Mushroom Cutivation: आजकल कृषि को मुनाफे का व्यवसाय बनाने के लिये किसान फसल विविधिकरण पर काम कर रहे हैं. फसल विविधिकरण के जरिये एक ही खेत में अलग-अलग तरह की फसलें लगाई जाती हैं. ऐसा करने से किसानों को कम जगह में ज्यादा कमाई करने का मौका मिल जाता है.  मशरूम भी ऐसी ही फसल है, जो कम जगह में सिर्फ एक शेड़ लगाकर उगाई जाती है. भारत के कई राज्यों में किसान खेती और पशुपालन के साथ-साथ मशरूम भी उगा रहे हैं.  किसान किसी भी मौसम में मशरूम की खेती कर सकते हैं.


मुनाफेदार किस्में
मशरूम की खेती के लिये उन किस्मों का चुनाव करें, जो कम समय में ही अच्छा लाभ कमा कर दें. इसके अलावा नजदीकी बाजार में मांग के हिसाब से भी मशरूम उत्पादन कर सकते हैं. वैसे तो कृषियोग्य मशरूम की 70 किस्में दुनियाभर में पाई जाती हैं. लेकिन भारत में अच्छी आमदनी लेने के लिये सफेद बटन मशरुम, ढींगरी (ऑयस्टर) मशरुम, दूधिया मशरुम, पैडीस्ट्रा मशरुम और शिटाके मशरुम की किस्में उगाई जा रही हैं.


खेती की उन्नत तकनीक
मशरूम की खेती का सबसे बड़ा फायदा है कि इसके लिये मिट्टी की जरूरत नहीं पड़ती. इसके लिये प्लास्टिक के बड़े-बड़े बैगों, कंपोस्ट खाद, धान और गेहूं का भूसा ही काफी रहता है. सबसे पहले छोटी जगह पर ही शेड़ लगाकर उसे लकड़ी और जाल से कवर करें.
प्लास्टिक के बैगों में कंपोस्ट की खाद के साथ धान-गेहूं का भूसा मिलकार भर लें.
कंपोस्ट से भरे बैगों में मशरूम का बीज डालें और इसमें छोटे-छोट छेद कर दें, जिससे मशरूम उगने के साथ ही बाहर निकल आये.
बीज और खाद से भरे इन बैगों को या तो लटका दें या जालीनुमा अलमारी में रख दें.
ध्यान रखें कि बैग में बीज डालने के बाद 15 दिन तक शेड़ में हवा न लगने दें.
बुवाई के 15 दिन बाद  शेड़ में पखें लगा दें और हवा का प्रवाह होने दें.
30-40 दिनों में मशरूम की फसल पकने दें.  


 


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