आज के समय में भले इंडिगो की खेती करना किसानों के लिए भले ही फायदे का सौदा हो. लेकिन आजादी से पूर्व किसान इसकी खेती को नुकसान का सौदा माना करते थे. इंडिगो की खेती का दवाब बनाने पर किसानों ने अंग्रेजों के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया था. 


दरअसल, अंग्रेज भारतीय किसानों पर इंडिगो की ज्यादा से ज्यादा खेती करने का दवाब बनाते थे. जिसे वह बहार देशों में बेचकर तगड़ा मुनाफा हासिल करते थे. रिपोर्ट्स बताती हैं कि एक समय पर अंग्रेजों ने किसानों को खेत में 25 फीसदी इंडिगो की खेती करने का आदेश दिया था और जो किसान इसे फॉलो नहीं करते थे उन्हें प्लांटर्स द्वारा सजा दी जाती थी, लेकिन आखिर ये इंडिगो है क्या? आज हम आपको बताते हैं...


क्यों कतराते थे किसान?


आसान शब्दों में बताएं तो इंडिगो और कुछ नहीं नील है. जिसका इस्तेमाल घरों में होता है. लोग कपड़ों को चमकाने और उनसे पीलापन हटाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं. साथ ही साथ इससे घरों की पुताई भी हुआ करती थी. आज के समय में भी कई जगह पुताई में इसका उपयोग होता है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि नील की खेती करने में ज्यादा पानी की जरूरत होती है. इसी कारण से पहले के दौर में लोग इसकी खेती करने से कतराते थे क्योंकि इससे उनकी जमीन बंजर हो जाया करती थी. मगर आज के समय में ये फायदे का सौदा है. आज के टाइम पर सिंचाई की उत्तम व्यवस्थाएं हैं.


बरसात का समय खेती के लिए सही समय


एक्सपर्ट की मानें तो इंडिगो यानि नील की खेती के लिए मानसून का मौसम सबसे अच्छा रहता है. बरसात से पौधों का अच्छा विकास होता है. साथ ही साथ थोड़े गरम और नरम जलवायु में नील का काफी अच्छा प्रोडक्शन मिल सकता है. मगर अधिक गर्म या फिर अधिक ठंडे तापमान में ये फसल खराब भी हो सकती है.


काम की बात


किसान नील की खेती करने से पहले भी मिट्टी की जांच करा लें. मिट्टी की जांच रिपोर्ट के आधार पर खेत में सिंचाई, खाद, उर्वरक और अन्य उपकरणों की व्यवस्था करें. नील की खेती करने से पहले खेत को गहरी जुताई करनी होती है. गोबर की खाद उसमें डाल दी जाती है और फिर रोटावेटर से जुताई जाती है. फिर खेत में पानी का पलेवा डाला जाता है और आखिर में पाटा डाला जाता है. नील पौधों की रोपाई ड्रिल विधि से करना लाभदायक है. इसके पौधे एक से डेढ़ फुट दूर रोके जाते हैं. नील के पौधे अप्रैल में रोपे जाते हैं. इसके पौधे बारिश के मौसम में अच्छी तरह विकसित होते हैं. 2 से 3 सिंचाई के अंदर फसल पूरी तरह से तैयार हो जाती है और 3 से 4 महीने में नील भी काटी जा सकती है.


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