Chandrama Ki Katha: ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन और शीतलता का कारक माना गया है. कुंडली में चंद्रमा की स्थिति शुभ हो तो जीवन में सुख-शांति बनी रहती है. इसकी कृपा से अच्छा जीवन साथी प्राप्त होता है. वहीं चंद्रमा के अशुभ प्रभाव से मानसिक विकार, मन का भटकना, माता को कष्ट आदि परेशानी आती है.  ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा के बारे में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. आइए जानते हैं चंद्रमा को मिले श्राप से जुड़ी कथा के बारे में.


दक्ष की कन्याओं से हुआ चंद्रमा का विवाह


अग्नि पुराण की कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने जब सृष्टि की रचना करने का विचार किया तो सबसे पहले उन्होंने मानस पुत्रों की रचना की. इन्हीं मानस पुत्रों में एक थे ऋषि अत्रि. अत्रि का विवाह हुआ महर्षि कर्दम की कन्या अनुसुइया से हुआ. देवी अनुसुईया के तीन पुत्र हुए जो दुर्वासा, दत्तात्रेय एवं सोम नाम से जाने गये. सोम चंद्र का ही एक नाम है.


पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याएं थीं. उन सभी का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था लेकिन चंद्रमा सिर्फ रोहिणी से ही प्रेम करते थे. उनके इस कृत्य से दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बहुत नाराज रहती थीं. उन्होंने अपनी यह व्यथा अपने पिता को सुनाई. दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया लेकिन वह नहीं मानें.



दक्ष ने दिया चंद्रमा को श्राप


दक्ष के लाख समझाने पर भी जब चंद्रमा नहीं मानें तो दक्ष ने कुद्ध होकर उन्हें 'क्षयरोग से ग्रस्त हो जाने का श्राप दे दिया. इस श्राप की कारण चंद्रदेव तत्काल क्षयग्रस्त हो गए. उनके क्षयग्रस्त होते ही पृथ्वी पर सुधा-शीतलता का उनका सारा काम रूक गया. चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई.  दुखी चंद्रमा अपनी व्यथा लेकर ब्रह्माजी के पास गए. ब्रह्माजी ने चंद्रमा को भगवान शिव की आराधना करने को कहा.


चंद्रदेव ने भगवान् शिव की आराधना की उन्होंने घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जप किया. यह मंत्र से प्रसन्न होकर मृत्युंजय-भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया. उन्होंने कहा- 'चंद्रदेव! तुम शोक न करो. मेरे वर से तुम्हारा शाप-मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी. यह कहते हुए भगवान शिव ने प्रसन्न होकर चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया तब से उन्हें सोमेश्वर नाथ भी कहा जाने लगा.


भगवान बोले कृष्णपक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी, किंतु पुनः शुक्ल पक्ष में उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी. इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा' इस तरह शंकर भगवान के आशीर्वाद से चंद्रदेव शापमुक्त हुए. चंद्रमा को मिलने वाले इस वरदान से सारे लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे. 


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