Railway Loco Pilot Demands: देश में फिलहाल इंडिगो का बड़ा फ्लाइट संकट चल रहा है. हजारों यात्री कैंसिल फ्लाइट्स, लंबी देरी और बदली हुई बुकिंग के बीच फंसे हुए हैं. इसी माहौल में अब रेलवे की तरफ से भी एक नई चिंता सामने आ गई है. लोको पायलट यानी ट्रेन को चलाने वाले ड्राइवर. अपने काम के घंटे तय करने की मांग पर जोर दे रहे हैं. उनका कहना है कि बिना पर्याप्त आराम के वह हर दिन भारी थकान में ट्रेन चलाते हैं.
जिससे हादसे का खतरा बढ़ जाता है. पायलटों का तर्क है कि जब एयरलाइन पायलटों को इंडिगो संकट के बाद सरकार ने सख्त नियमों का सुरक्षा आधार देते हुए मंजूर किया. तो रेलवे को भी इसी तरह की वैज्ञानिक वर्क सिस्टम अपनाना चाहिए. लेकिन अगर इन मांगों के लिए लोगों पायलट प्रदर्शन पर उत्तर आते हैं. तो फिर रेलवे के लिए मुश्किल हो सकती है.
क्या रेलवे ठप हो सकती है?
लोको पायलटों ने सरकार से मांग की है कि उनकी ड्यूटी 6 घंटे तक सीमित की जाए. हर ड्यूटी के बाद 16 घंटे का फिक्स आराम मिले और हफ्ते में निश्चित ऑफ भी तय हो. उनके मुताबिक यह सुरक्षा के लिए जरूरी है. लेकिन अगर बातचीत ठप रही और कर्मचारी आंदोलन पर उतर आए. तो इसका सीधा असर ट्रेनों पर पड़ सकता है. देरी, कैंसिलेशन और शेड्यूल में गड़बड़ियां बढ़ सकती हैं.
ठीक वैसे ही जैसे इंडिगो के संकट में देशभर में हजारों फ्लाइट्स रुक गईं. अभी इंडिगो का संकट 8वें दिन तक पहुंच चुका है और 2000 से ज्यादा फ्लाइटें कैंसिल हो चुकी हैं. रेलवे पायलटों की मांगें न मानी गईं और हालात बिगड़े. तो देश की सबसे बड़ी यात्री सेवा प्रणाली भी दबाव में आ सकती है. जिससे लाखों यात्री प्रभावित हो सकते हैं.
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रेलवे पायलटों की मांग क्यों बढ़ी?
AILRSA यानी ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएश का कहना है कि सालों से वह सिर्फ इतना मांग रहे हैं कि उनकी ड्यूटी मानव शरीर की क्षमता के हिसाब से तय की जाए. पायलट बताते हैं कि कई बार उन्हें 10 से 12 घंटे लगातार काम करना पड़ जाता है. लंबी रात की ड्यूटी, ओवरटाइम और बिना तय आराम के लगातार ट्रिप्स उन्हें मानसिक और शारीरिक थकान दे देती हैं.
उनका तर्क है कि थका हुआ लोको पायलट न सिर्फ अपनी सुरक्षा बल्कि हजारों यात्रियों की जान जोखिम में डाल देता है. इंडिगो मामले में पायलटों की थकान को गंभीरता से लिया गया और FRMS जैसी प्रणाली की बातें उठीं. उसी आधार पर रेलवे पायलट कह रहे हैं कि दोहरे मानदंड नहीं होने चाहिए. उनकी मांग है कि रेलवे भी वैज्ञानिक और सुरक्षित कार्य प्रणाली के तहत नियम तय करे.
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इस बात को लेकर रेलवे कर्मचारियों का गुस्सा
AILRSA ने साफ कहा कि जब सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी अपनी स्थिति सुधारने के लिए आवाज उठाते हैं. तो उन पर कार्रवाई होती है. लेकिन जब बड़ी निजी कंपनियां जैसे इंडिगो जो सुरक्षा नियमों को चुनौती देती हैं. तो सरकार उनका पक्ष लेती दिखती है. एसोसिएशन का आरोप है कि इंडिगो की ओर से पायलटों के आराम और ड्यूटी समय से जुड़े नियमों का उल्लंघन होने के बावजूद सरकार ने नरमी दिखाई.
इसके उलट रेलवे कर्मचारियों पर मामूली आंदोलन की स्थिति में भी कड़े कदम उठाए जाते हैं. उनका कहना है कि FRMS यानी Fatigue Risk Management System दुनिया भर में साबित मॉडल है और जब विमानन क्षेत्र के लिए यह मैंडेटरी है. तो रेलवे के काम में इसे लागू करने में इतनी देरी क्यों हो रही है.
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