Garuda Purana Lord Vishnu Niti in Hindi: गरुड़ पुराण हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों और 18 महापुराणों में एक है. इसमें भगवान विष्णु के प्रिय वाहन पक्षीराज गरुड़ ने उनसे जो प्रश्न किए हैं, श्रीहरि ने सविस्तार उसका उत्तर दिया है, जिसे गरुड़ पुराण कहा जाता है.
जीवन और मृत्यु दोनों ही ऐसा सत्य है जिसे कोई टाल नहीं सकता. धरतीलोक पर जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है. लेकिन आमतौर पर लोग मृत्यु के बारे में बात करने से भी डरते हैं या कतराते हैं. शास्त्रों में कहा गया है कि, मानव शरीर पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) से मिलकर बना है और इसी में मिल जाएगा.
अंतिम संस्कार है हिंदू धर्म का अंतिम संस्कार
हिंदू धर्म में कुल 16 संस्कारों के बारे में बताया गया है, जिसमें मृत्यु या दाह संस्कार आखिरी संस्कार है. जिस तरह अन्य संस्कारों जैसे जन्म, मुंडन, विवाह आदि को लेकर कई नियम होते हैं, ठीक उसी तरह 16वें संस्कार यानी मृत्यु के बाद भी कई नियम होते हैं, जिसका पालन करना जरूरी होता है. इन्हीं में एक है दाह संस्कार के बाद श्मशान घाट में पीछे मुड़कर नहीं देखना. आइये जानते हैं क्या है इसका कारण?
दाह संस्कार के बाद श्मशान में पीछे मुड़कर क्यों नहीं देखना चाहिए
दाह संस्कार के बाद भले ही शरीर जलकर भस्म हो जाता है, लेकिन आत्मा का अस्तित्व वहीं रहता है. क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गीता में कहा गया है कि, आत्मा को ना तो कोई शस्त्र मार सकता है, ना पानी डुबा सकती है, ना ही अग्नि उसे जला सकती है और ना ही कोई हवा उसे सुखा सकती है. आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है.
गरुड़ पुराण के अनुसार, परिजनों के साथ ही आत्मा खुद भी अपने अंतिम संस्कार की सारी क्रियाएं देखती है. गरुड़ पुराण में बताया गया है कि, मृतक का अपने परिजनों के साथ मोह रहता है और इसी मोह से ग्रस्त होकर मृतक की आत्मा परिजनों के आसपास भटकती रहती है. यदि मोह का बंधन नहीं टूटा तो आत्मा को परलोक गमन करने में परेशानी होती है. इसलिए ऐसी स्थिति में मोह का टूटना जरूरी होता है.
श्मशान में पीछे मुड़कर देखने से आत्मा का नहीं टूटता मोह
मृतक की आत्मा और परिजनों के बीच इसी मोह रूपी बंधन को तोड़ने के लिए कि दाह संस्कार के बाद परिजनों को पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए. अगर परिजन दाह संस्कार के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखेंगे तो आत्मा को ऐसा प्रतीत होगा कि अब उसका इस लोक में समय पूरा हो गया और वह दूसरे लोक में चली जाएगी. मृतक की आत्मा का परिजनों के साथ मोह तोड़ने लिए इसके अलावा अन्य कई कर्मकांड भी 13 दिनों तक किए जाते हैं.
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