पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, प्रत्येक युग का अपना महत्व रहा है.



सभी युगों में पाप इतना भयंकर नहीं था, जितना कलियुग में है.



पहले स्वयं भगवान अवतार लेकर पापियों का उद्धार करते थे.



और ऋषि-मुनि भी अपने अपमान में श्राप दे दिया करते थे.



लेकिन कलियुग में ना श्राप का महत्व रह गया है और ना ही विश्वास.



विष्णु पुराण में कलियुग में किसी को भी श्राप देना अनुचित बताया है.



क्योंकि कलियुग में कोई भी मनुष्य उत्तम नहीं है.



सभी मनुष्यों ने कभी ना कभी मन, ‌वचन, कर्म से किसी ना किसी को चोट पहुंचाई है.



जिसके कारण कलियुग में किसी पर भी श्राप का असर नहीं होता है.