता है कि सीबीआई इस केस को दस दिनों बाद हाथ में लेती है तो क्या तब तक आरोपी की गिरफ्तारी नहीं होगी...तब तक विधायक सबूतों को मिटाने की कोशिश करने के लिए आजाद होंगे. तब तक रसूख का इस्तेमाल कर केस को दबाने की गुंजाइश निकालने के लिये स्वतंत्र होंगे. सवाल उठता है कि अगर यही आरोप किसी आम आदमी पर लगा होता तब भी क्या योगी सरकार की पुलिस इसी तरह के गिरफ्तार नहीं करने के तर्क देती .

कठुआ में आठ साल की बच्ची के साथ बलात्कार इलाके से बकरवाल समुदाय के लोगों के खदेड़ने के लिए किया गया. ऐसा आरोप अगर सच है तो यह सच में शर्मनाक है. कहा जा रहा है कि जम्मू में गुर्जर और बकरवाल की कुल आबादी ग्यारह फीसदी से ज्यादा है और रेप के कथित आरोपी हिंदू सेवा समिति या हिंदु जागरण मंच से जुड़े हैं. कहा जा रहा है कि बलात्कारियों के पक्ष में हुई रैली में बीजेपी के मंत्री और विधायक तक शामिल हुए. कहा जा रहा है कि ऐसी समिति और मंच को बकरवाल-गुर्जरों की बढ़ती आबादी से जम्मू की डेमोग्राफी में बदलाव की चिंता थी. कहा जा रहा है कि इन दोनों को वन अधिकारों के तहत कुछ सहूलियतें मिली हैं. इनमें वन क्षेत्र में खेती करना और लघु वन उपज के इस्तेमाल की छूट शामिल है. दूसरे समुदायों को लगता है कि गुर्जर और बकरवाल दूध का धंधा करके संपन्न होते जा रहे हैं और जनसंख्या के हिसाब से भी सियासी रुप से चुनावी राजनीति में शक्तिशाली होते जा रहे हैं. अगर पहला हिस्सा यानि संपन्न होने वाली बात सच भी है तो भी अन्य समुदायों को जलन के बजाए इसे प्रतिस्पर्धा की तरह ही लिया जाना चाहिए था . अगर कोई आगे बढ़ रहा है और हाशिए से मुख्यधारा में आ रहा है तो इसका मतलब उस समुदाय की आठ साल की बच्ची से बलात्कार और उसकी हत्या करना नहीं है. राजनीति का जवाब राजनीति से दिया जाता है और सभ्य समाज में न तो रेप के लिए जगह है और न ही हिंसा के लिए. और अगर यह गुर्जरों बकरवालों को सबक सिखाने के लिए एक षडयंत्र के रुप में किया गया है तो इससे ज्यादा शर्मनाक हरकत कोई हो ही नहीं सकती.

जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का कहना ठीक है कि हाथ में तिरंगा लेकर रेप करने का समर्थन करने वाले तिरंगे का ही अपमान कर रहे हैं. लेकिन मुख्यमंत्री सिर्फ बयान तक सीमित नहीं रह सकती. उन्हें देखना ही होगा कि पूरे मामले की गहराई से जांच हो और आरोपियों को सख्त से सख्त सजा मिले. भारत में तो कसाब जैसे आतंकवादी को भी वकील दिया गया था लेकिन कठुआ की रेप पीड़ित का मुकदमा लड़ रही वकील को केस से हट जाने की धमकी दी जा रही है. कम से कम महबूबा मुफ्ती इस बात की व्यवस्था तो कर ही सकती हैं कि महिला वकील जान की परवाह किये बगैर अदालत में आ जा सके. भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में यह खबर पढ़ कर हैरानी परेशानी होती है कि रेप का मामला हिंदु मुस्लिम हो गया है और सरकार दो सिखों को सरकारी वकील बना रही है. कल को यह नहीं कहा जाए कि जज ईसाई होना चाहिए. बीजेपी को भी समझना चाहिए कि उसके नेता रेप के आरोपियों की रैली में जाकर जनता के बीच क्या संदेश दे रहे हैं और अंत में सारा खामियाजा मोदीजी को ही उठाना पड़ सकता है.

काबा किस मुंह से जाओगी गालिब
शर्म तक तुमको नहीं आती.

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