पिंडदान हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण संस्कार है.
यह मृत आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए किया जाता है.


गरुड़ पुराण में इसके विस्तृत नियम बताए गए हैं.
मृत्यु के बाद आत्मा प्रेत योनि में प्रवेश करती है.


आत्मा को अगले लोक की यात्रा के लिए ऊर्जा चाहिए होती है.
पहले 10 दिन पिंडदान से आत्मा को प्रेत शरीर मिलता है.


हर दिन अन्न, जल, और बल आत्मा को प्रदान किया जाता है.
यह भोजन आत्मा के सूक्ष्म शरीर के निर्माण में सहायक होता है.


मां की तरह यह संस्कार आत्मा को पोषण देता है.
पहले दिन से आत्मा को ज्ञानेन्द्रियां और कर्मेन्द्रियां मिलती हैं.


दसवें दिन आत्मा को संपूर्ण सूक्ष्म शरीर प्राप्त होता है.
इसके बाद आत्मा पितृलोक की ओर प्रस्थान करती है.


यह प्रक्रिया आत्मा के अगले जीवन की तैयारी मानी जाती है.
पिंडदान श्रद्धा और नियमपूर्वक किया जाना चाहिए.


यह केवल एक रस्म नहीं, बल्कि आत्मा की सहायता है.
गरुड़ पुराण, मनुस्मृति, विष्णु धर्मसूत्र में इसका उल्लेख है.


इसे घर या गया जैसे तीर्थ स्थानों पर किया जा सकता है.
पिंड में चावल, तिल और जल प्रमुख रूप से होते हैं.


यह पितृ ऋण चुकाने का भी एक माध्यम है.
यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है.