दैत्यराज दंभ का एक पुत्र था, जिसका नाम था शंखचूड़.



शंखचूड़ ने घोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया
और उसे वरदान में अजेय होने का वरदान मिला.


शंखचूड ने अहम आ गया और उसने तीनों लोकों में
अपना स्वामित्व स्थापित कर लिया.


दैत्य शंखचूड़ के अत्याचारों से देवता परेशान थे



शिवजी ने देवताओं की रक्षा के लिए शंखचूड़ से युद्ध
का नेतृत्व किया.


श्रीकृष्ण कवच और पत्नी तुलसी की पतिव्रता धर्म के
कारण उसे पराजित करना मुश्किल हो रहा था.


फिर भगवान शंकर ने त्रिशूल से उसका वध किया था.
उसका शरीर भस्म हो गया.


उस भस्म से शंख की उत्पत्ति हुई थी. शिव जी ने शंखचूड़
का वध किया था इसलिए उनकी पूजा में शंख वर्जित है.