Aja Ekadashi: आज यानी 10 सितंबर को अजा एकादशी का व्रत रखा जा रहा है. सभी एकादशियों में इस एकादशी का विशेष महत्व माना जाता है. यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है. इस दिन पूरी श्रद्धा के साथ विष्णु भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यताओं के अनुसार अजा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को पूर्व जन्म के पापों से छुटकारा मिल जाता है. इस दिन दान-पुण्य करना बहुत फलदायी माना जाता है. अजा एकादशी के दिन इसकी व्रत कथा जरूर सुननी चाहिए. इससे विष्णु भगवान प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाते हैं. 


अजा एकादशी की कथा (Aja Ekadashi Katha)


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अजा एकादशी की कथा सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी, इस कथा के अनुसार, एक राज्य में हरिश्चंद्र नाम का एक चक्रवर्ती राजा रहता था. अपने बच्चे की मृत्यु से दुखी होकर राजा मायूस रहने लगा. उससे उसका राजपाट भी छिन गया था. उसने अपना राज्य छोड़ दिया और अपनी पत्नी के साथ दूर राज्य के बाहर चला गया. इसके बाद राजा हरिशचंद्र एक चांडाल के यहां काम करने लगा. यहां वो मृतकों के वस्त्र लेता था. राजा हमेशा सत्य के मार्ग पर चलता था. वो जब भी अकेला होता था तो अपने दुखों से मुक्ति पाने का रास्ता ढूंढता था. वह सोचता था कि क्या ऐसा करें, जिससे उसका उद्धार हो सके.



राजा सिर्फ अच्छे कर्म करता था. एक दिन जब वह चिंतित होकर बैठा था, तभी वहां गौतम ऋषि आए. राजा ने उनको प्रणाम किया और अपने दुखों से मुक्ति पाने का रास्ता पूछा. राजा को परेशान देखकर ऋषि ने कहा कि तुम भाग्यशाली हो क्योंकि आज से 7 दिन बाद भाद्रपद कृष्ण एकादशी यानी अजा एकादशी व्रत आने वाली है. जो भी इस व्रत को विधि पूर्वक करता है उसका कल्याण जरूर होता है. इतना कहने के बाद गौतम ऋषि वहां से चले गए.


सात दिन के बाद राजा ने अजा एकादशी का व्रत रखा और ऋषि के बताए अनुसार ही भगवान विष्णु का पूरे विधि- विधान से पूजन किया. भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने पूरी रात जागरण किया और अगले दिन सुबह पारण करके व्रत को पूरा किया. इसके बाद भगवान विष्णु की कृपा से राजा के सारे दुख समाप्त हो गए. उसने देखा कि उसकी पत्नी पहले की तरह रानी के समान दिखने लगी है. व्रत के फल से राजा को अपना खोया हुआ राजपाट भी दोबारा मिल गया. इस व्रत के शुभ प्रभाव से जीवन के अंत में राजा को परिवार सहित स्वर्ग स्थान प्राप्त हुआ.


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