ये सच है कि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में इतने नाटकीय फाइनल कम ही होते हैं. यही वजह है कि दिनेश कार्तिक ने जब आखिरी गेंद पर छक्का लगाकर टी-20 ट्राएंगुलर सीरीज में टीम इंडिया को जीत दिलाई तो कई तरह की चर्चाओं का दौर शुरू हो गया.


उनके बल्लेबाजी क्रम को लेकर चर्चा हुई. टीम में उनकी जगह को लेकर चर्चा हुई. इसके साथ साथ धोनी के विकल्प के तौर पर उनके दावे को लेकर भी गर्मागर्म बहस हुई. जानकारों ने क्रिकेट फैंस के लिए ये आंकड़े भी निकाल दिए कि करीब 14 साल पहले टीम इंडिया में जगह बनाने वाले दिनेश कार्तिक को अब तक कितने मौके मिले हैं.

एक मैचविनिंग छक्के के बाद तारीफ होना लाजमी है लेकिन तारीफ और तुलना के फर्क को समझना जरूरी है. ये समझना जरूरी है दिनेश कार्तिक की काबिलियत और अनुभव ही है जिसकी बदौलत वो अब भी टीम इंडिया का हिस्सा हैं. उनके बारे में ये बात नहीं भूलनी चाहिए कि वो टीम इंडिया के पसंदीदा ‘रिसर्व’ खिलाड़ी भी रहे हैं. भारतीय क्रिकेट में एक दौर ऐसा भी रहा है जब सलामी बल्लेबाज, विकेटकीपर और मध्यक्रम के बल्लेबाज के तौर पर अगर किसी खिलाड़ी का ‘रिप्लेसमेंट’ चाहिए हो तो दिनेश कार्तिक को ही याद किया गया है. ये उस वक्त की बात है जब एन श्रीनिवासन बोर्ड में सबसे ताकतवर हुआ करते थे.

उस वक्त कुछ लोग दिनेश कार्तिक के टीम में होने पर भी सवाल उठाया करते थे. कुछ आज ना होने पर सवाल उठा रहे हैं.  ये सवाल इस वक्त इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि अगले साल वर्ल्ड कप होना है, धोनी कह चुके हैं कि 2019 वर्ल्ड कप के लिए तैयारी कर रहे हैं. ऐसे में इन चर्चाओं और सवालों के इस दौर में निष्पक्ष होकर आंकलन करने की जरूरत है. खास तौर पर इसलिए भी क्योंकि दिनेश कार्तिक ने खुद भी इस तुलना को गलत बताया है.

दिनेश कार्तिक बल्ले से नहीं जमा पाए रंग
5 सितंबर 2004 को जब इंग्लैंड के खिलाफ लॉर्ड्स के एतिहासिक मैच में दिनेश कार्तिक ने बतौर विकेटकीपर बल्लेबाज अपने वनडे करियर की शुरूआत की तो उनमें एक लंबी रेस का घोड़ा दिखाई दे रहा था. घरेलू क्रिकेट में बतौर विकेटकीपर बल्लेबाज वो काफी अच्छा प्रदर्शन करके टीम इंडिया तक पहुंचे थे. मुसीबत ये रही कि अगले काफी समय तक दिनेश कार्तिक बल्ले से टीम में अपनी उपयोगिता साबित नहीं कर पाए. उनकी तकनीक शानदार थी. लोग कहते थे कि वो बिल्कुल ‘रूल-बुक’ के हिसाब से बल्लेबाजी करते हैं. लेकिन वनडे क्रिकेट के बदलते दौर में ‘रूल-बुक’ की बजाए तेजी से रन बटोरने वाले बल्लेबाज की जरूरत थी. जो भरोसेमंद भी हो. कार्तिक यहीं कमजोर साबित हुए.

इसी साल दिसंबर में महेंद्र सिंह धोनी ने अपने वनडे करियर की शुरूआत की. अभी वनडे करियर शुरू हुए 3-4 महीने ही बीते थे कि धोनी ने विशाखापत्तनम में पाकिस्तान के खिलाफ 148 रनों की धुआंधार पारी खेली. इसके बाद से ही वो वनडे टीम के नियमित सदस्य हो गए. 2006 में दिनेश कार्तिक को बमुश्किल तीन-चार वनडे मैच खेलने का मौका मिला. 2007 में फिर भी वो अपेक्षाकृत काफी मैच खेले. लेकिन धोनी इस बीच जब भी मैदान में उतरे अपेक्षाकृत बड़े और आक्रामक स्कोर बनाते चले गए.

धोनी बहुत इम्पैक्ट वाले बल्लेबाज हैं
एक वक्त था जब ये चर्चा लगातार होती थी कि दिनेश कार्तिक धोनी से बेहतर विकेटकीपर हैं. बड़ी संख्या में लोग इस बात से सहमत भी थे कि कार्तिक की कीपिंग बेहतर है. फर्क आता था हमेशा बल्लेबाजी को लेकर. बल्लेबाजी में भी मैच पर उसके ‘इम्पैक्ट’ को लेकर. 2007 विश्व कप में शर्मनाक प्रदर्शन के बाद भारतीय क्रिकेट की अगली बड़ी घटना इंडियन प्रीमियर लीग थी. आईपीएल में धोनी का प्रदर्शन भी वनडे क्रिकेट में उनकी जगह मजबूत करता चला गया.

साथ ही साथ 2007 खत्म होते होते उन्हें वनडे टीम की कप्तानी भी मिल गई. उस टीम की कप्तानी जिसमें सचिन तेंडुलकर, सौरव गांगुली, युवराज सिंह, राहुल द्रविड़ जैसे खिलाड़ी थे. उनकी कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया में भारत ने सीबी सीरीज जीत ली. दिनेश कार्तिक और धोनी की तुलना बस यहीं तक होती थी. इसके बाद बड़ी तेजी से इस तुलना ने ना सिर्फ दम तोड़ दिया बल्कि ये तुलना अप्रासंगिक हो गई. धोनी कामयाबी की नई नई कहानियां गढ़ते चले गए. जिसमें विश्व कप, चैंपियंस ट्रॉफी, टी-20 विश्व कप जैसे बड़े टूर्नामेंट में टीम इंडिया की जीत शामिल है. ऐसे में सिर्फ एक छक्के की वजह से मिली जीत के जश्न में खोकर दिनेश कार्तिक के साथ किसी तरह की अन्याय की चर्चा बेमानी है.