बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से अलंकृत किया गया. कुछ लोग इसे देर से ही सही, लेकिन बहुप्रतीक्षित कदम बता रहे हैं. भारत में सबसे पहले मरणोपरांत भारत रत्न से लाल बहादुर शास्त्री को सम्मानित किया गया था. उन्हें 1966 में भारत रत्न दिया गया था. अभी तक सोलह प्रतिष्ठित व्यक्तियों को देश में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है. कर्पूरी ठाकुर का नाम सत्रहवें स्थान पर है. पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर ट्वीट कर इस जानकारी को साझा किया. उन्होंने कहा कि यह भारत रत्न न केवल कर्पूरी जी के अतुलनीय योगदान का विनम्र सम्मान है, बल्कि इससे समाज में समरसता को और बढ़ावा भी मिलेगा. हालांकि, फैसले के तुरंत बाद बिहार के क्षेत्रीय दलों राजद और जेडीयू ने इसका श्रेय लेते हुए अपनी लंबे समय से चली आ रही मांग और कास्ट-सेंसस को इसके पीछे कारण बताया है. 


सरकार का सराहनीय काम


कर्पूरी ठाकुर के लिए लिया गया ये फैसला बहुत देर से लिया गया है. उन्हें भारत रत्न बहुत पहले ही मिल जाना चाहिए था. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनके दो शिष्य कहे जाने वाले लालू यादव और नीतीश कुमार केंद्र सरकार में रहे, कैबिनेट मंत्री रहे, लेकिन सरकार के ऊपर दबाव नहीं बनाया. उस समय अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार थी, जब नीतीश मंत्री थे, फिर बाद में मनमोहन सिंह की सरकार में लालू यादव थे. इन लोगों को सरकार पर दबाव डालना चाहिए था कि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित किया जाए. यह अफसोस की बात है कि उन्होंने ऐसा नहीं किया. यदि अब प्रधानमंत्री मोदी द्वारा यह फैसला लिया गया है और जनता की भावना का सम्मान किया गया है तो इसके लिए उन्हें वाहवाही भी दी जा रही है, तो यह अच्छा ही है. अगर इसे चुनाव में बिहार के लोगों का वोट लेने की वजह से लिया फैसला भी बताया जा रहा है, तो भी ठीक ही है, आखिर लंबे समय से लंबित काम पूरा हुआ है. लोग तो चाहते ही थे कि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न का सम्मान मिले, तो लोगों पर निश्चित रूप से जादू चलेगा, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है और न ही इसे किसी के द्वारा रोका जा सकता है. यह एक सराहनीय काम है, अभिनंदनीय काम है, इसे भी नकारा नहीं जा सकता है. हजारों लोगों ने कर्पूरी ठाकुर के साथ काम किया है, वो उन्हें उसके लिए बधाई दे रहे हैं.



लालू की बात निरर्थक 


लालू यादव का समय अब समाप्त हो चुका है. वो अब कुछ भी बोल सकते है. इतने दिनों बाद, जब मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर दिया गया, उसके इतने दिनों बाद बिहार में जातीय जनगणना कराकर दायरा बढ़ाया है, इन चीजों का अब कोई मोल नहीं है. दुनिया अब एआई जैसे टेक्नॉलॉजी की दुनिया में पहुंच गई है लेकिन ये अब भी कई साल पुरानी बातें कर रहे है. मंडल कमीशन की सिफारिशों का सर्मथन सबने किया है, लेकिन आज के समय में उसका कोई मूल्य नहीं है. जब लोग आज समाज के सामूहिक उत्थान की बात करते है तो ऐसा लगता है कि हमारा औद्योगिक विकास हो रहा है उसमें हमारा बिहारी समाज कहीं न कहीं पिछे रह गया है. लालू यादव द्वारा तो इसके लिए कुछ भी नहीं किया जा रहा है. वो अपना वंशवाद चला रहे हैं और दूसरो पर आरोप लगाने का काम कर रहे हैं. उनके द्वारा दिया गया बयान फिजूल ही माना जाएगा. लालू यादव जब मनमोहन सिंंह की सरकार में रेल मंत्री थे तब भी उनके द्वारा सम्मान के लिए बात नहीं की गयी.  


