Cheruvayal K Raman:  भारत को चावल के प्रमुख उत्पादों में गिना जाता है. आधुनिक दौर की चुनौतियों को कम करने के लिए अब किसान उन्नत किस्म का चावल उगा रहे हैं. ज्यादातर हाइब्रिड वैरायटी से खेती की जा रही है,  लेकिन इस बीच कई किसान देसी किस्मों की खेती कर स्वदेशी का नारा बुलंद कर रहे हैं. केरल में वायनाड की धरती पर धान की खेती करने वाले किसान चेरुवयल के.रमन का नाम भी शामिल हैं, जो पिछले 20 साल से देसी धान की करीब 45 किस्मों का संरक्षण कर रहे हैं. खुद भी धान की खेती पूरी तरह पारंपरिक और पर्यावरण के अनुकूल विधियों से ही करते हैं यानी किसी भी तरह के रसायन का इस्तेमाल नहीं किया जाता.


इस काम के लिए चेरुवयल को इंटरनेशनल लेवल पर भी काफी पहचान मिली है. साल 2013 में पौधों की किस्मों के संरक्षण और किसान अधिकार प्राधिकरण (PPVFRA) ने चेरुवयल रमन को ‘जीनोम सेवियर अवार्ड’ दिया है. भारत ने भी 72 वर्षीय चेरुवयल के. रमन के प्रयासों को सहार लिया है और कृषि के क्षेत्र विशेष योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया है.


10 साल की उम्र से खेती में रुझान
केरल के स्वर्ग कहे जाने वाले वायनाड से ताल्लुक रखने वाले चेरुवयल के.रमन के कुरिचिया आदिवासी समुदाय से आते हैं. वायनाड़ से गायब हो रहे जंगलों को लेकर चेरुवयल जैसे कई किसान चिंता में हैं.


रमन बताते हैं कि उन्होंने इस धरती पर 10 साल की उम्र से खेती चालू की थी. यह 1960 का दशक था, जह जंगल, नदी, नाले, दलदली जमीन से वायनाड की पहचान थी. तब ही चेरुवयल रमन अपने 150 साल पुराने पुश्तैनी घर में रह रहे हैं.


देसी किस्में संरक्षित करने वाले रमन का घर पूरी तरह मिट्टी और पूस का बना हुआ है. धान का उत्पादन मिलने के बाद अपने घर में ही संरक्षित करते हैं. चावल को पहचानने की चेरुवयल रमन की कला बेहद अलग है.


वो किसी भी चावल को देखकर, छूकर और सूंधकर उनकी पूरी डीटेल बता सकते हैं. हर साल खेती में 70 से 80 हजार नुकसान झेलने के बावजूद धान की देसी किस्मों के संरक्षण के काम में लगा रहने का जज्बा लोगों को आकर्षित कर रहा है.




लोगों को सिखाते हैं देसी धान की खेती
आज के आधुनिक दौर में धान की जेनेटिकली मॉडिफाइड और  हाइब्रिड-उन्नत किस्मों का इस्तेमाल हो रहा है. इसी वजह से धान की कई देसी प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं. यही बात चेरुवयल रमन को कई सालों से परेशान कर रही हैं.


रमन बताते हैं कि लोग अब देसी धान को भूलते जा रहे हैं. आने वाली पीढ़ियों को इनकी महत्ता से रूबरू करवाने के लिए देसी किस्मों का संरक्षण बेहद आवश्यक है, हालांकि आज कई किसान देसी किस्मों की तरफ वापस लौट रहे हैं. कई किसान खुद रमन के पास आकर इन बीजों की मांग करते हैं.


इन बीजों के साथ चुरुवयल रमन किसानों को पारंपरिक और देसी बीजों की रसायनमुक्त खेती का ज्ञान भी देते हैं, हालांकि इसके लिए किसानों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता, बल्कि देसी बीज पाने वाले किसानों को उत्पादन में से ही कुछ बीज लौटाना होता है.


500 साल पुराने चावल को संजोया
आपको जानकर हैरानी होगी कि आज वायनाड की धरती पर धान के संरक्षक बनकर उभर रहे चेरुवयल के. रमन ने करीब 45 देसी-स्थानीय किस्मों का संरक्षण किया है. इनमें से चेन्नेलु, थोंडी, वेलियान, कल्लादियारन, मन्नू वेलियन, चेम्बकम, चन्नलथोंडी, चेट्टुवेलियन, पलवेलियन और कनाली वायनाड को खास किस्मों के तौर पर चिन्हित किया गया है.


रमन ने 500 साल पुराने चावल की वैरायटी का भी संरक्षण किया. वो बताते हैं कि धान की देसी और स्थानीय प्रजातियां हाइब्रिड बीजों से कहीं ज्यादा प्रतिरोधी हैं, जो प्रतिकूल जलवायु में भी अच्छा उत्पादन देती हैं. ये किस्में कई सालों तक स्टोरेज के बावजूद खराब नहीं होती. जानकारी के लिए बता दें कि धान की 40 स्थानीय किस्में तो चेरुवयल रमन को अपने पुरखों से विरासत में मिली हैं.




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