शास्त्र के अनुसार जन्म के बाद ही मनुष्य पर 5 तरह के ऋण चढ़ जाते हैं.



इन 5 ऋणों (कर्ज) को जीवन में चुकाना जरूरी होता है.



जो मनुष्य इन ऋणों को नहीं उतारता उसे दुख-कष्ट का सामना करना पड़ता है.



ये 5 ऋण है मातृ ऋण, पितृ ऋण, मनुष्य ऋण, देव ऋण और ऋषि ऋण.



मातृ ऋण में माता और माता पक्ष के लोग जैसे, नाना-नानी, मामा-मामी होते हैं.



पितृ ऋण में पिता पक्ष के लोग जैसे दादा-दादी, चाचा, ताऊ और 3 पीढ़ी के पूर्वज होते हैं.



यज्ञ, पूजा, व्रत और दान से देव ऋण चुकाया जाता है.



यज्ञ, पूजा, व्रत और दान से देव ऋण चुकाया जाता है.



यज्ञ, पूजा, व्रत और दान से देव ऋण चुकाया जाता है.



सेवा, सहयोग और अच्छे व्यवहार से मनुष्य ऋण चुकाया जाता है.