अंग्रेजी की अनिवार्यता की थी समाप्त


कर्पूरी ठाकुर एक विलक्षण समाजवादी नेता थे. जिन्होंने उत्तर भारतीय की राजनीति को अपने तरीके से आगे बढ़ाने की कोशिश की थी. वो गरीबों का लोकतंत्रीकरण चाहते थे. वो यह जानते थे कि दुनिया में शिक्षा में सुधार के बिना समाज आगे नहीं बढ़ेगा. कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार 1966 में उप-मुख्यमंत्री और शिक्षामंत्री बने तो अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त की थी, अंगेजी विषय की पढ़ाई बंद नहीं करवाई थी, लेकिन अनिवार्यता खत्म की थी, क्योंकि गरीब वर्ग के लोग पढ़ाई के मामले में पीछे रह जाते थे. अंग्रेजी की अनिवार्यता होने के कारण उनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती थी, इस विषय की वजह से वो पढ़ाई छोड़ देते थे. कर्पूरी ठाकुर ने इन सारे विषयों पर ध्यान दिया और शिक्षा के प्रति आर्कषण पैदा किया. दूसरी बार कर्पूरी ठाकुर ने भूमि सुधार के लिए बनें बटाईदारी कानून को सामने लाने की कोशिश की. उन्होंने महिलाओं के लिए, ऊंची जाति के सामान्य वर्गो के पिछड़े लोगों के लिए आर्थिक रूप से दरिद्र लोगों के लिए भी आरक्षण तीन-तीन प्रतिशत सुनिश्चित किया, मुंगेरी लाल कमीशन में इन लोगों को भी शामिल किया.


कमंडल के साथ मंडल को साधती बीजेपी


नीतीश कुमार द्वारा महिलाओं के लिए पंचायती राज व्यवस्था में आरक्षण 50 प्रतिशत रखा गया है, वो सब कर्पूरी ठाकुर के नक्सें कदम पर आगे बढ़कर लिया गया है, लेकिन लालू यादव और नीतीश कुमार सामाजिक न्याय के हीरो नहीं है. कर्पूरी ठाकुर के सपने को इनके द्वारा पूरा नहीं किया गया है. अब बार - बार यह कहा जा रहा है कि यह फैसला डर के कारण लिया गया है. तो, अगर भाजपा ने डर के कारण यह किया है तो फिर इन्होंने सम्मान से ही क्यों नहीं कर लिया? जय प्रकाश के नाम से, बीएन मंडल के नाम से, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के नाम से यूनिवर्सिटी बनाई गई है लेकिन कर्पूरी ठाकुर के नाम से इनके द्वारा एक भी यूनिवर्सिटी स्थापित नहीं किया गया है. इनके द्वारा सिर्फ वोट लेने के लिए यह कहा जाता है कि हम कर्पूरी ठाकुर के शिष्य है और हम उनके समर्थक है. बीजेपी की सरकार ने यह फैसला लिया है तो हम इसका विरोध नहीं कर सकते क्योंकि उनके द्वारा लिया फैसला अच्छा है. 32 वर्षोे से लालू यादव और नीतीश कुमार की बिहार में सरकार है लेकिन इनके द्वारा कुछ नहीं किया गया है. हम सब बस यही चाहते है कि कर्पूरी ठाकुर का सपना साकार हो. अब अगर कमंडल के साथ भाजपा मंडल को साध रही है, वह कर्पूरी ठाकुर को सम्मान दे रही है, तो उसका स्वागत होना चाहिए. देर आए, पर दुरुस्त आए. 


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]