भारत के महान मनीषियों ने सहज जीवनशैली में ऐसे महत्वपूर्ण तौर तरीकों को सरलता से जोड़ दिया है कि वे अधिकांश की आदत बन चुकी हैं. इससे न सिर्फ व्यक्ति विशेष कल्याण होता है बल्कि उसके माध्यम से समाज देश और राष्ट का उत्थान होता. भारत हो या अन्य विश्व की अधिकतर प्रार्थना पद्धतियां, अधिकांश में दोनों को आगे कर सिर झुकाकर विनम्र भाव से ईश्वर को धन्यवाद देने का ढंग है. इससे व्यक्ति में विनय और विवेक बढ़ता है. इससे वह श्रेष्ठता की ओर अग्रसर होता है.


कराग्रे वसते लक्ष्मीः, करमध्ये सरस्वती
करमूले तु गोविन्दः, प्रभाते कर दर्शनम्


उक्त श्लोक हाथों में लक्ष्मी, सरस्वती और भगवान की उपस्थिति कों हाथों में दर्शाकर उन्हें देखने और प्रणाम करने का आग्रह है. जागने पर सर्वप्रथम ऐसा करने से आप में पवित्र भावों का संचार होता. व्यक्ति की सफलता पवित्र और श्रेष्ठ विचारों से गढ़ती है. हर एक व्यक्ति के लिए सहजता से जागते ही ऐसा करना श्रेयष्कर है. उठते ही अचानक घृणा द्वेश क्रोध के भाव ऐसा करने से नियंत्रण आता है.


इसके साथ ही बिस्तर से जमीन पर पैर रखने से पूर्व धरा का आदर स्वरूप प्रणाम करना चाहिए. इससे यह भाव उत्पन्न होता है। धरा हमारी संरक्षक ही नहीं, हमारी कर्मस्थली भी है. कर्म के प्रति उधृत होने से पहले उसे नमस्कार कर लेने से सम्पूर्ण समय धन्यवाद का भाव बना रहता है.


धन्यवाद के भाव से हम कृतघ्नता के भाव से बच जाते हैं. आगे हमें जो लोग मिलते हैं उनके प्रयासों को भी आदर और आभार के भाव से अपनाते हैं. सफलता ऐसे ही सूक्ष्म भावों से विराट होती है। सम्पूर्णता को प्राप्त होती है.