प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज वृंदावन के प्रसिद्ध संत हैं.

उनके श्रीमुख से निकले उपदेश जीवन को धर्म और करुणा की ओर प्रेरित करते हैं.

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अक्सर लोग क्रोध या दुख में आकर किसी को बद्दुआ दे देते हैं.

उस समय वे यह नहीं समझते कि शब्दों में कितना प्रभाव छिपा है. वही शब्द कभी किसी के जीवन को प्रभावित कर सकते हैं.

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प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि किसी के दिल से निकली बददुआ व्यर्थ नहीं जाती.

उसका असर अवश्य होता है, चाहे देर से ही सही.

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महाराज के अनुसार, किसी जीव-जंतु या मनुष्य को कष्ट देने से

उसकी आत्मा की पीड़ा हमें अवश्य छूती है.

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कबीरदास जी भी कहते हैं कि की हाय से बड़ा कोई शाप नहीं.

उसकी पीड़ा सबकुछ भस्म कर देती है.

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बददुआ का भीष्म पितामह की कथा का शास्त्रों में भी उदाहरण मिलता है. कहा जाता है कि एक सर्प की

आह के कारण भीष्म पितामह को बाणों की शय्या पर छह महीने तक पड़े रहना पड़ा था.

Published by: कहकशां परवीन
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प्रेमानंद जी कहते हैं —जीवनी में किसी की आह नहीं लेनी चाहिए.

किसी को दुख देकर उसकी बद्दुआ मिलती है, तो जीवन में अशांति आ जाती है.

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वे कहते हैं कि क्रोध के क्षणों में भी संयम रखें. यदि कोई हमें दुख दे,

तो उसके लिए भी शुभ भावना रखें। यही सच्चा साधक मार्ग है.

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प्रेमानंद महाराज का संदेश है किसी की आह न लो, न किसी को दुख दो.

दूसरों के हृदय से निकली बद्दुआ मनुष्य को भीतर से खोखला कर देती है.

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