उनके श्रीमुख से निकले उपदेश जीवन को धर्म और करुणा की ओर प्रेरित करते हैं.
उस समय वे यह नहीं समझते कि शब्दों में कितना प्रभाव छिपा है. वही शब्द कभी किसी के जीवन को प्रभावित कर सकते हैं.
उसका असर अवश्य होता है, चाहे देर से ही सही.
उसकी आत्मा की पीड़ा हमें अवश्य छूती है.
उसकी पीड़ा सबकुछ भस्म कर देती है.
आह के कारण भीष्म पितामह को बाणों की शय्या पर छह महीने तक पड़े रहना पड़ा था.
किसी को दुख देकर उसकी बद्दुआ मिलती है, तो जीवन में अशांति आ जाती है.
तो उसके लिए भी शुभ भावना रखें। यही सच्चा साधक मार्ग है.
दूसरों के हृदय से निकली बद्दुआ मनुष्य को भीतर से खोखला कर देती है.