हस्तरेखा शास्त्र में दोनों हथेली का अध्ययन किया जाता है. हथेली अंगुली, मध्यभाग और मणिबंध व अंगूठे का संयुक्त स्वरूप है. अंगुलियों सबसे छोटी कनिष्ठा कहलाती है. कनिष्ठा लंबी होती है. नजदीक अंगुली रिंग फिंगर के बराबर में जितनी अधिक लंबी होती है उतनी अधिक शुभ मानी जाती है. लंबी कनिष्ठा कागजी कामकाज में व्यक्ति को द़क्ष बनाती है. ऐसे लोग अपना प्रत्येक सरकारी कागज सम्हालकर रखते हैं. समय पर फाइलिंग करते हैं. इनके कागज सदा तैयार रहते हैं.


इस गुण से व्यक्ति कार्य व्यापार में खासा सफल रहता है. उसे व्यवसाय के आर्थिक मामलों की पूरी मालूमात रहती है. नतीजतन व्यक्ति की व्यापार में सफलता की संभावना प्रबल रहती है. नौकरी और सेवा क्षेत्र में भी ऐसा व्यक्ति लगनशील और मेहनती होता है. जिम्मेदारी को समझता है. महत्वपूर्ण भूमिकाओं को निभाने तैयार रहता है.

कनिष्ठा अंगुली यदि असामान्य लंबाई तक पहुंच जाए तो व्यक्ति ठग, जालसाज, कागजों में हेरफेर से हित साधने वाला हो सकता है. कनिष्ठा लंबाई में कम हो तो व्यक्ति को जिम्मेदार लेने से बचता है. लापरवाह और अस्थिर होता है. यहां वहां कागज रखकर भूल जाता है. फलस्वरूप उसे समय से डाक्यूमेंटेश और फाइलिंग करने में परेशानी होती है.


कनिष्ठा के पहले पोर अर्थात् हथेल से जुड़े पोर पर खड़ी लाइन ज्यादा हों तो व्यक्ति के कारोबारी मित्रों की संख्या बढ़ी हुई रहती है. कम हों तो यह सीमित दायरे में कार्य व्यापार का संकेत करती हैं.